सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

[ u/1 ] इलाज ; हृदय रोग और पागलपन कि एक सरल तथा चमत्कारिक औषधि

code - 01

web - gsirg.com



इलाज ; हृदय रोग और पागलपन कि एक सरल तथा चमत्कारिक औषधि


मानव शरीर के समस्त महत्वपूर्ण अंगों में हृदय सर्वश्रेष्ठ अंग है | इसको सब अंगों का राजा कहा जा सकता है | आदमी के शरीर का यह अंग जितना ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है , उतना ही जटिल इसकी बीमारियां भी हैं | इसकी बीमारियों को ठीक करने के लिए चिकित्सक लोग प्रायः मूल्यवान औषधियों का ही प्रयोग करते हैं , जैसे मोती , स्वर्ण भस्म , जवाहर मोहरा आदि | क्योंकि हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है , इसलिए यहां की अधिसंख्य जनता के पास इतना अधिक पैसा नहीं होता है कि , वह महंगा इलाज करा सके | परंतु हमारे देश पर प्रकृति माता इतनी दयालु है , कि उन्होंने गरीबों के लिए ऐसी ऐसी विभिन्न वनस्पतियां पैदा कर दी हैं , जिनसे वे लोग आसानी से कठिन रोगों से मुक्ति पा जाते हैं |


हृदय रोग का कारण


लोगों में हृदय रोग होने का प्रमुख कारण खानपान में गड़बड़ी , अनुचित आहार विहार और प्रदूषित वातावरण जिम्मेदार हैं | इसके लिए कुछ हद तक इस रोग के रोगी इस रोग के होने के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं | उनके कुछ ऐसे क्रियाकलाप भी होते हैं जो उन्हें हृदय रोगी तथा पागलपन जैसे रोगों को अपने पास बुला लेते हैं जैसे धूल और गंदगी वाले कारखानों में काम करना , बीड़ी , सिगरेट और पान मसाला आदि के कारखानों में काम करने वाले लोग इन बीमारियों के शिकार हो जाते हैं | लोगों का तनाव , ग्रह कलह और मदिरापान आदि भी ऐसे कारण हैं , जो इन बीमारियों को मानव शरीर में आमंत्रित करते रहते हैं |


शारीरिक कारण


लोगों द्वारा किया जाने वाला धूम्रपान , मदिरापान और विभिन्न प्रकार के नशे इसके लिए जिम्मेदार माने जा सकते हैं | अखबारों TV और अन्य संचार माध्यमों से विज्ञापनों की चकाचोंध को देख कर तथा उससे प्रभावित होकर विभिन्न प्रकार के रिफाइंड तेलों का प्रयोग भी इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार है | फास्ट फूड , जंक फूड तथा रिफाइंड तेल खास तौर पर लोगों को हृदयरोगी बनाते हैं | इसका कारण है कि लोग विज्ञापनों के माया जाल में फंसकर , इनका धुआंधार प्रयोग करते हैं | जिसके कारण शरीर में l d l तथा v l d l की मात्रा बढ़ जाती है | शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाने से हृदय रोगों की उत्पत्ति होने लगती है | बैड कोलेस्ट्रॉल शरीर की नस नाड़ियों में प्रवाहित होकर खून को गाढ़ा बना देता है , जिससे धीरे-धीरे रक्त प्रवाह रूकने लगता है | जिसके कारण हृदय मैं रक्त संचार ठीक ढंग से नहीं हो पाता है |


हृदय रोग की तीव्रता जानने का सरल उपाय


यदि रोगी को किसी प्रकार से ही पता लग जाए कि , उसे हृदय रोग हो चुका है , या होने वाला है | तब उसे सर्वप्रथम चिकित्सीय परीक्षण कराना चाहिए | चिकित्सीय परीक्षण में यदि कोलेस्ट्रॉल का स्तर जानने के बाद यदि डॉक्टर ऑपरेशन की सलाह दे तो उसकी सलाह को भी गौर से सुनो | अब उससे पूछें कि कितने दिनों बाद ऑपरेशन करवाना है , तथा रोग की तीव्रता कितने प्रतिशत है | अगर डॉक्टर की सलाह हो कि आप किसी भी समय ऑपरेशन करवा सकते हैं , तथा आपके रोग की तीव्रता 80% तक पहुंच चुकी है , तो आप बिल्कुल ही बेफिक्र हो जाइए | निश्चिंत होकर अपने घर जाइए ,क्योंकि अब आप बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो जाएंगे |


आयुर्वेदिक उपचार


इलाज का प्रथम चरण


सबसे पहले तो आप अपना पहला काम यह करें कि घर में यदि बाजारु तेल हो तो , उसका प्रयोग बिल्कुल बंद कर दें | उसकी जगह पर किसी विश्वसनीय जगह से कोल्हू से निकाला गया तेल लाकर प्रयोग करने लगे | केवल तेल ही बदल देने से आप का रोग ठीक होने लगेगा | अब आप एक काम यह भी करें कि बाजार से खरीद कर लाये गये ठंडे पेय , चीनी , मैदा , जंक फूड तथा फास्ट फूड आदि खाना बिल्कुल ही बंद कर दें | क्योंकि इनसे शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा में बहुत ज्यादा बढ़ती जाती है |


इलाज का दूसरा चरण


यदि आपके आसपास कहीं बाजार लगता हो तो वहां से पर्याप्त मात्रा में लौकी खरीद कर ले आयें | इसके साथ ही बाजार से एक '' जूसर '' भी ले आए | बाजारों मे सीजन पर पर्याप्त मात्रा में लौकी उपलब्ध होती है | अगर लौकी का सीजन न हो तो बाजार से लौकी के बीज लाकर , उन्हें गमलों में लगा दें | जिससे आपको कभी भी लौकी की कमी न हो | अब प्रतिदिन प्रातः काल नाश्ते से 50 मिनट पहले , लौकी के ताजे रस की 50 मिलीलीटर मात्रा लेकर , प्रतिदिन लौकी का जूस पीना शुरू कर दे | [ अगर आप चिकित्सा कर सकते हो तो , लौकी के रस की जगह गाय का मूत्र भी इतनी ही मात्रा में पी सकते हैं ] हो सकता है कि आप ऐसा न कर पाएं तो न करें , लेकिन लौकी का रस जरूर पिएं | ऐसा हम इसलिए बता रहें हैं , क्योंकि गाय का मूत्र लौकी के रस की तुलना मे 5 गुना जल्दी लाभ करता है , तथा बिना किसी झंझट के आसानी से उपलब्ध भी हो जाता है | इसलिए आप अपनी मर्जी से औषधि का चयन करें | उपरोक्त कोई भी इलाज आप कर सकते हैं | आप इतना विश्वास जरूर करें कि इस इलाज के बाद आप हृदय रोग या पागलपन से तो मरेंगे नहीं|अन्य रोग की मै बात नहीं करता|


इलाज का तीसरा चरण


पीपल के पेड़ से तो आप परिचित ही होंगे , क्योंकि यह पेंड़ लगभग हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाता है | इस पेड़ के पर्याप्त मात्रा में पत्ते लाकर , शाम को पानी में भिगो दें | सुबह होने पर '' भपके '' के जरिए इन पत्तों का अर्क निकाल लीजिए | इस अर्क को सुरक्षित बोतलों में भरकर रख लीजिए | इसकी भी लगभग 50 ग्राम मात्रा नाश्ते के 1 घंटे बाद सेवन किया करें इस औषधि सेवन के 50 मिनट पश्चात तक कुछ न खाएं | यह अर्क दिन में तीन बार लिया करें | अर्क सेवन के 50 मिनट पहले तथा एक घंटा बाद कुछ भी न खाएं और न ही पिए |


सावधानी


रोगी को चाहिए कि वह अपने पास एलोपैथिक औषधि '' सोर्बिट्रेट 5 mg '' कि गोलियाँ अपने पास अवश्य रखें | कभी-कभी ऐसा होता है कि चिकित्सीय परीक्षण में भी रोग की सही तीव्रता का पता नहीं लग पाता है | इसलिए हो सकता कि आपको अचानक हृदय रोग की पीड़ा होने लगे | ऐसे मे यह गोलियां आपके उपचार मे काम आएंगी | ह्रदय रोग का आभास होने पर इसकी एक गोली जीभ के नीचे रख लेने से , हृदय रोग की पीड़ा से आप का बचाव होता रहेगा | यह गोलियाँ ज्यादा महंगी भी नहीं है , तथा जीवन रक्षक होने के कारण मेडिकल स्टोर्स पर आसानी से मिल जाती हैं |


इस चिकित्सा के दौरान आप यह बात जरूर ध्यान रखें कि हृदय रोग जानलेवा रोगों में है फिर भी यह आसानी से किसी की जान नहीं लेता है | यदि आप धैर्यपूर्वक चिकित्सा करेंगे , तथा विश्वास बनाए रखेंगे तो आपको निश्चित रूप से लाभ मिलेगा यह मेरा दावा है कि विधिविधान से नियमित चिकित्सा करेंगे तो आप हृदय रोग से तो स्वर्गवासी नही होंगे | इस चिकित्सा से आप पागलपन के रोगियों का इलाज करके उनके पागलपन को भी दूर कर सकेंगे |


जय आयुर्वेद


web - gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में