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[ 1 ] इलाज ; डिप्थीरिया

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इलाज ; डिप्थीरिया

यह बच्चों को होने वाला एक ऐसा भयंकर रोग है , यदि इ सका समय रहते हैं उपचार न किया जाए तो , देखते ही देखते बच्चा रोग की भयंकरतम स्थिति में पहुंच जाता है , परिणाम स्वरुप बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है | एक ऐसा रोग है जो बच्चे के गले और नासिका में होने वाले विशिष्ट संक्रामक रोगों की श्रेणी में आता है | यह रोग शीत और समशीतोष्ण वातावरण में रहने वाले बच्चों को अधिक होता है , तथा कभी-कभी बड़े शहरों तथा पहाड़ी प्रदेशों में अधिक फैल जाता है | यह रोग ज्यादातर बाल्यावस्था में ही होता है | इस रोग के खसरा , बड़ी खांसी , इंफ्लुएंजा और गले की बीमारियों के बाद इसके होने की संभावना बनी ही रहती है |

रोग का परिचय


विशिष्ट श्रेणी का यह संक्रामक रोग अधिकतर 1 वर्ष से ऊपर की उम्र के बच्चों को अधिक होता है | यदि यह रोग घर में किसी बच्चे को है , तब घर के अन्य बच्चों को भी इससे संक्रमित होने की आशंका बनी रहती है | इसलिए जब किसी बच्चे को यह संक्रमण हो जाए , तो उसे तुरंत ही जितनी जल्दी हो सके चिकित्सक के पास ले जाकर इसका इलाज आरंभ करवा देना ही श्रेयस्कर होता है , ताकि दूसरे बच्चे इस संक्रमण से प्रभावित न होने पाए |

संक्रमण का प्रसार


जब कोई बच्चा इस संक्रमण की चपेट में आ जाता है तब रोगी बच्चे के गले में एक विशिष्ट प्रकार की झिल्ली बन जाती है | इस झिल्ली में इस रोग के अनेकों संक्रमणकारी जंतु विद्यमान रहते हैं | जिस समय बच्चा थूकता , खाँसता , छींकता या बोलता है, उस समय यह जीवाणु वायु के संपर्क में आ जाते हैं | जिसके कारण इस रोग से दूसरों बच्चों के प्रभावित होने का खतरा बना रहता है | इसके अलावा यदि दूसरे बच्चे , रोगी बच्चे के मुंह की लार , रूमाल , चम्मच और पानी का गिलास के संपर्क में आकर उसका उपयोग करते हैं , उस समय भी इस रोग का प्रसार दूसरे बच्चों में बड़ी तेजी से होने लगता है , परिणाम स्वरुप दूसरों बच्चे भी इस रोग की चपेट में आ जाते हैं |

अन्य कारण


जिस बच्चे के माता पिता अपने बच्चों को स्वास्थ्य नियमों के विपरीत आहार विहार का वातावरण बना लेते हैं , अथवा अपने बच्चों को दुर्गंध और सीलन भरे अंधकारमय स्थान पर रखते हैं | रोगी बच्चों के मलमूत्र के पास , या गंदे कूड़े आदि पड़े स्थानों , वस्त्रों में मवाद , नाक का पानी, लार लिप्त रहने, बासी और दुर्गंधित भोजन करने , दूषित स्थानों पर रखने से , दूषित दूध आदि का सेवन कराते हैं , उनके बच्चों को यह रोग होने का खतरा अधिक बना रहता है | बच्चों के माता-पिता द्वारा उनकी अनुचित देखभाल के कारण , बच्चों के गले में लालिमा पैदा होकर यह रोग हो जाता है |

रोग की प्रथम अवस्था


इस रोग की पहली अवस्था मे बच्चे के गले में चारों और लालिमा का हो जाना , बच्चे के तालू में सफेद परत दिखाई पड़ना ही , इस रोग का प्राथमिक लक्षण है | इसके दो-तीन दिन बाद तालू की सफेद पर्त झिल्ली में बदल जाती है , जिसके कारण बच्चे के गले में सूजन हो जाती है , तथा उसे कोई पदार्थ निगलने मे कष्ट महसूस होने लगता है | धीरे-धीरे उसका बुखार 102 डिग्री तक पहुंच जाता है , खांसी शुरू हो जाती है , सांस लेने में दिक्कत होती है तथा मुख मंडल भी फीका पड़ जाता है |

रोग की दूसरी अवस्था


इस अवस्था मे गले की सूजन बढ़ जाती है और बुखार भी लगभग 105 डिग्री तक पहुंच जाता है | बच्चे की नाड़ी गति तीव्र हो जाती है , और वह बेकार की बकबक करने लगता है | रोगी बच्चे का मुंह लाल हो जाता है , उसे प्यास भी अधिक लगने लगती है , उसकी बेचैनी और शरीर की दुर्गंध भी बढ़ जाती है | यह इस रोग की भयानक अवस्था है |

रोग की तीसरी अवस्था


इस अवस्था में बच्चे की गर्दन अकड़ जाती है , और गले में काफी सूजन आ जाती है |बच्चे के कान में दर्द भी होने लगता है , क्योंकि रोग का विष नासा तक फैल जाता है | यह इस रोग कि और भी भयानक अवस्था है |

रोग की अंतिम अवस्था

रोग की अंतिम अवस्था मे गले की सूजन बढ़कर पूरे गले , नासिका , स्वरयंत्र तथा अन्य नलिकाओं तक पहुंच जाता है | दुर्गंध भी बढ़ जाती है | बच्चे का शरीर नीला पड़ जाता है | यह इस रोग की भयंकरतम अवस्था है , जिसके बाद बच्चे का बचना लगभग असंभव हो जाता है |

चिकित्सा

इस रोग की चिकित्सा के लिए बाजार से सुहागा लाकर उसका फूला बना ले | इसके बाद इस फूला का महीन महीन चूर्ण बना लें | इस चूर्ण की 2 - 2 रत्ती की मात्रा शहद या ग्लिसरीन में मिलाकर 3 - 3 घंटे बाद बच्चे को चटाते रहें , तथा इसे ही गले के चारों ओर लगाते भी रहे | ततपश्चात गर्म पानी से गले की सिकाई भी करें | इसके अलावा रासना , साठी की जड़ , सहींजन , अरण्ड के पत्ते , लाल चंदन , दशमूल और निर्गुंडी सभी को बराबर बराबर मात्रा में लेकर कूटकर पानी में उबालें , तथा इसकी भाप के पास बच्चे को बैठा कर उसके गले की सिकाई भी करें | ऐसा करने से भाप बच्चे के गले के अंदर पहुंचकर , गले को साफ करती रहेगी | बाद में इसके पानी से बच्चे को स्नान भी करवा दिया करेँ | इसके अलावा गले में ग्लिसरीन लगाने से गले की सूजन कम हो जाती है | रोगी को एकांत कमरे में शांत वातावरण में बिस्तर पर लिटाना शुरू कर दें , ताकि घर के अन्य बच्चे रोगी बच्चे से दूर रहा करें | बच्चे को डिप्थीरिया के प्रतिविष का इंजेक्शन भी लगवाएं , तथा हाइड्रोजन परॉक्साइड मिले पानी से कुल्ले कराएं | बच्चे को खाने में दूध , फलों का रस , चाय , कॉफी या तरल पदार्थों ही खाने को दें | यदि उपरोक्त चिकित्सा बच्चे के रोग की प्रारंभिक अवस्था में कर ली जाए , तब निश्चित रूप से बच्चे को इस तकलीफ से पूरी तरह से लाभ हो जाएगा | यदि रोग भयंकरतम स्थिति को पहुंच चुका है , तब रोगी बच्चे को किसी ;; बाल चिकित्सा विशेषज्ञ '' के पास ले जाकर उसकी चिकित्सा कराएं | क्योंकि व्यर्थ में बेकार का रिस्क लेना भी ठीक नहीं होता है |

जय आयुर्वेद


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