सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

11 इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण

web - helpsir.blogspot.in

 इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण


मेरे सुविज्ञ पाठकगणों कुछ ऐसी बीमारियाँ  होती है , जो विशेष समय पर ही होती हैं , इन्हे हम बोलचाल की भाषा मे '' समसामयिक बीमारियां  '' कहते हैं जैसे सर्दी जुकाम | ें यह बीमारियों का एक निश्चित समय पर तथा निश्चित वातावरण मे अनायास ही व्यक्ति को अपनी गिरफ्त मे लेकर अपना भयावह स्वरुप  दिखाने लग जाती है | जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह गर्मी के दिन है | इस समय सभी किसान भाई अपनी गेहूँ कि फसल तैयार करके अपना गेहूँ घर लाने मे लगे हुए हैं | किसान इस फसल को घर लाने से पहले उसकी कटाई व मड़ाई करते है | मड़ाई के बाद ही किसान को गेहूँ के साथ जानवरों को खिलाने के लिए '' भूसा '' भी मिल जाता है |     

यह समय रवी की फसल गेहूँ की कटाई, मड़ाई का हैं | सभी किसान का यह काम जोरों पर है।मड़ाई के कारण चारों ओर '' भूसे '' के छोटे छोटे कण वायुमंडल में प्रचुरता से विद्यमान रहते हैं। इसीतरह धनिया और तिलहन आदि फसलो  के छोटे छोटे कण भी वातावरण मे बहुतायत से फैले हुए होते हैं | वायुमंडल के ऐसे प्रदूषित वातावरण मे धूल आदि के साथ मिश्रित यह कण अलर्जी और दमा के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होते हैं।यह भूसे के कण '' स्वशन तंत्र '' के लिए बहुत ही अधिक खतरनाक हैं।इनसे दमा,श्वास तथा सर्दी बढ़ने के साथ-साथ  त्वचा रोगों के  बढ़नें के आसार बढ़ जाते हैं।

अतःजन मानस से निवेदन है कि जहाँ मड़ाई का कार्य चल रहा है वहां मुँह पर कपड़ा बांधकर जायें।श्वास और दमा बढ़नें पर तथा त्वचा रोग खुजली बढ़नें पर योग्य चिकित्सक से इलाज करवाने की कृपा करें।

धन्यवाद।

प्रमोद कुमार दीक्षित, सेहगों, रायबरेली।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक छिपकली की कहानी

एक प्रेरणादायक कहानी यह सच्ची कहानी हम सभी को आशावान् परोपकारी और कर्मशील बने रहने की शिक्षा एवम् प्रेरणा देती है। जब एक छिपकली कर सकती है, तो हम क्यों नहीं?       [यह जापान म...

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वा...