सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

इलाज ; भयानक कर्कट रोग कैंसर

Web - gsirg.com
इलाज ; भयानक कर्कट रोग कैंसर
इस संसार में प्राणलेवा रोगों में अनेक रोगों का नाम लिया जा सकता है जैसे HIV पॉजिटिव होना , डेंगू , ब्लडप्रेशर , चेचक और कैंसर आदि | इन सभी मारक रोगों में कैंसर का महत्वपूर्ण स्थान है | यह एक दुष्ट रोग है , तथा जिस भी प्राणी को यह रोग हो जाता है , उसे अपने जीवन का अंत निकट दिखाई पड़ने लगता है | क्योंकि अभी तक पूर्ण रूप से इस के सफल और सटीक इलाज की खोज नहीं हो पाई है | केवल आयुर्वेद ही इसकी सफल चिकित्सा करने में पूरी कामयाबी हासिल कर सका है | आज हम इस रोग के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे , और उसके सफल इलाज का वर्णन भी करेंगे |
कारण
आयुर्वेद में कैंसर को बड़े ही सूक्ष्म रूप में इसका सफल अध्ययन किया है | आयुर्वेद में कैंसर को रक्तार्बुद के नाम से जाना जाता है | पहले इसे असाध्य रोग माना जाता था | इस रोग की सही जानकारी होने पर रोगी परेशान होकर इस संसार से जाने की तैयारी करने की सोचने लगता है | प्राचीन समय में इस रोग के रोगी '' न '' के बराबर मिलते थे , परंतु आजकल इसका उग्र रूप सामने आ रहा है | इसका प्रमुख कारण है, लोगों का ''प्रकृति के विपरीत '' आचरण करना , तथा शरीर में हो रहे अस्वाभाविक परिवर्तनों पर ध्यान न देना है | रोग के आरंभ में शरीर में एक साधारण सी गांठ होती है | जिस पर लोग ध्यान नहीं देते हैं | बाद में इसका नजरंदाज करना उसे भारी पड़ जाता है | लंबे समय के उपरांत जब इस गांठ का परीक्षण किया जाता है तब उस व्यक्ति ने का पता चलता है कि उसे कैंसर रोग चुका है |
कैंसर के प्रकार
इस रोग के परीक्षण हेतु आधुनिक चिकित्सक सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा या फिर अन्य रासायनिक परीक्षणों द्वारा इस रोग की जानकारी प्राप्त करते हैं | उन्होंने कैंसर को दो प्रकारों में बांटा है | पहली प्रकार के कैंसर को बेनाइन या निर्दोष कैंसर कहते हैं , तथा दूसरे प्रकार के कैंसर को मैंलिगनेंट या घातक कैंसर कहते हैं | इनमें से पहले प्रकार के रोगियों की चिकित्सा करने पर सफलता प्राप्त हो जाती है | लेकिन दूसरे प्रकार के रोगी असाध्य होते हैं | इसप्रकार के रोगियों के उपचार का तरीका भी जटिल होता है | इस रोग में चिकित्सक को पहले यह पता लगाना पड़ता है कि रोग किस स्तर पर है | चिकित्सा से प्रारंभिक स्तर का रोगी ठीक हो सकता है , परंतु दूसरे और तीसरे प्रकार के रोगी को ठीक करना लगभग असंभव होता है |
लक्षण
कैंसर के लक्षणों के आधार पर ही प्रारंभिक अवस्था में यह जाना जाता है कि रोगी के शरीर में कहीं पर गाँठ है या नहीं | यदि शरीर में कोई गांठ है जो ज्यादा समय से है और ठीक नहीं हो रही है तो कैंसर हो सकता है | इसके अलावा रोगी में रक्त कणिकाओं की कमी , दुर्बलता की वृद्धि तथा बेचैनी की वृद्धि भी परिलक्षित होती है | इस रोग में व्यक्ति के वातावरणीय कारक और दूषित रहन-सहन का परिवेश भी जिम्मेदार है | इसीलिए हर स्थान पर इसरोग के एक जैसे लक्षण पाया जाना नहीं देखा गया है | प्रारम्भ में इस रोग में प्रमुख रुप से जीभ , स्तन , तालु , दांत , नाक , आंख , अन्ननलिका , पेट , स्त्री जननेंद्रिय , पैर की उंगलियों और चमड़ी आदि प्रभावित होती है | आयुर्वेद में इस रोग की उत्पत्ति का कारण मिथ्या आहार-विहार तथा प्रज्ञापराध को माना है | धूम्रपान , मदिरापान और तरह-तरह के नशे भी इसका कारण हो सकते हैं | इसलिए रोगी को इनका उपयोग तुरंत ही बंद कर देना चाहिए |
अनुभूत और परीक्षित इलाज
इस रोग के रोगी को चाहिए कि वह प्रतिदिन देसी गाय का मूत्र इकट्ठा करें | इस मूत्र को किसी 8 परत वाले सूती कपड़े से छानकर साफ करें | इसके बाद इसकी लगभग एक कप मात्रा प्रातः पी लिया करे | इसी प्रकार शाम को भी एक कप पी लिया करें | इस बात को गांठ बांध लें गाय का मूत्र कोई ऐसी वैसी चीज नहीं है | यह एक चमत्कारिक औषधि भी है | कैंसर पीड़ित व्यक्ति के शरीर में एक तत्व की विशेष रुप से कमी हो जाती है | इस तत्व को करक्यूमिन कहा जाता है | जिसकी प्रचुर मात्रा गाय के मूत्र में मौजूद होती है , जो कैंसर रोग की जड़ों को ही नष्ट कर देती है | करक्यूमिन तत्व केवल गाय के मूत्र में या फिर हल्दी में ही पाया जाता है | इसलिए गाय का मूत्र पीने में बिल्कुल हिचक न करें | लोग तो इससे भी बेकार जायके वाली और दुर्गंध तथा सड़ांध से परिपूर्ण मदिरा को केवल मनोरंजन के लिए पी जाते हैं | पर आप तो चिकित्सा कर रहे हैं , आपको तो भयंकर जानलेवा बीमारी से छुटकारा पाना है , फिर ऐसे आपको पीने में क्या कष्ट है | थोड़ा सा धैर्य धारण करें , मन की गंदगी साफ करें , और इसे जीवन अमृत समझ कर पी लें | यह औषधि तो आप का कष्ट हरण करने वाली है | इसलिए कोई झिझक , बिना किसी हीलहुज्जत के इसका सेवन कर ही लें | इस हेतु किसी प्रकार का विचार बिल्कुल ही न करें | आप पूरा विश्वास करें कि आपको इस औषधि से ठीक होना ही है | कैंसर आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है | उसे तो ठीक होना ही पड़ेगा | हाँ अगर आपको शरीर को गोमूत्र से ज्यादा प्यार करते हैं तो इसे बिलकुल ही न पियें और किसी भी मरने के लिए तैयार रहें , क्योंकि मौत तो आपका इन्तजार कर ही रही है | अपने जीवन ,मरण का फैसला तो आपको ही करना है | यह एक ऐसा नुस्खा है जिसे अनेकों लोगों पर अपनाया जा चुका है तथा इसके सफल परिणाम भी मिले हैं |
पूरक चिकित्सा
उपरोक्त चिकित्सा से आपका ठीक होने की गारंटी लेता है | पर यह औषधि करने के साथ ही रोगी को चाहिए कि वह रात में सोते समय 7 से 10 ग्राम पिसी हल्दी का चूर्ण मुंह में डालकर धीरे-धीरे उसे पेट के अंदर करता जाए | इस प्रक्रिया में उसे लगभग 15 मिनट लगाना चाहिए | आप चाहे तो प्रारंभ हमें इसकी कम मात्रा लेकर के करके इसे खाने का अभ्यास करें , बाद में पूरी मात्रा का सेवन करते रहें | [ यह आपकी इच्छा पर निर्भर करता है की आप पूरक इलाज करें अथवा न करे , तो आप केवल से ही हो जायेंगे ] अगर आपको मृत्यु के मुख से बचना है तथा कैंसर पर विजय पानी है तो , आपको यह करना ही होगा इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है | यदि आप पूरी लगन और श्रद्धा के साथ इस औषधि का प्रयोग करते हैं तो आप का कैंसर पर विजय प्राप्त करना निश्चित है |


जय आयुर्वेद


Web - gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

1 इलाज ; मोटापा

web - gsirg.com helpsir.blogspot.in इलाज ; मोटापा इस दुनिया में हर एक प्राणी सुगठित , सुंदर और सुडोल तथा मनमोहक शरीर वाला होना चाहता है | इसके लिए वह तरह तरह के व्यायाम करता है | सुडौल शरीर पाने के लिए वह हर व्यक्ति जो मोटापे से परेशान है , प्राणायाम और योग का भी सहारा लेता है | लेकिन उसका वातावरणीय प्रदूषण , अनियमित आहार-विहार उसके शरीर को कहीं ना कहीं से थोड़ा या बहुत बेडौल कुरूप या भद्दा बना ही देते हैं | आदमियों के शरीर में होने वाली इन कमियों मैं एक मोटापा भी है | जिसके कारण व्यक्ति का शरीर बेबी डॉल जैसा दिखाई पड़ने लगता है | बहुत से यत्न और प्रयत्न करने के बाद भी उसे इसमें सफलता नहीं मिल पाती है | वस्तुतः शरीर का मोटा होना उस व्यक्ति के लिए लगभग अभिशाप सा होता है | वसा की आवश्यकता हमारे शरीर के अंगों और प्रत्यंगों को ढकने का कार्य बसा या चर्बी का होता है | जिसकी एक मोटी परत त्वचा के नीचे विद्यमान रहती है | इस चर्बी का काम शरीर को उष्णता प्रदान करना है ...

इलाज ; एसिड अटैक [1/15 ] D

web - gsirg.com इलाज ; एसिड अटैक के क्या कारण आजकल अखबारों में तेजाब से हमले की खबरें पढ़ने को मिल ही जाती हैं। तेजाब से हमला करने वाले व्यक्ति प्रायः मानसिक बीमार या किसी हीनभावना से ग्रस्त होते हैं। ऐसे लोग अपनी हीनभावना को छिपाने तथा उसे बल प्रदान करने के लिए अपने सामने वाले दुश्मन व्यक्ति पर तेजाब से हमला कर देते हैं। कभी-कभी इसका कारण दुश्मनी भी होता है , इसके अलावा कभी-कभी लोग अपनी आत्मरक्षा के लिए भी एसिड अटैक का अवलंबन कर लेते हैं। कारण कुछ भी हो किंतु इसमें पीड़ित को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है। ऐसे हमलों का होना या ऐसी घटनाएं होना हर देश में आम बात हो गई है। इस्लामी देशों में लड़कियों को उनकी किसी त्रुटि के कारण तो ऐसी धमकियां खुलेआम देखने को मिल जाती हैं। \\ शरीर का बचाव \\ यदि के शरीर किसी पर तेजाब से हमला होता है , उस समय शरीर के जिस भाग पर तेजाब पड़ता है , वहां पर एक विशेष प्रकार की जलन होने लगती है | इस हमले में शरीर का प्रभावित भाग बेडौल , खुरदरा और भयानक हो सकता है | इस हमले से पीड़ित व्यक्ति शरीर की त...

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वा...