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[ c/ 11] हिस्टीरिया

यह महिलाओं को होने वाला एक गुप्त रोग है ,जो अधिकतर जवान महिलाओं को हो जाया करता है | इसके कारण महिलाओं को अत्यधिक परेशानी होती है | यदि किसी कारण से किसी महिला की यौन इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती है ,अर्थात कामेच्छा आधी अधूरी रह जाती है | इसी के कारण उन्हें यह रोग हो जाया करता है | यौन इच्छा की पूर्ति ना हो पाने पर महिलाएं अपने आप को अतृप्त मानने लगती है | ऐसी अवस्था में उनके मन मस्तिष्क में कुंठा की एक भावना आ जाती है | जिसके कारण यह रोग धीरे-धीरे उनके शरीर में पांव पसारने लगता है , और कालांतर में अपना विकट रूप धारण कर लेता है | यह बीमारी अगर एक बार हो जाए तो बड़ी परेशानी से दूर हो पाती है |
सामान्य लक्षण
इस रोग से पीड़ित महिला को कभी भी , किसी समय और किसी भी स्थान बेहोशी आ जाती है | बेहोशी की हालत में उसके हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं | उसका चेहरा विकृत होकर निस्तेज हो जाता है | इसके अलावा उसके मुंह से झाग भी निकलने लगती है | रोगिणी महिलाओं को चक्कर भी आने लगते हैं | रोगिणी अर्ध पागल अवस्था में अंट शंट और उटपटांग बोलने लगती है | अगर रोहिणी को प्रकाश की ओर देखने को कहा जाए तो उसे परेशानी होती है | कभी-कभी उसका शरीर अस्वाभाविक क्रियाएं भी करने लगता है | अगर कोई दूसरा व्यक्ति उसके शरीर को छू ले , उस समय उसे बहुत ही दर्द होता है |
रोग के कष्टकारी लक्षण
रोगिणी को सांस लेने में कठिनाई होती है गले में दर्द होता है , और कभी-कभी तो शरीर के किसी किसी हिस्से में हमेशा ही दर्द बना रहता है | रोहिणी को ऐसा महसूस होता है जैसे उसके पेट में वायु का गोला सा उठा है | ऐसा महसूस होने के बाद वह बेहोश हो जाती है | रोग के प्रसार के समय उसकी मानसिक स्थिति संज्ञाशून्य हो जाती है | रोग शुरू होने के पूर्व तथा पश्चात महिलाओं को हृदय के क्षेत्र मैं दर्द का एहसास होता रहता है | उसके मुंह से अक्सर जंभाई आती रहती है | रोहिणी अक्सर दुखी रहती है , और शरीर में भी कहीं-कहीं दर्द का अनुभव करती रहती है |
रोग के कारण
हिस्टीरिया रोग से पीड़ित महिला को कामेच्छा की अतृप्ति बने रहना इसका एक प्रमुख लक्षण है | इसके अलावा उसके शरीर में खून की कमी बनी रहती है | उसकी पाचन शक्ति प्रदूषित हो जाती है | रोगी महिला में यह लक्षण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके शोक करने के कारण होते हैं | इन्ही कारणों के परिणामस्वरूप यह बीमारी होती है |
उपचार
इस रोग से पीड़ित महिला का इलाज करते समय सबसे पहले उसके रोग के के कारणों और रोग की तीव्रता पर विचार करना चाहिए | उसके बाद ही उपचार शुरू करना चाहिए रोगिणी को हरदम यह विश्वास दिलाते रहना चाहिए कि उसका रोग कोई बहुत बड़ा रोग नहीं है | वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी | यदि ऐसे विचार रोगी के मन में आ जाते हैं | तो उसका उपचार करने में भी आसानी होती है | उपचार के लिए चिकित्सक को चाहिए कि वह ब्राह्मी , जटामांसी , शंखपुष्पी , असगंध और बच का समान मात्रा का चूर्ण बनाकर रखें | इस चूर्ण की 3 से 5 ग्राम की मात्रा रोगिणी की शक्ति अर्थात बलाबल के अनुसार देना चाहिए | ऐसी मात्राएं प्रतिदिन रागिनी को दिन में दो बार देनी होती है | दवा को भोजन के बाद दूध के साथ सेवन कराया जा सकता है | इससे रोग दूर हो जाता है | क्योंकि रोज बहुत ही कठिन होता है इसलिए उपचार भी लंबे समय तक चलेगा |
पूरक उपचार
चिकित्सक को चाहिए कि उपरोक्त उपचार के साथ भोजन के बाद रोहिणी को दो चम्मच सारस्वतारिष्ट भी पानी में मिलाकर सेवन कराएं | इसके अलावा ब्राह्मी वटी और अमरसुंदरी वटी की एक-एक टिकिया सुबह और रात को सोते समय सेवन करने की सलाह दी जाय | इसके साथ ही रोगी को ऐसे पदार्थ खाने खिलाने से मना कर दिया जाय जिनसे वायु का प्रकोप बढ़ता हो | इस चिकित्सा को करने के बाद रोगी को रोग से छुट्टी मिलने की पूरी संभावना रहती है | रोगी के परिजनों को चाहिए कि वे रोगी के लिए स्वच्छ वातावरण , साफ कपड़े और हवादार कमरे की व्यवस्था भी करें | उसके पति का यह हरदम प्रयास रहना चाहिए कि वह रोगिणी से प्यार भरी बातें करे ,और सम्भोग के समय उसकी कामेच्छा अतृप्त ना रह जाए इसकी पूरी कोशिश किया करे | इसके अलावा पीड़ित महिला के साथ परिवारजनों का व्यवहार उसके प्रति सद्भावनापूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए | इससे भी रोगिणी की मानसिक दशा में सुधार की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ,तथा रोग को निर्मूल होने में समय कम लगता है |

जय आयुर्वेद

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