सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

धर्म ; सफलता देने वाली तथा धन वर्षिणी साधनाएं [ भाग 2 ]

web - gsirg.com


धर्म ; सफलता देने वाली तथा धन वर्षिणी साधनाएं [ भाग 2 ]


पाठको आपने इसके प्रथम भाग में पढा होगा कि सात्विक भाव से की गई साधनाएं , व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता दिला सकती हैं | अगर व्यक्ति अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सतत प्रयास करे , इसमें दो राय नही है कि उसे सफलता न मिले | इस संसार में कर्म ही प्रधान है , तथा सात्विक भाव से की गई साधना कभी बेकार नहीं जाती है | आपने अपने आसपास ऐसे व्यक्तियों को देखा होगा , जिनका जीवन अभावों से भरा रहा है , परंतु अचानक उनका भाग्य पलट जाता है , और वे सब प्रकार की कठिनाइयों से मुक्त होकर , हर तरह के वैभव का लाभ उठाते हैं | वस्तुतः ऐसे लोगों के कर्म और उनके द्वारा की गई साधनाएं ही उनके जीवन में यह सफलताएं दिलवाती हैं | इन साधनों की पूर्ति के बाद , व्यक्ति की वह हर इच्छा पूरी हो जाती है , जिसके लिए वह प्रयास करता है | जब साधक अपने गुरु के निर्देशानुसार साधनात्मक चेतना को आत्मसात कर लेता है , तब उसके जीवन में स्थाई रूप से सफलताओं के सभी रंग चटक होकर खिलने लग जाते हैं |


जब कोई साधक इन साधनाओं को साधनात्मक भाव से आत्मसात करने के लिए होली पर्व का चयन करता है , तब उसकी साधनाओं का प्रतिफल उसे अवश्य मिलता है , तथा उसका अपना जीवन को सप्त रंगों से युक्त धन कामना से परिपूर्ण ,सुख - सम्मोहन से भरपूर और सौंदर्य संयुक्त बन जाता है |


पापमोचिनी हितकारिणी साधना का चमत्कार

ऐसे व्यक्ति जो अपने जीवन में अनेकानेक अविरल प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त कर पाते हैं , या किसी अन्य पीड़ा से व्यथित रहते हैं | उससमय ऐसा माना जाता है कि यह उनके पूर्व जन्म का दोष है | इन दोषों को दूर करने के लिए उपरोक्त पापमोचनी हितकारिणी साधना करने से , उसके जीवन की समस्त बाधाएं नष्ट हो जाती हैं |


हमारे देश के प्राचीन साधकों ने होली के पर्व को पापमोचिनी दिवस भी कहा है क्योंकि इस त्यौहार पर अनेको -अनेकानेक साधक हर साल '' पाप दोष निवारण साधना '' संपन्न करते हैं | इस साधना को करने वाले साधकों को पाप दोषों के निवारण हेतु अपने गुरु से निर्देश लेकर अपनी यह साधना संपन्न करते हैं | जिसका परिणाम यह होता है कि , साधक पूर्व के पाप कर्मों से निवृत्त हो , शीघ्र ही भौतिक व् आध्यात्मिक जीवन में सफलता अर्जित कर लेते हैं |


साधना की विधि

साधक को चाहिए कि जिस दिन होलिका दहन की रात हो | उस रात्रि को सायं 7 बजे स्नान आदि से निवृत होकर , पीत वस्त्र धारण करें और दक्षिण की ओर मुंह करके बैठ जाए | इसके पश्चात दोनों हाथ जोड़कर गणेश भगवान का स्मरण कर रोली , पुष्प , अगरबत्ती , दीपक और प्रसाद आदि से पूजन करें | पूजा की समाप्ति पर दो माला गुरु मंत्र का जप भी करे | इसके पश्चात अपने सामने ताम्र पट्टिका पर पाप दोष निवारण यंत्र स्थापित करें | फिर इस पर सिंदूर की 7 बिंदिया दाहिने हाथ की अनामिका से लगाए और फिर इस '' पाप दोष निवारण यंत्र '' का पूजन धूप दीप और पुष्प से करें | इतना करने के पश्चात दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प बोले कि , मैं ( अपना नाम ) यह साधना श्री गणेश भगवान और गुरुदेव को साक्षी मानकर अपने जीवन , घर - परिवार , व्यापार पर् व्याप्त सभी तरह के पाप दोष और बाधाओं के निवारण के लिए कर रहा हूं | इतना करने के पश्चात अपने आसन से उठकर पास की दूसरी जगह पर बैठकर '' मूंगा माला '' से निम्नलिखित मंत्र का 5 बार जप करें |


मंत्र - '' ॐ क्लीं मम समस्त पूर्व दोषान निवारय क्लीं फट्ट स्वाहा ''

उपरोक्त सभी धार्मिक क्रियाएं संपन्न करने के पश्चात , '' गुरु मंत्र '' की एक माला का जप करे | जप के पूर्ण हो जाने पर वहां पर रखी गई समस्त सामग्री को जलती हुई होली का मे दान कर दे / विसर्जित कर दे |




तांत्रिक प्रयोगों के पलटवार हेतु


यदि किसी व्यक्ति पर तांत्रिक प्रयोगों द्वारा व्यापार बंधन , बुद्धिस्तंभन , गर्भबंधन , भूत - प्रेत - पिशाच शक्तियों के प्रयोग करवाए गए हो तो उनसे मुक्ति के लिए यह साधना की जाती है |यह साधना से इन बाधाओं से मुक्ति के लिए संपन्न की जाती है | हमारा यह समाज जिसे हम आधुनिक और शिक्षित कहते हैं , इसके अंदर भी कई प्रकार की विसंगतियाँ पाई जाती है , जिसके कारण तीव्र घात - प्रतिघात चलते रहते हैं | लोगों के भीतर घोर वैमन्सयता भरी रहती है | जिसके कारण लोगों के सामने विभिन्न प्रकार की ऐसी बाधाएं आती हैं , जिनका उसे पता नहीं चल पाता है | यह बाधाएं व्यक्ति के जीवन को विभिन्न प्रकार की बाधाओं और भटकावों से भर देती हैं | इस प्रकार के गुप्त घातों और प्रतिघातों में सीधे रूप से कुछ पता नहीं चल पाता है | किस-किस को इसका जिम्मेदार माना जाए ? इसका भी पता नही चल पाता है | क्योंकि इनका प्रमाणन संभव नहीं होता है |


कुछ व्याधियां तो इतनी विकराल होती हैं कि , यह व्याधियां उस व्यक्ति पर विपत्तियों का कहर बनकर टूट पड़ती हैं , अथवा कोई ऐसी घटना जो सामान्य प्रतीत होती हो , की उत्पत्ति होने लगती है |


इस साधना को संपन्न करने वाले साधक के चारों ओर एक प्रकार के सुरक्षा चक्र का निर्माण हो जाता है | यदि किसी विरोधी व्यक्ति ने ऐसे प्रयोग करवा दिए हैं , जिससे उसके व्यापार में वृद्धि नहीं होती है या भूत - पिशाची शक्तियों का आगमन हो गया है | या फिर उसकी बुद्धि इस प्रकार से भ्रष्ट हो जाती है , कि उसे कुछ समझ मे ही नहीं आता है | अथवा जो लोग माता पिता बनने से वंचित रह जाते हैं , उन्हें इन बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है |


प्रयोग विधि

साधक को चाहिए कि होली दहन की रात्रि मे 11 बजे के आसपास बैठकर यह जप साधना करे | इसके लिए साधक को पहले से ही 10 '' तांत्रोक्त फलों '' की व्यवस्था करना होता है | साधना के समय साधक को प्रत्येक '' फल '' के समक्ष एक तेल का एक - एक दीपक जलाना पड़ता है , तथा '' काली हकीक '' की माला से निम्न मंत्र का दो माला जप करना होता है |


मंत्र - '' ॐ लां ॐ स्त्रीं ॐ स्त्रू ॐ स्वः ''

का पाठ कर साधना करें | उसके दूसरे दिन प्रातः सभी 10 फलों और माला को साथ लेकर सुनसान स्थान पर जाए , और फावड़े से गहरा गड्ढा खोदकर इन्हे दबा दें | ऐसा करने से उसे व्यापार में सफलता मिलती है तथा स्तंभन और तंत्र प्रयोग आदि से मुक्ति मिल जाती है |

मेरे विद्धान पाठकगणों आप इन तंत्र साधनाओं को सिद्ध करके जीवन के अधिकांश क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं | मात्र इस लेख के पढ़ लेने से ही कुछ नहीं होने वाला है | सफलता पाने के लिए आपको साधना कर्म करना ही होगा , जैसा की रामायण मे भी लिखा गया है कि - '' जाने बिनु न होई परतीती , बिनु परतीति होय नहि प्रीति ''
इस पर आप विश्वास करें और जीवन में चतुर्दिक सफलता प्राप्त करने के लिए उपरोक्त साधनाओं को संपन्न करें और सफलता अर्जित करें | धन्यवाद , प्रणाम , नमस्कार |

इति श्री


web - gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक छिपकली की कहानी

एक प्रेरणादायक कहानी यह सच्ची कहानी हम सभी को आशावान् परोपकारी और कर्मशील बने रहने की शिक्षा एवम् प्रेरणा देती है। जब एक छिपकली कर सकती है, तो हम क्यों नहीं?       [यह जापान म...

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वा...

11 इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण

web -  helpsir.blogspot.in  इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण मेरे सुविज्ञ पाठकगणों कुछ ऐसी बीमारियाँ  होती है , जो विशेष समय पर ही होती हैं , इन्हे हम बोलचाल की भाषा मे '' समसामयिक बीमारियां  '' कहते हैं जैसे सर्दी जुकाम | ें यह बीमारियों का एक निश्चित समय पर तथा निश्चित वातावरण मे अनायास ही व्यक्ति को अपनी गिरफ्त मे लेकर अपना भयावह स्वरुप  दिखाने लग जाती है | जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह गर्मी के दिन है | इस समय सभी किसान भाई अपनी गेहूँ कि फसल तैयार करके अपना गेहूँ घर लाने मे लगे हुए हैं | किसान इस फसल को घर लाने से पहले उसकी कटाई व मड़ाई करते है | मड़ाई के बाद ही किसान को गेहूँ के साथ जानवरों को खिलाने के लिए '' भूसा '' भी मिल जाता है |      यह समय रवी की फसल गेहूँ की कटाई, मड़ाई का हैं | सभी किसान का यह काम जोरों पर है।मड़ाई के कारण चारों ओर '' भूसे '' के छोटे छोटे कण वायुमंडल में प्रचुरता से विद्यमान रहते हैं। इसीतरह धनिया और तिलहन आदि फसलो  के छोटे छोटे कण भी वातावरण मे बहुतायत से फैले हुए होते है...