सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

[ j/1 ] बूढ़ों को काम शक्ति से भरपूर बनाने वाली औषधि

web - gsirg.com

बूढ़ों को काम शक्ति से भरपूर बनाने वाली औषधि

यह तो सभी जानते हैं कि जीवन का आखिरी चरण अर्थात बुढ़ापा होना एक शारीरिक प्रक्रिया है | शरीर के बुड्ढे हो जाने पर व्यक्ति की सभी इंद्रियां और अंग प्रत्यंग कमजोर हो जाते हैं | प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूरे जीवन का एक लंबा अनुभव होता है | बुढ़ापे मे आदमी का शरीर अवश्य कमजोर हो जाता है , परन्तु उसका मन कभी कमजोर नहीं हो पाता है | क्योंकि व्यक्ति के मन की कोई उम्र उम्र सीमा नहीं होती है | इसलिए मन सदैव ही जवान बना रहता है | दूसरे शब्दों में इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि मन पर काल का प्रभाव कभी नहीं पड़ता है |

मन की अनंत इच्छाएं

प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अनेकों इच्छाएं करता रहता है , तथा उनकी पूर्ति के लिए आजीवन उसमें संलग्न भी रहता है | पर उसकी यह इच्छाएं केवल और केवल उसकी मृत्यु के बाद ही उसका पीछा छोड़ती है | ऐसी ही अनेकों इच्छाओं में कामेच्छा भी शामिल है | हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख और संपत्ति के साथ साथ कामेच्छा से भी जुड़ा रहना चाहता है | सुख और संपत्ति की इच्छाओं की पूर्ति के बाद अथवा न होने के बाद भी ,व्यक्ति की कामेच्छा कभी खत्म नहीं होती है | यही कारण है की उम्र के चौथेपन में भी वह अपनी कामवासना से दूर नहीं रह पाता है | हालांकि इस उम्र में उसके सभी अंग कमजोर होते हैं , और वह अपने जीवनसाथी की इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाता है , फिर भी वह अपनी कामवासना की पूर्ति के लिए वह प्रयासरत जरूर रहता है | आज हम आपको एक ऐसी औषधि को बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा बूढ़े भी अपने जीवनसाथी की कामेच्छा की पूर्ति कर सकते हैं | इसऔषधि से वह युवा भी लाभ उठा सकते हैं , जिनकी किसी भी उम्र में काम शक्ति कमजोर पड़ गई हो |

औषधि बनाने की विधि

इस औषधि बनाने के लिए व्यक्ति को बबूल नामक वृक्ष की फलियों की आवश्यकता होती है | बबूल को पंजाबी मे कीकर भी कहते हैं | यह एक प्रचलित नाम है , जिसके कारण इस वृक्ष को पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं होता है | इतना अवश्य हो सकता है कि इसकी कच्ची फलियों के लिए लंबा इंतजार करना पड़े , क्योंकि इसमें फूल आने के लगभग 9 माह पश्चात् की औषधि के लिए उपयुक्त फलियां मिल सकती है |

औषधि निर्माण की विधि

यदि आप इस औषधि को बनाना चाहते हैं , तब आपको किसी खादी की दुकान से सफेद खादी का एक कपड़ा लाना पड़ेगा | अब किसी एक एकांत कमरे में जहां कोई आता जाता नहीं हो , उसका चुनाव करें | उस कमरे में लकड़ी की चार खूंटीयां बराबर बराबर दूरी पर जमीन में प्रवेश करा दें | खूंटियों का ऊपरी सिरा जमीन से काफी ऊपर होना चाहिए | अब इन चारों खूंटियों से खादी के कपड़े को मचान की तरह तना हुआ बांध दें | इसके पश्चात आप कीकर ऐसी फलियां ले आए , जिनमें अभी बीज न बना हो | इन फलियों को सिलबट्टे की सहायता से कूट-कूटकर नरम कर ले | अब इसकी थोड़ी सी मात्रा लेकर कड़े हाथों से मसलते हुए फलियों का रस खादी के तने हुए कपड़े पर टपकाना शुरु कर दें | इसी तरह से रोज फलियां लाते रहे , तथा उनका रस खादी के तने हुए कपड़े पर टपकाते रहे | कुछ दिनों के बाद खादी के कपड़े पर इस रस की सूखी हुई मोटी परत बन जाएगी इसको आप सहेज कर रख लें | यही आपकी उपयुक्त औषधि है |

प्रयोग विधि

प्रयोग करने वाले को चाहिए कि वह सुबह उठकर सभी नित्य क्रियाएं करने के पश्चात , लगभग आधा लीटर देसी गाय का दूध उबाले | तत्पश्चात गुनगुना गर्म रहने पर उसमें 1 इंच की वर्गाकार औषधि को दूध में अच्छी तरह से मिला दे | जब औषधि पूर्ण रूप से दूध में मिल जाए , तब उसे गुनगुना ही पी ले | यह प्रयोग लगभग 3 माह तक करना चाहिए |

सावधानियां

औषधि का सेवन प्रारंभ करने से पूर्व रोगी को चाहिए कि वह अपने आमाशय तथा कब्ज को ठीक कर ले | औषधि के सेवन काल में रोगी को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए , उसे गंदे और कामुक विचारों और स्त्री प्रसंग से दूर रहना चाहिए | इस समय में खटाई , लाल मिर्च , बासी और तेल से बने खाद्य पदार्थों , गरिष्ठ भोजन , और गुड़ आदि का सेवन पूर्णतयाः वर्जित है | इस काल में दूध घी दही और दूध से बने पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन करें | दवा सेवन के 50 मिनट बाद नाश्ता किया जा सकता है नाश्ते में मुनक्का या किशमिश , छुहारे , मिश्री और अन्य मेवे दूध मे डालकर उबालकर गुनगुना रहते हुए खा लिया करें | प्रतिदिन हल्का भोजन करें , तथा शाम को केवल पतली खिचड़ी ही खाए |

औषधि काल पूर्ण होने पर वृद्धों को तथा शक्ति क्षीण युवाओं को अपने अंदर एक 20 वर्ष के युवा के समान काम शक्ति की प्राप्ति हो जाएगी , तथा उसका पारिवारिक जीवन सफल होता जाएगा | जिन पुरुषों की पत्नियां अपने पुरुष की कामेच्छा से तृप्त नहीं हो पाती हैं , वे मन में अनेकों प्रकार के विचार बनाती रहती हैं , कभी-कभी तो तलाक की नौबत भी आ जाती है | इस औषधि के सेवन से ही आदमी को इन भविष्य मे होने वाली इन समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाएगा तथा उसके जीवन में फिर से खुशियों की बौछार हो जाएगी |

जय आयुर्वेद

web - gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में