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धर्म ; परब्रह्म ही है सृष्टि के वास्तविक नियंता
लोगों के अंतर्मन में अनेक जिज्ञासाएं भरी होती है | व्यक्ति के जन्म लेने के बाद ही उसके मन में अनेकों प्रकार के विचार तथा प्रश्न उमड़ने , घुमड़ने लगते हैं | युवा अवस्था आने तक , कुछ प्रश्न तो अपने आप गायब हो जाते हैं , तथा कुछ नई जिज्ञासाओं का जन्म अपने आप होने लगता है | कुछ ऐसी ही जिज्ञासाएं और प्रश्न- नूतन अनुसंधानों तथा नई उपलब्धियों का आधार बन जाते हैं , जैसे प्राणी के जीवन में एक विचार अवश्य पैदा होता है , कि इस संसार का निर्माण कैसे हुआ है , इसकी उत्पत्ति कैसे हुई है तथा इसका अंत कहां है | उपरोक्त जिज्ञासाएं वैज्ञानिकों और दार्शनिकों को समान रूप से उद्वेलित करती रहती हैं |
ब्रह्मांड की उत्पत्ति
यदि विज्ञान की माना जाए तो , अनेकों सिद्धांतों की यात्रा तय करने के बाद जो परिणाम प्राप्त होता है | उसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति , एक अत्यधिक छोटे अणु से हुई मानी जाती है , जिसकी तुलना हम आज के सबसे छोटे ज्ञात कण प्रोटान से करें , जो स्वयं एक बहुत छोटा कण है , इतना छोटा कि स्याही के एक बिंदु में लगभग 5 खरब प्रोटान समा जाते हैं | इस प्रोटान के भी एक खराबवे हिस्से में जितना भी एक दृश्यमान ब्रह्मांड है , उसे समा दें तो , यह स्थिति सिंगुलैरिटी की बन जाती है | वैज्ञानिकों का मानना है कि , ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक ऐसे ही छोटे से अणु से हुई मानी जा सकती है | शायद इसी में ब्रह्मांड समाया हुआ था |
ब्रम्हांड का निर्माण
हम समय को अनेक प्रकार मे एक प्रकार का आयाम [ डायमेंशन ] मान सकते हैं | अगर इस पर पुनः विचार किया जाए तो , ब्रह्मांड का निर्माण होने से पूर्व क्या था , यह कभी नहीं जाना जा सकता | इसी प्रकार इसका अंत कब होगा , यह भी नहीं जाना जा सकता है | इसीलिए ब्रह्मांड को अनंत और अनादि कहा गया है | हमारे ऋषि मुनि और उपनिषदकारों द्वारा प्राप्त यह जानकारी '' यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे '' भी , इसी ओर इशारा करती है | यही सिंगुलरिटी का सिद्धांत भी है | इस सिद्धांत तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों को वर्षों तक शोध करना पड़ा है | उनके अनुसार इस ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति शून्य से हुई है है | उनका मानना है कि ब्रह्मांड बनने से पूर्व यहां पर कुछ नहीं था , परंतु जैसे ही सृष्टि निर्माण के प्रथम सेकंड के भी अत्यल्प भाग में गुरुत्वाकर्षण तथा अन्य बलों ने जन्म ले लिया | इन्हीं बलों से भौतिक शास्त्र के अनेक सिद्धांत निकल कर आते हैं | वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि जैसे ही ब्रह्मांड बनने का एक मिनट पूर्ण हुआ , उसका विस्तार खरबों मील तक पहुंच चुका था | कुछ दिनों पूर्व हुई गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोजो ने इस सत्यता को प्रगाढ़ता के साथ सिद्ध किया है | जिके कारण को वर्तमान की वैज्ञानिक गणनाएं मान भी चुकी हैं | इनके अनुसार ब्रह्मांड के फैलने की गति 4.3 खराब मील प्रति सेकंड बताई गयी है |
अतिमानवीय चेतना की उपस्थिति
वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्तमान में जितना भी गुरुत्वाकर्षण बल विद्यमान है , यदि उसमें एक अंश मात्र भी बल कम हो जाए तो , मानव जीवन के लिए जिन स्थिर तत्वों की जरूरत होती है , वह कभी भी अस्तित्व में नहीं आ पाते | इसके विपरीत यदि यह मान उतना ही अधिक होता तो ब्रह्मांड एक जरूरत से ज्यादा विस्तृत हुए तंबू की तरह टूट कर सिकुड़ गया होता | परंतु इसका एकदम सही व सम्यक तत्व के साथ होना किसी अज्ञात , अति मानवीय चेतना की उपस्थिति की ओर इशारा करता है | जिसे हम परबृम्ह नाम से जान रहे हैं |
असीमित और अनंत है हमारा ब्रह्मांड
हमारे सामने वर्तमान ब्रह्मांड का जो स्वरूप उपस्थित है , वह अनंत है , और गणितीय दृष्टि से इसका कोई अंत नहीं है | इसका कारण है कि यह स्वयं ही निर्मित हुआ है , और स्वयं ही स्थित भी है | इस ब्रह्मांड को प्रसिद्ध भौतिक शास्त्र सर आइंस्टीन ने एक फैलते हुए बुलबुले के रूप में परिभाषित किया है , तथा इसके विस्तार को अनंत माना है | यही कारण है कि अगर हम एक स्थान से चलना शुरू करें तक खरबों वर्षों की यात्रा के बाद हम पुनः उसी स्थान पर पहुंच जाते हैं | इस से ज्ञात होता है कि हमारा ब्रह्मांड अनंत है | वैज्ञानिकों ने इसकी चौड़ाई को लगभग 93 खरब प्रकाशवर्ष माना है | हमारे उपनिषद कारों ने तो इस तथ्य को बहुत पहले ही जान लिया था , उन्होंने बहुत पहले ही असीमित ब्रह्मांड को अनंत और परब्रह्म के नाम से जाना था |
\\\\ बड़े ही आश्चर्य की बात है कि आज के वैज्ञानिक भी उन्हीं तथ्यों की पुष्टि करते हैं | जिनको हमारे देश के आत्मवेत्ताओं ने बहुत पहले ही जान लिया था , तथा अपने ज्ञान से संपूर्ण विश्व को , इस तथ्य से परिचित भी करा दिया था | अब तो व्यर्थ की बातें पर परस्पर विरोध पैदा करने के बजाए इन पर प्राच्य अनुसंधानों का सहारा लेकर, वर्तमान चिंतकों को मानवता की राह दिखाने का उपाय सोचना चाहिए | हमारे पूर्व के ज्ञानी , विज्ञानी , मुनियों और आत्मवेत्ताओं के जान को ही वैज्ञानिक आज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर सिद्ध कर रहे हैं | इसतरह से तो वह लोग एक प्रकार से व्यर्थ का कार्य कर रहे हैं | जब दोनों ही धाराएं ब्रह्मांड के अस्तित्व की परिकल्पना को समान मान ही रहे हैं , तब दोनों को ही चाहिए कि वे साथ-साथ समरसता से चलने का समन्वय बनाएं , तब ही वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की अभिकल्पना सच्चे अर्थों में साकार हो सकेगी , जैसा कि हमारा अध्यात्म मानता भी बहुत प्राचीन पूर्व यह सिद्ध ही कर चुका है कि , समस्त ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला परब्रह्म ही है | तब तो वैज्ञानिक अपनी खोजों के आधार पर इसे ही खोजेंगे | अंत मे वह भी इस तथ्य को मान लेंगे कि परबृम्ह ही हैं \ सृष्टि के वास्तविक नियंता |
इति श्री
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