सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

[ a/11 ] इलाज ; श्वास रोग या दमा का एक ही सप्ताह में इलाज


web - gsirg.com
इलाज ; श्वास रोग या दमा का एक ही सप्ताह में इलाज
हमारे शरीर में कई महत्वपूर्ण संस्थान हैं , जिनमें श्वसन संस्थान का महत्वपूर्ण स्थान है | इसी संस्थान की प्रक्रिया द्वारा मनुष्य शरीर में प्राण वायु [ आक्सीजन ] जाती है , और दूषित वायु [कार्बन डाई आक्साइड ] बाहर निकलती है | सांस लेने की प्रक्रिया श्वास नली के माध्यम से होती है | किन्हीं कारणों से यदि श्वास नली में सूजन आ जाए या उसमें कफ जमा हो जाए तो सांस लेने में कठिनाई होती है | श्वास नलिका के संक्रमण को श्वास रोग का होना कहा जाता है , इस रोग में पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में बहुत ही दिक्कत होती है |
लक्षण
श्वसन संस्थान की श्वसन क्रिया का माध्यम बनने वाली श्वास नली में सूजन होना इसका एक प्रमुख कारण है | इसके लिए लोगों के आसपास का दूषित वातावरण अनियमित आहार विहार और दूषित खानपान जिम्मेदार है | वातावरण के प्रदूषण से तथा खान पान के प्रदूषण और अनियमितता से श्वास नली पर प्रभाव पड़ता है | जिसके कारण श्वास नली में कफ इकट्ठा हो जाता है | श्वास नली में कफ इकट्ठा हो जाने से वायु के आने जाने का क्रम बाधित होता है , इससे व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होती है | कभी-कभी रोगी की बेचैनी और घबराहट अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है | जिसके कारण वह रात को सो नहीं पाता है | पीड़ित व्यक्ति रात भर बिस्तर पर बैठा रहता है | यह दौरा प्रायः सुबह ब्रह्म मुहूर्त मैं पड़ता है | सांस लेने की कठिनाई की यह दशा कुछ घंटों से लेकर कई दिनों तक की भी हो सकती है |
श्वास रोग के प्रकार
आयुर्वेद के विशेषज्ञों ने दमा या श्वास रोग को पांच प्रकारों में बांटा है | [ एक ] महाश्वास [दो ] उर्ध्वश्वांस [ 3 ] तमकश्वास [ चार ] छीणश्वाँस और [पाँच ] छुद्रश्वाँस | इन पांच प्रकार के श्वास रोगों में महाश्वाँस को असाध्य माना गया है | इसकी चिकित्सा कर के रोगी को ठीक करना असंभव होता है | इसीतरह दूसरे और तीसरे प्रकार के श्वांस रोगों चिकित्सा सफलतापूर्वक की जा सकती है | परन्तु शर्त यह है इनका का पता प्रारंभिक अवस्था में ही चल जाए | बाकी के दो प्रकार श्वाँस रोगों का सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है |
आयुर्वेद में श्वास रोग का परीक्षित और अनुभूत इलाज
आयुर्वेद में श्वास रोग का परीक्षित और अनुभूत इलाज संभव है | इस रोग की चिकित्सा करते समय चिकित्सक को पहले ही तैयार होना होता है | चिकित्सक को चाहिए कि वह दिन के समय लटजीरा के ऐसे पौधों को देख आए जिनको वह सुविधापूर्वक रात के अंधेरे में भी उसे पा सके | चिकित्सक सबसे पहले दो नग कालीमिर्च का इन्तजाम कर लेना चाहिए , इसके बाद अमावस्या की रात तक का इंतजार करें | जिस दिन अमावस्या को उस रात को घनघोर अंधेरे में अपामार्ग के पौधों के पास जाकर उसके बीस ग्राम पत्ते तोड़ लाएं | जिस समय पत्ते तोड़े जाएं उस समय किसी भी प्रकार का प्रकाश बैटरी या लालटेन उसके पास में नहीं होनी चाहिए , क्योंकि प्रकाश लग जाने से दवा का प्रभाव नहीं हो पाता है |
अपामार्ग के पत्तों को तुरंत ही घर लाकर किसी खरल में डालकर घोंटना होता है | पत्ते लगभग 2 तोले होने चाहिए , तथा पत्ते घोंटते समय 2 नग काली मिर्च जिसका इन्तजाम पहले से ही कर रखा है , मिला लेनी चाहिए | काली मिर्च का पहले से ही प्रबंध करना पड़ता हैं | खरल में दोनों ही चीजें डाल कर घोंटने के बाद अंधेरे में ही लगभग छह गोलियां बना ले | तत्पश्चात इन गोलियों को घोर अंधेरी कोठरी में अमावस्या के अंधकार में सारी रात सूखने दें | इस बात का विशेष ध्यान रखें के पत्ते को लाते जाने के समय से गोली के सूखने के लिए रखने तक , किसी भी प्रकार का प्रकाश का प्रयोग नहीं होना चाहिए
सेवन विधि
जब किसी रोगी का इलाज करना हो तो कृष्ण पक्ष की नौमी की रात्रि को एक गोली मरीज को खिलानी होती है | चिकित्सक जिस समय रोगी को दवा दे , उसे अंधेरी कोठरी में जहां दवा रखी हो , ले जाए और अंधकार में ही पानी से 1 गोली निंगलवा दे | उसके बाद अगले दिन फिर से इसी प्रकार रात मे एक गोली खिला दे | इसी प्रकार प्रतिदिन एक गोली खिलाता रहे तो एक सप्ताह में ही रोगी को श्वास रोग से पूरा लाभ मिल जाएगा | अत्यावष्यक और ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि जिस समय चिकित्स्क रोगी की चिकित्सा कर रहा हो | उसी के साथ ही रोगी को दिन में दो बार चवनप्राश का सेवन भी कराता रहे| इसके अलावा रोगी को दही केला खट्टे पदार्थ और ठंडे खाद्य पदार्थों से भी परहेज करना चाहिए | मदिरापान और धूम्रपान विशेष रूप से वर्जित है | खाने में ठंडी तासीर वाले किसी भी भोज्य पदार्थ का सेवन नही किया जाए तो , रोगी को 1 सप्ताह में ही पूर्ण लाभ हो जाएगा | पूर्ण लाभ हो जाने पर भी रोगी को लगभग 1 माह तक परहेज पूर्वक रहना होता है | उसे गुड़ , तेल , बासी भोजन , नमक ,मिर्च और खटाई खाने से भी परहेज करना पड़ता है | इससे उसे पूर्ण लाभ मिल जाता है , और उसका जीवन फिर से पूर्व की तरह चलने लगता है |

जय आयुर्वेद

web = gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक छिपकली की कहानी

एक प्रेरणादायक कहानी यह सच्ची कहानी हम सभी को आशावान् परोपकारी और कर्मशील बने रहने की शिक्षा एवम् प्रेरणा देती है। जब एक छिपकली कर सकती है, तो हम क्यों नहीं?       [यह जापान म...

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वा...

11 इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण

web -  helpsir.blogspot.in  इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण मेरे सुविज्ञ पाठकगणों कुछ ऐसी बीमारियाँ  होती है , जो विशेष समय पर ही होती हैं , इन्हे हम बोलचाल की भाषा मे '' समसामयिक बीमारियां  '' कहते हैं जैसे सर्दी जुकाम | ें यह बीमारियों का एक निश्चित समय पर तथा निश्चित वातावरण मे अनायास ही व्यक्ति को अपनी गिरफ्त मे लेकर अपना भयावह स्वरुप  दिखाने लग जाती है | जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह गर्मी के दिन है | इस समय सभी किसान भाई अपनी गेहूँ कि फसल तैयार करके अपना गेहूँ घर लाने मे लगे हुए हैं | किसान इस फसल को घर लाने से पहले उसकी कटाई व मड़ाई करते है | मड़ाई के बाद ही किसान को गेहूँ के साथ जानवरों को खिलाने के लिए '' भूसा '' भी मिल जाता है |      यह समय रवी की फसल गेहूँ की कटाई, मड़ाई का हैं | सभी किसान का यह काम जोरों पर है।मड़ाई के कारण चारों ओर '' भूसे '' के छोटे छोटे कण वायुमंडल में प्रचुरता से विद्यमान रहते हैं। इसीतरह धनिया और तिलहन आदि फसलो  के छोटे छोटे कण भी वातावरण मे बहुतायत से फैले हुए होते है...