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धर्म ; मन को एकाग्र करना ही ध्यान है
हमारे ऋषियों और मुनियों का यह एक अप्रतिम विचार है कि , ध्यान से मन का परिष्कार होता है | ध्यान से मन की स्वच्छता और सफाई होती है | परंतु जब किसी का मन ध्यान में नहीं लगता है , तब एक समस्या पैदा हो जाती है | काफी लोगों को इस समस्या की शिकायत होती है कि , उनका मन नहीं लगता है | ऐसा तभी होता है जब , मन यहां वहां भटकता रहता है , स्थिर नहीं रहता | इस पर अगर गंभीरता से विचार किया जाए तो लगता है कि ध्यान के लिए , मन और शरीर तैयार नहीं होते हैं | इसका कारण हमारे शरीर की कुछ आदतें हैं , जो हमें ध्यान से विचलित करती रहती हैं | व्यक्ति की यह कतिपय आदतें ही ध्यान के अनुकूल नहीं होती है | परिणाम स्वरुप हमारा शरीर और मन भी ध्यान के लिए तैयार नहीं होते हैं |
आदतें बदलें
ध्यान लगाने के लिए हमारे मन की एकाग्रता की आवश्यकता होती है | परन्तु यह तभी संभव है , जब हमारा शरीर हल्का और लचीला हो , ताकि देर तक स्थिर होकर ध्यान मग्न हुआ जा सके | ध्यान से शरीर मैं उत्पन्न हुई ऊर्जा को आत्मसात करने के लिए ऐसा होना परम आवश्यक होता है | जब कोई किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं कर पाता है , तब लोग निराश होकर ध्यान करना ही छोड़ देते हैं | यदि सरसरी तौर पर देखा जाए तो हमारे शरीर की कुछ निश्चित आदतें होती हैं , जबकि ध्यान शरीर की इन आदतों में शामिल नहीं है | ध्यान करना एक नया काम है , जिसकी आदत हमें डालनी होती है , ताकि हमारा मन एकाग्र होकर , इस कार्य को सहजता से संपूर्ण कर सके |
नई दिशा में प्रवेश
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि हमारे शरीर की जो आदतें नियमित रुप से हमसे जुड़ी हुई है, यदि इनमे कहीं व्यतिक्रम पैदा हो जाए तो , शरीर और मन नई आदतों को आसानी से पकड़ लेता है | उदाहरण के लिए हमारे शरीर की एक गहरी आदत है भोजन करना | सभी जानते हैं कि यह एक ऐसी आदत है , जो जन्म के पहले ही दिन से शुरू हो जाती है , तथा जीवन के अंत तक बनी रहती है | क्योंकि इसके बिना तो जीवन हो ही नहीं सकता | हमारे संपूर्ण जीवन का अस्तित्व ही इसी आदत पर खड़ा है | अगर हमें अपने मन और शरीर की आदत बदलना चाहें तो उसकी सर्वप्रथम हमें सबसे गहरी आदत को शिथिल करना होगा | इस संबंध में इस एक तथ्य का उद्घाटन बहुत ही समसामयिक होगा | हमारे प्राचीन ऋषि मुनि एक यौगिक क्रिया करते थे , जिसे '' सन गेजिंग '' कहते हैं | इस में सफलता प्राप्त कर लेने के बाद , उन्हें महीनों तक भोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती थी | इसी प्रकार अन्य आदतों का शिथिलन कर लेने पर , शरीर की भावी आदतें अस्त-व्यस्त होकर , शरीर को नई दिशा मे आसानी से प्रविष्ट करा देती हैं |
हमारा शरीर एक बायो कंप्यूटर
हमारा शरीर भी एक कंप्यूटर की ही तरह का एक अंग है , जिसमें यदि कुछ आंकड़े सुचारु रुप से डाल दिए जाएं , तब वह उसी के अनुसार चलने लगता है | यदि हमें शरीर को नए ढंग से चलाना है तो , मन के परिशोधन के लिए उस शरीर रुपी कम्प्यूटर मे नए आंकड़े डालना होगा | इस तरह से हमारी पुरानी आदतें बदलकर , नई आदतों में बदल जाएंगी | जिस प्रकार से भोजन शरीर के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है , ठीक उसी तरह हमारी पुरानी आदते जिनकी आवश्यकता नहीं है , उनकी जगह नई आदतों का समावेश करना होगा |
इंद्रिय संयम
शरीर को नए रूप में बदलने के बाद , जो दूसरी महत्वपूर्ण बात है , वह है इंद्रियों पर संयम रखना | आजकल के मॉडर्न युग में हमारी जीवनशैली दूषित हो गई है | जिसके कारण इंद्रियों पर आवश्यकता से अधिक बोझ पड़ रहा है | इस पर विचार करने की आवश्यकता है , तदनुसार परिवर्तन करने की भी जरुरत है | हम आंखों से कितना देखते हैं , मुख से कितना बोलते हैं और कानों से कितनी अनावश्यक बातें सुनते हैं , इनका परित्याग कर ,कम सुनना , बोलना और देखने का प्रयास करना होगा | दूसरे शब्दों मे हमे अपनी इंद्रियों को अपने कंट्रोल में रखना होगा | इस प्रकार से जब हम अपनी इंद्रियों के प्रति होशियार हो जाएंगे तब कुछ भी गलत करने से पूर्व हमारा मन हमें सावधान करने लगेगा | जिस तरह से हमारे मनों के अंदर बैठे हुए , मन को भटकाने वाले कारक , अपने आप ही हमसे दूर हो जाएंगे | ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेने के बाद ध्यान में मन न लगने की समस्या अपने आप दूर हो जाएगी |
तनाव
इस संसार के प्रत्येक प्राणी को लगभग हर क्षण तनाव की समस्या बनी ही रहती है | हमारे मनों मे जो तनाव प्रवेश करता है, वह अधिकतम हमारी आंखों के माध्यम से प्रवेश करता है | आंखों का तनाव मस्तिष्क के लिए हानिकारक होता है | इसलिए अगर हम अपनी आंखों को शांत और शिथिल करने का अभ्यास कर ले तो , हमारे शरीर से तनाव दूर हो जाएगा | इस प्रकार से हम तनावरोधी भी बन जाएंगे , तथा हमें शान्ति भी मिल सकेगी | इसी प्रकार जब हम बहुत ज्यादा बातें करते हैं या बहुत अधिक संगीत सुनते हैं , तब इनका तेज स्वर् हमें तनाव ग्रस्त कर देता है | प्रायः लोग जितनी बातें करते हैं उनमें से अधिकांश फालतू ही होती हैं इनसे बचने की कोशिश करना चाहिए | अतः हमें वाणी और श्रवण इंद्रियों पर नियंत्रण रखना होगा | इसका सीधा सा उपाय यह है कि हम अपने आप को अपेक्षाकृत मौन ररखें तथा आवश्यकतानुसार ही बोलें | इसके अलावा तेज स्वर् की बेकार की बकझक से दूर रहने का प्रयास करें |
इस प्रकार इंद्रिय संयम से हम अपनी नष्ट होने वाली ऊर्जा को बचा सकेंगे | यह बची हुई ऊर्जा , हमें ध्यान के लिए तैयार कर सकेगी | इसके अलावा यह मन को स्थिर शांत और शरीर को स्वस्थ भी रखेगी | मन और शरीर के स्वस्थ और संतुलित हो जाने पर , हमारे विषय व विराग दूर हो जाएंगे और जब भी हम ध्यान लगाना चाहेंगे हमारा मन एकाग्रचित बना रहेगा |
इति श्री
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