web - gsirg.com
पाण्डु रोग का सरल और शर्तिया
यकृत संबंधी रोगों में पाण्डु रोग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है | शरीर के अंगों में यकृत का प्रमुख स्थान है , जहां पर रक्त का निर्माण होता है | आयुर्वेदाचार्यों का ऐसा मत है कि अगर कोई पुरुष स्वस्थ रहना चाहता है तो उसे चाहिए कि वह अपने यकृत की समुचित रूप से भली भांति देखभाल करें | क्योंकि यकृत की दशा बिगड़ने से ही व्यक्ति के शरीर मे इस रोग की उतपत्ति होती है | इसलिए यकृत की स्थिति बिगड़ने न दे | इसका कारण है कि यकृत की दशा बिगड़ने पर अर्थात इसमे विकार आ जाने पर शरीर में अनेकों प्रकार के रोग पैदा हो सकते हैं | जिनमें पांडुरोग यानि पीलिया का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है | इस रोग की उत्पत्ति का प्रमुख कारण यकृत में नरमी हो जाना है | यकृत में नर्मी होने के कारण रोगी व्यक्ति के शरीर में सबसे पहले आंखें और बाद मे नाखून पीले रंग की हो जाते हैं | इसके कुछ समय पश्चात उसके मूत्र में भी पीलापन आ जाता है |
किसी व्यक्ति को यह रोग है या नहीं इसकी पहचान करना बहुत ही आसान है | इसके लिए किसी मेडिकल स्टोर से थोड़ी सी रुई ले लें | इसका कारण है कि मेडिकल स्टोर से मिली हुई रुई जन्तुघ्न और विषघ्न होती है | इस रुई का एक फाहा बना लें | सुबह उठकर जब कोई होगी अपना पहला पेशाब करने जाए तब वह अपना पहला पेशाब एक शीशी में एकत्र कर ले | बाद मे वह फाहा उस पेशाब में भिगोकर देखे | यदि फाहे का रंग पीला हो जाता है , तो समझ लेना चाहिए कि उस व्यक्ति को पांडु रोग हो चुका है |
आयुर्वेदिक इलाज
इस रोग से पीड़ित रोगी का शरीर यदि रोग की कठिन से कठिनतम स्थिति को भी पहुंच चुका हो , तब इस आयुर्वेदिक औषधि को बनाकर प्रयोग करें |
चिकित्सक को चाहिए कि इस रोग की चिकित्सा करने से पूर्व काफी मात्रा में बाजार से मूलियाँ खरीद ले | अब प्रातः काल इन मूली के पत्तों को सिलबट्टे पर पीस कर एक युवा रोगी के लिए लगभग आधा किलो ग्राम रस निकाले | अब इस रस को किसी साफ मलमल के कपड़े से छान कर उसमे मोटी शक्कर के कुछ दाने मिला दे | अब यह औषधि रोगी का रोग दूर करने के लिए तैयार है |
उपरोक्त औषध की मात्रा एक युवा रोगी के लिए पर्याप्त है | जिस किसी भी व्यक्ति को पांडुरोग हुआ हो , उसे यह दवा प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व रोगी को पिला दे | इस दवा को पिलाने से पूर्व रोगी को कुछ भी खाने को न दिया जाए | जैसे ही दवा रोगी के पेट में पहुंचेगी रोगी को आराम मिलने लगेगा | यदि रोगी से उससे लाभ के बारे में पूछा जाए तो वह कहेगा कि उसे लाभ होने लगा है | यह दवा रोगी के लिए प्रतिदिन तैयार करना होता है , तथा बनाने की तुरंत बाद ही रोगी को पिला देना होता है |
इस दवा के सेवन से रोगी को अच्छी भूख लगने लगेगी | विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि रोगी को दस्त भी लगने लग सकते हैं | इस तरह के दस्तों का होना भी चिकित्सा का एक अंग भी हो सकता है , क्योंकि प्रायः यह देखने में आता है कि किसी किसी को दस्त नहीं भी होते है | इस औषध के सेवन से एक ही सप्ताह में ही रोग निर्मूल हो जाता है |
पाण्डु रोग का यह एक ऐसा आयुर्वेदिक इलाज है , जिसे आप विश्वास के साथ बिना किसी झंझट के , किसी रोगी की चिकित्सा स्वयं कर सकते हैं | इसके लिए आप शर्त भी लगा सकते हैं कि रोगी एक सप्ताह मे ही बिल्कुल ही ठीक हो जाएगा | इस चिकित्सा मे रोगी मे किसी प्रकार का भी रोग का लक्षण शेष नहीं बचा रह पाता है |
चिकित्सा करने से पूर्व आपको यह ध्यान रखना होगा कि मूली जब भी खरीदे , किसी विश्वसनीय व्यक्ति से ही लें | इसका कारण है कि आजकल बाजार में व्यापारिक लाभ कमाने के लिए मूलियों की कई किस्में आने लगी है | जबकि चिकित्सा के लिए केवल देसी मूली के पत्तों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए | इससे रोग पर जल्दी विजय पाई जा सकती है | परंतु यदि देसी मूलियाँ न मिले , तब किसी अन्य प्रकार की मूली के पत्तों को भी प्रयोग किया जा सकता है | इससे रोग के नष्ट होने में कुछ समय ज्यादा लग सकता है | दूसरी बात यह ध्यान रखनी है कि चिकित्सा के दौरान यदि रोगी को दस्त लगने लगे तो घबराना नहीं चाहिए क्योंकि चिकित्सा के दौरान किसी किसी को ऐसा हो जाता है | जब भी रोगी को दस्त पड़े तब दस्तों की कोई दवा न लें | इस प्रकार के दस्त इस औषध के प्रयोग से होने ही लगते हैं | कभी-कभी ऐसी भी स्थिति आती है कि वास्तव में रोगी को दस्त होने ही लगते हैं , ऐसी स्थिति में चाहे तो इस औषधि का प्रयोग बंद कर ,सबसे पहले दस्तों की चिकित्सा कर ले | और रोगी के दस्त ठीक होने के बाद लगभग 15 या 20 दिन बीत जाने के बाद यह चिकित्सा पुनः कर सकते हैं |
web - gsirg.com
यकृत संबंधी रोगों में पाण्डु रोग का नाम प्रमुखता से लिया जाता है | शरीर के अंगों में यकृत का प्रमुख स्थान है , जहां पर रक्त का निर्माण होता है | आयुर्वेदाचार्यों का ऐसा मत है कि अगर कोई पुरुष स्वस्थ रहना चाहता है तो उसे चाहिए कि वह अपने यकृत की समुचित रूप से भली भांति देखभाल करें | क्योंकि यकृत की दशा बिगड़ने से ही व्यक्ति के शरीर मे इस रोग की उतपत्ति होती है | इसलिए यकृत की स्थिति बिगड़ने न दे | इसका कारण है कि यकृत की दशा बिगड़ने पर अर्थात इसमे विकार आ जाने पर शरीर में अनेकों प्रकार के रोग पैदा हो सकते हैं | जिनमें पांडुरोग यानि पीलिया का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है | इस रोग की उत्पत्ति का प्रमुख कारण यकृत में नरमी हो जाना है | यकृत में नर्मी होने के कारण रोगी व्यक्ति के शरीर में सबसे पहले आंखें और बाद मे नाखून पीले रंग की हो जाते हैं | इसके कुछ समय पश्चात उसके मूत्र में भी पीलापन आ जाता है |
रोग की पहचान
किसी व्यक्ति को यह रोग है या नहीं इसकी पहचान करना बहुत ही आसान है | इसके लिए किसी मेडिकल स्टोर से थोड़ी सी रुई ले लें | इसका कारण है कि मेडिकल स्टोर से मिली हुई रुई जन्तुघ्न और विषघ्न होती है | इस रुई का एक फाहा बना लें | सुबह उठकर जब कोई होगी अपना पहला पेशाब करने जाए तब वह अपना पहला पेशाब एक शीशी में एकत्र कर ले | बाद मे वह फाहा उस पेशाब में भिगोकर देखे | यदि फाहे का रंग पीला हो जाता है , तो समझ लेना चाहिए कि उस व्यक्ति को पांडु रोग हो चुका है |
इस रोग से पीड़ित रोगी का शरीर यदि रोग की कठिन से कठिनतम स्थिति को भी पहुंच चुका हो , तब इस आयुर्वेदिक औषधि को बनाकर प्रयोग करें |
मूली के पत्तों से इलाज
चिकित्सक को चाहिए कि इस रोग की चिकित्सा करने से पूर्व काफी मात्रा में बाजार से मूलियाँ खरीद ले | अब प्रातः काल इन मूली के पत्तों को सिलबट्टे पर पीस कर एक युवा रोगी के लिए लगभग आधा किलो ग्राम रस निकाले | अब इस रस को किसी साफ मलमल के कपड़े से छान कर उसमे मोटी शक्कर के कुछ दाने मिला दे | अब यह औषधि रोगी का रोग दूर करने के लिए तैयार है |
सेवन विधि
उपरोक्त औषध की मात्रा एक युवा रोगी के लिए पर्याप्त है | जिस किसी भी व्यक्ति को पांडुरोग हुआ हो , उसे यह दवा प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व रोगी को पिला दे | इस दवा को पिलाने से पूर्व रोगी को कुछ भी खाने को न दिया जाए | जैसे ही दवा रोगी के पेट में पहुंचेगी रोगी को आराम मिलने लगेगा | यदि रोगी से उससे लाभ के बारे में पूछा जाए तो वह कहेगा कि उसे लाभ होने लगा है | यह दवा रोगी के लिए प्रतिदिन तैयार करना होता है , तथा बनाने की तुरंत बाद ही रोगी को पिला देना होता है |
औषधि का गुण और प्रभाव
इस दवा के सेवन से रोगी को अच्छी भूख लगने लगेगी | विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि रोगी को दस्त भी लगने लग सकते हैं | इस तरह के दस्तों का होना भी चिकित्सा का एक अंग भी हो सकता है , क्योंकि प्रायः यह देखने में आता है कि किसी किसी को दस्त नहीं भी होते है | इस औषध के सेवन से एक ही सप्ताह में ही रोग निर्मूल हो जाता है |
विश्वास बनाये रखें
पाण्डु रोग का यह एक ऐसा आयुर्वेदिक इलाज है , जिसे आप विश्वास के साथ बिना किसी झंझट के , किसी रोगी की चिकित्सा स्वयं कर सकते हैं | इसके लिए आप शर्त भी लगा सकते हैं कि रोगी एक सप्ताह मे ही बिल्कुल ही ठीक हो जाएगा | इस चिकित्सा मे रोगी मे किसी प्रकार का भी रोग का लक्षण शेष नहीं बचा रह पाता है |
सावधानी
चिकित्सा करने से पूर्व आपको यह ध्यान रखना होगा कि मूली जब भी खरीदे , किसी विश्वसनीय व्यक्ति से ही लें | इसका कारण है कि आजकल बाजार में व्यापारिक लाभ कमाने के लिए मूलियों की कई किस्में आने लगी है | जबकि चिकित्सा के लिए केवल देसी मूली के पत्तों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए | इससे रोग पर जल्दी विजय पाई जा सकती है | परंतु यदि देसी मूलियाँ न मिले , तब किसी अन्य प्रकार की मूली के पत्तों को भी प्रयोग किया जा सकता है | इससे रोग के नष्ट होने में कुछ समय ज्यादा लग सकता है | दूसरी बात यह ध्यान रखनी है कि चिकित्सा के दौरान यदि रोगी को दस्त लगने लगे तो घबराना नहीं चाहिए क्योंकि चिकित्सा के दौरान किसी किसी को ऐसा हो जाता है | जब भी रोगी को दस्त पड़े तब दस्तों की कोई दवा न लें | इस प्रकार के दस्त इस औषध के प्रयोग से होने ही लगते हैं | कभी-कभी ऐसी भी स्थिति आती है कि वास्तव में रोगी को दस्त होने ही लगते हैं , ऐसी स्थिति में चाहे तो इस औषधि का प्रयोग बंद कर ,सबसे पहले दस्तों की चिकित्सा कर ले | और रोगी के दस्त ठीक होने के बाद लगभग 15 या 20 दिन बीत जाने के बाद यह चिकित्सा पुनः कर सकते हैं |
जय आयुर्वेद
web - gsirg.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें