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उपासना

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उपासना

हमारी यह पृथ्वी , जिस पर हम निवास करते हैं , आज से लगभग अरबो वर्ष पूर्व निर्मित हुई थी | इस काल को हम '' अनादिकाल ' कह सकते हैं | इसके बाद ही '' आदिकाल '' का नंबर आता है | हमारे देश के लोगों का प्राचीन धर्म '' वैदिक धर्म '' रहा है | आदि काल से लेकर अब तक इस वैदिक धर्म मे अनेकों विद्वान , ऋषि मुनि और मनीषी हुए हैं , जिन्होंने संसार का कल्याण करते हुए , अपना सारा जीवन व्यतीत किया है , परंतु उनका अपना जीवन कैसा रहा है , यह जानने के लिए हमें काफी पीछे समय का अवलोकन करना होगा | वैदिक ऋषि परोपकारी कार्यों मे लिप्त होने से पूर्व , अपने जीवन का परिष्कार करते थे | इसके लिए वह अनेकों प्रकार के धार्मिक कार्यों का अनुष्ठान किया करते थे | इन धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों को संपन्न करके वह लोग जब संपूर्णता को प्राप्त कर लेते थे | जीवन की संपूर्णता प्राप्त करने के लिए वह जीवन में अनेकों प्रकार के कार्य किया करते थे | इन धार्मिक कार्यों में , ' उपासना क्या है ' प्रत्येक साधक व्यक्ति को , यह जानना अति आवश्यक है |

उपासना का अर्थ


अगर शाब्दिक रूप में उपासना को समझा जाए तो , यह शब्द ' उप ' तथा ' आसन ' शब्दों के मेल से बना है | उप का अर्थ है समीप , तथा आसन का अर्थ है बैठना | दोनों शब्दों के संयोग से ' समीप आने ' या ' समीप बैठने ' के अर्थ का प्रगटीकरण होता है | जिस प्रकार आग के पास बैठने से गर्मी का लगना , तथा बर्फ के पास बैठने से ठंड का लगना सर्वविदित है | ठीक इसी प्रकार , यदि दैवीय शक्तियों की समीपता प्राप्त कर ली जाए तो , उन दैवीय शक्तियों के गुणों का व्यक्ति के अंदर समावेश संभव है |


दैवीय गुणों का समावेश


जब कोई भी ऋषि-मुनि या साधक अपने किसी दैवीय पुरुष की उपासना करते हैं | उस समय उन्हें उनका सानिध्य प्राप्त होता है | सानिध्य प्राप्ति यह क्रम उनके जीवन मे आने वाले अगले पलों मे भी निरन्तर चलता ही रहता है | दैवीय शक्तियों का सानिध्य प्राप्त कर लेने के पश्चात , उस साधक में निहित हुई सर्वश्रेष्ठ शक्तियां , अपने गुणों से साधक को वैसे ही लाभान्वित करती चली जाती हैं , जैसे ट्रांसफार्मर से बिजली का तार जुड़ जाने पर विद्युत के प्रवाह का चल निकलना अवश्यंभावी हो जाता है | ठीक इसी प्रकार यदि दैवीय शक्तियों का सानिध्य प्राप्त कर लिया जाए , तो व्यक्ति के अन्दर उस देवता के दैवीय गुणों का जीवन में समावेश संभव होने के साथ ही साथ आत्मोन्नति होना भी सम्भव हो जाता है |


आत्मोन्नति

आदिकाल के वैदिक ऋषि मुनि ,आत्मोन्नति को ही मानवीय जीवन का चरमोत्कर्ष मानते थे | अतः इसमें सफलता प्राप्त करने के लिए वह अनेकों प्रकार के धार्मिक कृत्य किया करते थे | जिनमें जप -तप , ध्यान- धारणा , पूजा -उपासना, साधना - आराधना और योग- तप आदि का सहारा लिया करते थे | उनका विचार होता था कि उपरोक्त किस्म के अनेक तरीकों से ही उन्हें अपने जीवन में सफलता मिल पाएगी | उनका विचार यह भी था कि , यही वह रास्ते हैं जिनका अनुगमन करके ही वह लोग अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं | इसीलिए इन कार्यों को वह समर्पित भाव से किया करते थे |


आत्मोन्नति का उद्देश्य


अपने जीवन में आत्मोन्नति के लिए प्रयासरत साधकों को जब इसमें सफलता मिल जाती थी | तब ही उनके व्यक्तित्व में श्रेष्ठ गुणों का समावेश हो जाता था | क्योंकि उनकी आत्मोन्नति का उद्देश्य केवल परमपिता ईश्वर से साक्षात्कार करना ही नहीं होता था , बल्कि इससे भी अलग उन्हें अपने व्यक्तित्व में श्रेष्ठ मानवीय गुणों का विकास करना भी होता था | इन ऋषि-मुनियों ने अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर , सर्वसाधारण जनता को इस तथ्य की शिक्षा दी थी के श्रेष्ठ मानवीय गुणों को जीवन में धारण करने का सबसे सरल मार्ग उपासना है |


प्रत्येक मंत्र का निर्धारित देवता


हमारे वैदिक धर्म में 33 प्रकार [ कोटि ] के देवता माने गए हैं | वैदिक मंत्रों में प्रत्येक देवता के लिए अलग-अलग मंत्र निर्धारित हैं | जैसे आदिशक्ति मां गायत्री के गायत्री मंत्र के देवता सविता [ सूर्य ] हैं | इसी प्रकार से प्रत्येक देवता का मंत्र भी निर्धारित है | जब कोई साधक मां गायत्री की उपासना करता है , उस समय सूर्य की अदृश्य किरणें , साधक के जीवन समाविष्ट हो जाती है , जो साधक के प्राणों को पुष्ट करती हैं , और उसकी जीवनी शक्ति का संवर्धन करती हैं | इसका प्रभाव , यह होता है कि , वह मनुष्य सत्य पथ पर चलने लगता है , तथा पवित्रता और प्रखरता का अनुगामी बन जाता है | इसी प्रकार निश्चित मंत्र द्वारा किसी देवता की उपासना करने से साधक को तरह-तरह की अभूतपूर्व शक्तियों की प्राप्ति होती है | जिससे उसके अंदर जीवनीशक्ति का विकास हो जाता है , और वह भी पवित्रता और प्रखरता का अनुगमन करने लगता है |


मेरा विचार है कि उपरोक्त लेख को समझ कर आप सभी उपासना की महत्ता से परिचित हो गए होंगे | आपको यह जानकर अद्भुत अनुभूति होगी कि , किसी भी देवता की निरंतर उपासना करना ही आत्मोन्नति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है |


इति श्री



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