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गंदे और प्रदूषित रक्त को शुद्ध करने वाली प्रभावी औषधियां
अजवाइन से रक्त का शोधन
आजकल वातावरण के बदलाव और आपने खानपान आहार-विहार आज के कारणों से लोगों का रक्त दूषित हो रहा है| जिसके कारण उन्हें कई प्रकार की बीमारियों से जूझना पड़ता है जैसे रक्तातिसार खुजली चलना खाए हुए अन्य से जलन होना | यह बीमारियां रक्त के प्रदूषण के कारण होती हैं|| इनके प्रभावी इलाज के लिए हम आज एक प्राचीन नुस्खे के विषय में अध्ययन करेंगे जो दूषित रक्त को अतिशीघ्र शुद्ध करता है|
नुस्खा बनाने की विधि और सेवन विधि
रक्त को शुद्ध करने वाले इस नुस्खे को बनाने के लिए बाजार से अजवाइन लानी पड़ती है| अजवाइन एक सर्वत्र प्राप्त औषधीय है| यह हमारे रसोईघर और आसपास के लोगों के पास तथा व्यापारियों के पास आसानी से उपलब्ध हो जाती है| इसकी सौ ग्राम मात्रा लाकर उसे छाया में सुखाकर साफ कर लेते हैं|| जितनी मात्रा में अजवाइन लेते हैं उतनी ही मात्रा में मिश्री भी ले लेते हैं | दोनों सामग्रियों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लेते हैं| यह चूर्ण बहुत ही महीन हो इसके लिए इसका कपड़छन चूर्ण बनाते हैं यानी इस के चूर्ण को कपड़े से 3 बार छाना जाता है जिससे शुद्ध चूर्ण बन जाता है और आपस में मिल भी जाता है | इसकी एक चम्मच मात्रा रोगी को दिन में तीन बार तीन बार सुबह दोपहर और शाम देना पड़ता है| यह अपने औषधीय अपने गुणों के कारण मरीज के रक्त को अविलंब निश्चित समय पर ठीक कर देती है| औषध सेवन काल में खटाई और नमक पूर्णतया वर्जित है| अगर कोई मरीज अपने सेवन काल में नमक के स्वाद से वंचित नहीं रहना चाहता है तो उसे अल्प मात्रा में सेंधा नमक दिया जा सकता है | इसके सेवन से जब रक्त शुद्ध हो जाता है तब रोगी को कई पर कई प्रकार कीअन्य बीमारियों सेभी छुटकारा मिल जाता है जैसे फोड़े फुंसियां मुंह और नाक के छाले विग्रह ब्रदर अति दुर्बलता रक्तपित्त आदि|
ऐसा अनुमान है कि मिस्र देश के लोग वनस्पतियों से संबंधित औषधियों के प्रति ज्यादा जागरूक | एक वर्णन मिलता है की प्राचीन मिस्र की सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाली महारानी ह्त्सेप्सुत ने अपने कार्यकाल में आयुर्वेदिक औषधियों का बहुत ही प्रचार प्रसार किया था| इसके लिए उन्होंने अपने यहां के विशेष लोगों को बाहर भी भेजा था और उन लोगों ने मिस्र के बाहर जाकर और भी अन्य औषधियों की खोज भी की थी | मिस्रवासियों ने पुंत नामक स्थान से खास प्रकार का अंजन लाकर कई लेप बनाये औरकई रोगों का इलाज करने वाली दवाएं बनाई थी | ऐसे ही खोजी स्वभाव के लोगों ने एल्डर बेल की छाल लाकरउनका उपयोग कई रोगों की दवाएं बनाई तथा नूबिया से रस गंध की गोंद और लाल चंदन लाये थे जिससे वे मुंह के छालों और अतिसार की चिकित्सा किया करते थे इसी प्रकार दूधियोपिया से केशु के फूल लाकर पेट के कीड़ों की अचूक दवा बनाया करते थे |
रक्तातिसार के दूषित रक्त दोष में पीपल का प्रयोग
इसके संबंध में मैंने एक पत्रिका में पढ़ा था कि एक वैध थे जिनका नाम तो उस पत्रिका में नहीं था लेकिन इससे संबंधित विवरण पढ़ने को मिला था | उन्होंने लिखा था कि उनके यहां एक रक्तातिसार से पीड़ित मरीज आया था जिसके शरीर पर केवल अस्थिपंजर ही शेष रह गया था | इसके अलावा शरीर पर थोड़ी सी शोथ भी हो गयी थी| जिसका उन्होंने इलाज किया लेकिन उनके इलाज से उसका कोई फायदा नहीं हुआ| कुछ दिनों के बाद वह रोगी वैद्य जी को पुनः मिला और उसने उन वैध जी को बताया कि उसने एक महात्मा जी की बताई एक औषधि प्रयोग की थी| वह औषधि है घोडकदंगी जिसे अरलू या श्योनाक कहते हैं| इसके छाल के रस की ८ से १० बूंद उसने 5 किलो गाय की छाछ में मिलाकर प्रतिदिन पिया था और स्वस्थ हो गया था |
इससे उसकी बीमारी पूर्णतया ठीक हो गई थी| उपरोक्त जानकारी से यह स्पष्ट है कि अरलू भी रक्त को शुद्ध करने में विशेष सहायक है इसका प्रयोग कर रक्तातिसार के उन मरीजों को भी ठीक किया जा सकता है |जिन्हें रक्त दोष के कारण रक्तातिशार हुआ हो |
कोष्ठबद्धता के कारण दूषित रक्त का इलाज
यह तो सभी वैद्य गण जानते हैं कि कोष्ठबद्धता सभी रोगों की जननी है | अगर किसी को कोष्ठबद्धता हो जाती है तो उसे विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो जाती है| रक्त दोष के कारण अगर मलावरोध है तो उसमें पीपल की पत्तियां भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है | इसके प्रयोग की विधि यह है की पीपल के पत्ते लेकर उन्हें छाया में सुखा लें | धूप में सूखे पत्ते ना लें | इसके पश्चात इस चूर्ण की सोंफ के अर्क गुलकन्दया अथवा गुड़ के साथ मिलाकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बना ले | इनमें से एक गोली प्रतिदिन रात को बिस्तर पर सोते समय गर्म दूध के साथ ले लिया करें | कुछ ही दिनों में कोष्ठबद्धता दूर हो जाएगी
इस प्रकार से दूषित रक्त को शुद्ध करने में पीपल की पत्तियां भी उपयोगी सिद्ध होती है इसके अलावा पीपल के फल भी दूषित रक्त के कारण होने वाले पेट के कोष्ठबद्धता को दूर कर देते हैं| पीपल वृक्षों के फलों को इकट्ठा कर उन्हें छाया में सुखा लें और चूर्ण बना लें | उसके बाद देशी खांड इसकी दो चम्मच मात्रा इसकी सोते समय दूध के साथ सेवन करने से दूषित रक्त के कारण होने वाला कोष्ठबद्धता रोग दूर हो जाती है| इसके साथ ही वलवीर बल वीर्य की वृद्धि होती है और जीवन सुखी हो जाता है| दूषित रक्त के कारण होने वाला रक्तातिसार हो रहा है तो उसमें घोड़ कदंगी नामक वृक्ष से दूषित रक्त को शुध्ह करने का इलाज भी किया जा सकता है | कुछ रोगी ऐसे भी होते हैं जो कब्ज प्रमेह आदि के कारण वीर्य के पतलेपन के शिकार हो जाते हैं| ऐसे रोगियों में अगर पूछताछ की जाए तो पता चलता है कि उनके पेशाब से पूर्व एक सफेद स्राव निकलता है जो कपड़ो पर लग जाता है| ऐसे रोगियों के इलाज के लिए देसी काले चने 200 ग्राम मिट्टी के पात्र में लेकर 150 ग्राम पानी में डाल दे | इसमें 15 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिला दे शाम को भिगोए | इन चनो को सुबह उठकर चबा चबा कर खा लें और अगले दिन के लिए शाम को पुनः इसी मात्रा में भिगोकर प्रयोग करने के लिए हर दिन बना लिया करें | यह प्रयोग अगर 40 दिन किया जाए तो मरीज को पूरा लाभ होता है | इस प्रयोग से दस्त खुलकर होता है भूख लगती है और इंद्रिय योनि और गुदा के रोग शरीर से भाग जाते हैं | इसके अलावा शरीर पुष्ट हो जाता है और शरीर में ताकत बढ़ जाती है जो लोग पित्त प्रकृति के हैं उनके लिए यह दवा बहुत ही मुफीद है |
इस तरह से आप दूषित रक्तविकारों से पीड़ित विभिन्न रोगियों की चिकित्षा आसानी से कर सकते हैं |
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