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धर्म ; अमृतवाणी
हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों का मानना है कि , मानवीय जीवन दिव्य विभूतियों की प्राप्ति का अधिकारी है .| इस संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक मानव को जो भी योग्यताएं , क्षमताएं और सम्पदाएँ प्राप्त होती है , वह सभी परमात्मा द्वारा प्रदत्त होती है। मानव को यह सब प्राप्त होते रहने का प्रमुख कारण यह है कि , ईश्वर ने मनुष्य को , अपने अंश तथा उत्तराधिकारी के रुप में , ही इस धरती पर भेजा है | परमात्मा चाहता है कि , प्रत्येक प्राणी दैवीय क्षमताओं का सदुपयोग करते हुए , प्रकृति को सुरम्य और समुन्नत बनाए रख सके | इसलिए प्रत्येक पुरुष को चाहिए कि वह अपनी मानवोचित मर्यादा और देवोचित उत्तरदायित्व का अनुभव कर , उसी के अनुसार अनुसरण करें। परमात्मा का अनुग्रह मनुष्य को कर्मकांड करने से नहीं मिलता , वरन उनके उद्देश्यों के प्रति एक सत्य व सार्थक समर्पण करने से मिलता है | आज हम इन्ही बातों का ध्यान रखते हुए , कुछ सार्थक तथ्यों की जानकारी प्राप्त करेंगे |
ईश्वर को जानने में लगता है समय
प्रिय पाठकगनों जिसप्रकार किसी कार्य को प्रारंभ करने से अंत होने तक में पर्याप्त समय लगता है। उसी प्रकार ईश्वर को जानने मे भी बहुत समय लगता है। इसे इस प्रकार से भी समझा जा सकता है। जैसे एम ० बी ० बी ० एस ० डॉक्टर बनने के लिए 5 साल तक शिक्षा प्राप्त करना पड़ता है | इस अध्ययन के अन्तर्गत उसे एनाटॉमी , शरीर विज्ञान , अंग- प्रत्यंग | उनके क्रिया-कलाप की जानकारी प्राप्त होती है | ठीक उसी प्रकार से ईश्वर को जानने के लिए भी पर्याप्त समय लग सकता है | ईश्वर का स्वरूप और उसका स्वभाव जानने मे कितना समय लगेगा , यह आपकी श्रद्धा , पवित्र भावना , तथा उसके प्रति आपके लगाव होने की ततपरता पर निर्भर करता है | आपके सम्पूर्ण जीवन मे यदि आपकी भावनाएं पवित्र पवित्र रही हैं , तो आपको ज्यादा समय नहीं लगेगा , परंतु यदि आपका जीवन काषाय कल्मषों मै बीत रहा है , तब आपको पर्याप्त समय लग सकता है |
समझे ईश्वरके स्वरूप को
मानव को अपने जीवन में संस्कारवान और सफल बनने के लिए , ईश्वर को समझना अति आवश्यक हो जाता है | यदि आप उसके स्वभाव और स्वरूप की पर्याप्त जानकारी ग्रहण कर लेते हैं , तब आपको इसमें सफलता मिलने मे देर नहीं लगेगी | इस संबंध में यह जानना भी अति आवश्यक है कि , ईश्वर कण-कण में मौजूद है , इस भौतिक संसार की सभी विशेषताएं उसमें विद्यमान है | इन विशेषताओं को प्राप्त करने के लिए , आपको भी ईश्वरमय होना पड़ेगा , तथा महापुरुषों से लगाव भी बनाए रखने के लिए हरप्रकार का प्रयत्न करना होगा
सारा संसार ब्रह्म का रूप है
सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि ईश्वर खिलौनों , मूर्तियों और तस्वीरों के रूप में नहीं है | वह संसार की हर जड़ और चेतन मे समाया हुआ है | यह सारा संसार ही ब्रम्ह का रूप है | इसलिए उसे अन्यत्र खोजने की आवश्यकता नहीं है , बल्कि बह सारे विश्व ब्रह्मांड मे आत्मा के रूप में विद्यमान है | यह सारा संसार भगवान का ही स्वरूप है | कहने का अर्थ यह है कि , हर व्यक्ति को चाहिए कि वह सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप को अन्यत्र न खोजकर , मानव को अपने अंतःकरण में ही खोजना होगा , तथा उसके स्वरूप को समझना होगा | यदि हमें ईश्वर के दर्शन करने हैं , तब हमें विवेक की आंखें खोलनी होगी | उससमय ही हमें यह सारा ब्रह्मांड , सारा विश्व , सारी वसुंधरा, वसुधा तथा आकाश और पाताल अर्थात सभी जगह हमें ईश्वर के रूप का दर्शन हो सकेगा |
अनुभूति से ही होते हैं भगवान के दर्शन
कोई भी सांसारिक पुरुष अपनी नग्न आंखों से ईश्वर के स्वरूप को नहीं देख सकता है , और न ही ईश्वर का दर्शन कर सकता है | यदि आपकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास है केवल तब ही आपकी ईश्वर के प्रति सच्ची अनुभूति हो सकेगी | उस परमपिता ईश्वर को अपना सब कुछ न्योछावर कर देने पर ही ऐसा संभव हो सकता है | साधक को अपनी भावनाओं को परिपक्व करने के लिए भी एक आध्यात्मिक प्रणाली है | उसकी एक निश्चित प्रक्रिया भी है | आप इसी प्रणाली के द्वारा ही ईश्वर के दर्शन और उसकी कृपा प्राप्त कर पाते हैं |
प्रक्रिया
ईश्वर तक पहुंचने के लिए हर व्यक्ति को एक मंजिल से गुजर ना होता है | जब कोई भी इस कठिन परिश्रम करके इसमें सफलता प्राप्त कर लेता है , तब ही वह अपने ईश्वरदर्शन के उद्देश्य की प्राप्ति कर पाता है | इसके लिए पूजन करना , भजन करना तथा उपासना करते रहना आवश्यक नहीं है | उसे केवल सच्चे ह्रदय , सच्ची भावना और सच्ची श्रद्धा से ही ईश्वर का ध्यान करने पर , उद्देश्य की प्राप्ति की जा सकती है | बिना भावनात्मक लगाव के , उसे कर्मकांड से प्राप्त करना असंभव ही है |
ईश्वर से साक्षात्कार
यदि हमें ईश्वर से साक्षात्कार करना है , तब हम कोई भी ऐसा कार्य नहीं कर सकते हैं , जिससे दूसरों का अहित होता हो , या दूसरों का मन दुखित होता हो | हम ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकते , जिससे दूसरे का बुरा हो , किसी के साथ में अनीति और अन्याय करने का विचार भी हमारे मन में नहीं आना चाहिए | इसके लिए हमें अपने आचरण को शुद्ध , सरल पवित्र और स्वाभाविक बनाना होगा | जिस दिन आदमी इसमें छिपे हुए निहितार्थ को समझ लेगा , उस दिन उसे सृष्टि के समस्त प्राणियों के प्रति , समस्त सजीवों और नारियों के प्रति उसका व्यवहार परिवर्तित होकर , हर प्राणी के प्रति दयामय हो जाएगा |
जिस दिन किसी भी साधक या मानव के अंतर्मन में दूसरों के प्रति सम्मान , बड़प्पन तथा सत्यता के भाव आ जाएंगे , उसी दिन से वह सच्चे अर्थों में ईश्वर का परम प्रिय बन जाएगा | ऐसा करके वह सभी सजीवों में ईश्वर की विद्यमानता का अनुभव कर सकेगा | ऐसी स्थिति में उसकी अपनी सच्ची अनुभूत से , सारे विश्व की सारी संरचनाएं ईश्वर में ही प्रतीत होने लगेगी , और सच्चे अर्थों में भगवान का प्रिय बनकर उसके असलीस्वरूप का दर्शन कर सकेगा | इसके पश्चात ही उसका जीवन सफल हो पाएगा , इसके पश्चात उसके जीवन में किसी प्रकार की भी कोई कमी नहीं होगी , क्योंकि वह ईश्वर का प्रिय और ईश्वर उसका रक्षक बन जाएगा |
इति श्री
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