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यह पुरुषों को होने वाला एक भयंकर गुप्त रोग है। यदि कोई व्यक्ति इस रोग की गिरफ्त में आ जाता है , तब उसे इस रोग के कारण उसे असहनीय कष्ट सहन करना पड़ता है। कभी-कभी तो रोगी की सहनशीलता की क्षमता भी समाप्त हो जाती है , और वह आत्महत्या के बारे में भी सोचने लगता है। रोगी के आसपास के लोग तथा पड़ोसी , यहां तक कि घर के लोग जिन्हें उसके इस रोग की जानकारी हो जाती है , वह लोग भी रोगी से दूर रहना चाहते हैं। रोग की प्रारंभिक अवस्था में रोगी भी अपने रोग को छुपाता रहता है , परंतु जब रोग भयंकर स्थिति को पहुंच जाता है , तब ही सब लोग उसके रोग के बारे में जान पाते हैं।
भयंकर तथा कष्टकारी रोग
यह पुरुष जननेंद्रिय में होने वाला अत्यंत कष्टकारी रोग है। सुजाक का रोगी जिस समय मूत्र त्याग का ख्याल करता है , पेशाब लगने के वक्त , होने वाली भयंकर पीड़ा के एहसास से ही , उसकी रूह कांप जाती है। क्योंकि वह जानता है कि , जिस समय वह लघुशंका करेगा उसे भयानक कष्ट होगा। कोई कोई रोगी तो पीड़ा के मारे मूर्च्छित तक हो जाता है , और किसी किसी के मुंह से भयंकर चीख निकल जाती है। रोगी कभी-कभी जमीन पर गिरकर छटपटाने भी लगता है। परन्तु आयुर्वेद ने इस भयंकर और कष्टकारी रोग की चिकित्सा का बहुत ही सरल , सहज तथा आसान उपाय खोज रखा है। यह उपाय अनुभूत और निरापद सिद्ध हो चुके हैं। औषधियां इतनी प्रभावोत्पादक हैं कि , प्राथमिक दशा को पहुंचा हुआ रोग बहुत ही सरलता और सस्ते में ही रोगी को इस रोग से निजात दिला देता है।
अत्यंत महत्वपूर्ण चिकित्सा
जिस किसी को भी सुजाक रोग हो जाता है , उसे सबसे पहला कष्ट मूत्रत्याग के समय ही होता है .| इस रोग मे इतनी भयंकर पीड़ा होती है जिसे इसमें केवल रोगी ही जान सकता है। इस पीड़ा से निजात पाने के लिए रोगी को चाहिए कि वह हरसमय अपने पास सदैव फिटकरी का एक टुकड़ा अपने पास अवश्य रखें। जब भी रोगी को पानी पीना हो तो उसे चाहिए कि वह पीने केपहले पानी को फिटकरी के टुकड़े से शुद्ध कर लिया करें। इस प्रयोग से उसे मूत्र त्याग के समय अपेक्षाकृत कम ही कष्ट होगा।
जलजमनी बूटी से इलाज
जलजमनी एक ऐसी बूटी है , जिसको गांव , देहात के लोग भली भांति जानते हैं। यह एक प्रकार की लता होती है , जो दूसरे पेड़ों पर फैली होती है। इसके पत्ते नीम के पत्तों के सदृश , परंतु कुछ छोटे , कुछ कड़े , गोल , 3 या 5 कोनों वाले वाले होते हैं। यदि इस बूटी के पत्तों का रस निकालकर 4 या 5 मिनट तक , पानी में डाले रखा जाए , तो पानी बर्फ की तरह जम जाता है . इसीलिए इसे जलजमनी बूटी कहते हैं | इसके बीज गोल और भीतर से बिल्कुल खाली होते हैं
सुजाक के रोगी के चिकित्सा के लिए इसी बूटी की 25 ग्राम पत्तियां इकट्ठा करना होता है। इन्हें किसी सिलबट्टे पर पीसकर इनका रस निकालें। इस रस को पुनः किसी पानी भरे मिट्टी के छोटे से घड़े में डाल दे। इस बात का ध्यान रखें कि घड़े मैं केवल 1 लीटर पानी लेना होता है। इसके पश्चात इस बूटी मिश्रित इस पानी को ही रोगी को प्रतिदिन पिलाना शुरू करें।
औषधि का सेवन करने के पश्चात यदि मुंह का स्वाद कुछ गड़बड़ लगे तो रोगी को थोड़ी सी चीनी भी खिला दे। यह सन्यासियों की बताई हुई औषधि है। इसके कुछ दिनों के प्रयोग से रोगी का सुजाक रोग, जड़ से ही निर्मूल हो जाता है।
औषधि के सेवन काल में रोगी को दूध और घी पर्याप्त मात्रा में खाना चाहिए , साथ ही यह भी ध्यान रखें कि रोगी नमक बिल्कुल न खाएं, क्योंकि नमक के सेवन से रोग से निजात पाना संभव नहीं है
रामबाण इलाज
अब जो औषधि हम आपको बताने जा रहे हैं , वह इतनी प्रभावशाली है कि 15 वर्ष पूर्व हुए सुजाक के रोग का भी इलाज आसानी से किया जा सकता है। इस इलाज से रोग का नामोनिशान नहीं बचता है। इस औषधि की केवल 7 मात्राएं ही रोग को सफलतापूर्वक नष्ट करने के लिए काफी होती हैं।
इसके लिए निमोली/ बकायन [ फल ] , जिसे पंजाबी में डकानी भी बोलते हैं। इस इस वृक्ष को संस्कृत में महानिम्ब , मराठी में बकाणीनिम्ब , तथा गुजराती में बकान्य भी कहते हैं। इस वृक्ष के पर्याप्त मात्रा में बीज लेकर उनको सबसे पहले छाया में सुखा लें। पूरी तरह से सूखे हुए फ़लों को किसी सिलबट्टे या हमामदस्ते की सहायता से कूट-पीसकर , कपड़छन चूर्ण बना लें। यह चूर्ण ही सुजाक रोग की उपयोगी तथा उपयुक्त औषधि है। इस औषधि के चूर्ण को किसी कांच की वायु रोधी शीशी में सुरक्षित रख लें।
इस चूर्ण की 6 ग्राम मात्रा सुबह , तथा 6 ग्राम की मात्रा शाम को भी सेवन करना होता है। इस औषधि को गाय या बकरी के दूध के साथ सेवन कराना चाहिए। औषधि सेवन के 7 दिन पश्चात ही आप पाएंगे कि रोगी का रोग बिल्कुल निर्मूल हो चुका है। औषधि के सेवनकाल में तेल से बने पदार्थ , गुड , खटाई , नमकतथा मिर्च आदि पूर्णतयाः वर्जित है। परंतु मांसाहारी लोग मांस के साथ पर्याप्त मात्रा में लाल मिर्च खा सकते हैं
इस औषधि के बारे में हम तो पर्याप्त जानते ही हैं , परंतु यदि आप इसका उपयोग करेंगे , तब पाएंगे कि सुजाक के रोगी के लिए यह बहुत ही उपयुक्त औषधियां हैं। आप बिना किसी हिचक , बिना किसी झिझक के , बिना लाग-लपेट, बिना किसी डर के , इस औषधि का उपयोग मरीज को ठीक करने में कर सकते हैं।
जय आयुर्वेद
इलाज ; भयंकर गुप्त रोग सुजाक की सरलतम चिकित्सा
यह पुरुषों को होने वाला एक भयंकर गुप्त रोग है। यदि कोई व्यक्ति इस रोग की गिरफ्त में आ जाता है , तब उसे इस रोग के कारण उसे असहनीय कष्ट सहन करना पड़ता है। कभी-कभी तो रोगी की सहनशीलता की क्षमता भी समाप्त हो जाती है , और वह आत्महत्या के बारे में भी सोचने लगता है। रोगी के आसपास के लोग तथा पड़ोसी , यहां तक कि घर के लोग जिन्हें उसके इस रोग की जानकारी हो जाती है , वह लोग भी रोगी से दूर रहना चाहते हैं। रोग की प्रारंभिक अवस्था में रोगी भी अपने रोग को छुपाता रहता है , परंतु जब रोग भयंकर स्थिति को पहुंच जाता है , तब ही सब लोग उसके रोग के बारे में जान पाते हैं।
भयंकर तथा कष्टकारी रोग
यह पुरुष जननेंद्रिय में होने वाला अत्यंत कष्टकारी रोग है। सुजाक का रोगी जिस समय मूत्र त्याग का ख्याल करता है , पेशाब लगने के वक्त , होने वाली भयंकर पीड़ा के एहसास से ही , उसकी रूह कांप जाती है। क्योंकि वह जानता है कि , जिस समय वह लघुशंका करेगा उसे भयानक कष्ट होगा। कोई कोई रोगी तो पीड़ा के मारे मूर्च्छित तक हो जाता है , और किसी किसी के मुंह से भयंकर चीख निकल जाती है। रोगी कभी-कभी जमीन पर गिरकर छटपटाने भी लगता है। परन्तु आयुर्वेद ने इस भयंकर और कष्टकारी रोग की चिकित्सा का बहुत ही सरल , सहज तथा आसान उपाय खोज रखा है। यह उपाय अनुभूत और निरापद सिद्ध हो चुके हैं। औषधियां इतनी प्रभावोत्पादक हैं कि , प्राथमिक दशा को पहुंचा हुआ रोग बहुत ही सरलता और सस्ते में ही रोगी को इस रोग से निजात दिला देता है।
अत्यंत महत्वपूर्ण चिकित्सा
जिस किसी को भी सुजाक रोग हो जाता है , उसे सबसे पहला कष्ट मूत्रत्याग के समय ही होता है .| इस रोग मे इतनी भयंकर पीड़ा होती है जिसे इसमें केवल रोगी ही जान सकता है। इस पीड़ा से निजात पाने के लिए रोगी को चाहिए कि वह हरसमय अपने पास सदैव फिटकरी का एक टुकड़ा अपने पास अवश्य रखें। जब भी रोगी को पानी पीना हो तो उसे चाहिए कि वह पीने केपहले पानी को फिटकरी के टुकड़े से शुद्ध कर लिया करें। इस प्रयोग से उसे मूत्र त्याग के समय अपेक्षाकृत कम ही कष्ट होगा।
जलजमनी बूटी से इलाज
जलजमनी एक ऐसी बूटी है , जिसको गांव , देहात के लोग भली भांति जानते हैं। यह एक प्रकार की लता होती है , जो दूसरे पेड़ों पर फैली होती है। इसके पत्ते नीम के पत्तों के सदृश , परंतु कुछ छोटे , कुछ कड़े , गोल , 3 या 5 कोनों वाले वाले होते हैं। यदि इस बूटी के पत्तों का रस निकालकर 4 या 5 मिनट तक , पानी में डाले रखा जाए , तो पानी बर्फ की तरह जम जाता है . इसीलिए इसे जलजमनी बूटी कहते हैं | इसके बीज गोल और भीतर से बिल्कुल खाली होते हैं
सुजाक के रोगी के चिकित्सा के लिए इसी बूटी की 25 ग्राम पत्तियां इकट्ठा करना होता है। इन्हें किसी सिलबट्टे पर पीसकर इनका रस निकालें। इस रस को पुनः किसी पानी भरे मिट्टी के छोटे से घड़े में डाल दे। इस बात का ध्यान रखें कि घड़े मैं केवल 1 लीटर पानी लेना होता है। इसके पश्चात इस बूटी मिश्रित इस पानी को ही रोगी को प्रतिदिन पिलाना शुरू करें।
औषधि का सेवन करने के पश्चात यदि मुंह का स्वाद कुछ गड़बड़ लगे तो रोगी को थोड़ी सी चीनी भी खिला दे। यह सन्यासियों की बताई हुई औषधि है। इसके कुछ दिनों के प्रयोग से रोगी का सुजाक रोग, जड़ से ही निर्मूल हो जाता है।
औषधि के सेवन काल में रोगी को दूध और घी पर्याप्त मात्रा में खाना चाहिए , साथ ही यह भी ध्यान रखें कि रोगी नमक बिल्कुल न खाएं, क्योंकि नमक के सेवन से रोग से निजात पाना संभव नहीं है
रामबाण इलाज
अब जो औषधि हम आपको बताने जा रहे हैं , वह इतनी प्रभावशाली है कि 15 वर्ष पूर्व हुए सुजाक के रोग का भी इलाज आसानी से किया जा सकता है। इस इलाज से रोग का नामोनिशान नहीं बचता है। इस औषधि की केवल 7 मात्राएं ही रोग को सफलतापूर्वक नष्ट करने के लिए काफी होती हैं।
इसके लिए निमोली/ बकायन [ फल ] , जिसे पंजाबी में डकानी भी बोलते हैं। इस इस वृक्ष को संस्कृत में महानिम्ब , मराठी में बकाणीनिम्ब , तथा गुजराती में बकान्य भी कहते हैं। इस वृक्ष के पर्याप्त मात्रा में बीज लेकर उनको सबसे पहले छाया में सुखा लें। पूरी तरह से सूखे हुए फ़लों को किसी सिलबट्टे या हमामदस्ते की सहायता से कूट-पीसकर , कपड़छन चूर्ण बना लें। यह चूर्ण ही सुजाक रोग की उपयोगी तथा उपयुक्त औषधि है। इस औषधि के चूर्ण को किसी कांच की वायु रोधी शीशी में सुरक्षित रख लें।
इस चूर्ण की 6 ग्राम मात्रा सुबह , तथा 6 ग्राम की मात्रा शाम को भी सेवन करना होता है। इस औषधि को गाय या बकरी के दूध के साथ सेवन कराना चाहिए। औषधि सेवन के 7 दिन पश्चात ही आप पाएंगे कि रोगी का रोग बिल्कुल निर्मूल हो चुका है। औषधि के सेवनकाल में तेल से बने पदार्थ , गुड , खटाई , नमकतथा मिर्च आदि पूर्णतयाः वर्जित है। परंतु मांसाहारी लोग मांस के साथ पर्याप्त मात्रा में लाल मिर्च खा सकते हैं
इस औषधि के बारे में हम तो पर्याप्त जानते ही हैं , परंतु यदि आप इसका उपयोग करेंगे , तब पाएंगे कि सुजाक के रोगी के लिए यह बहुत ही उपयुक्त औषधियां हैं। आप बिना किसी हिचक , बिना किसी झिझक के , बिना लाग-लपेट, बिना किसी डर के , इस औषधि का उपयोग मरीज को ठीक करने में कर सकते हैं।
जय आयुर्वेद
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