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धर्म ; असीम आनंद का आदिश्रोत है परमात्मा
इस संसार में सुख की अभिलाषा किसे नहीं होती है | अर्थात यहां पर जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी को ही सुख की अभिलाषा होती है | क्या मनुष्य क्या पशु-पक्षी और क्या मूक जानवर सभी को यह चाहत किसी न किसी रूप मे अवश्य बनी ही रहती है | पक्षियों द्वारा कलरव करना , इधर उधर फुदकना , पेड़ों की डालियों पर बैठकर इतराना , चहचहाना और दाने चुगना आदि क्रियाएं करना , यह सभी कुछ और नहीं , बल्कि सुखचैन पाने की ही क्रिया कवायद है | इसी तरह पशुओं का मस्ती में आकर इधर - उधर दौड़ लगाना , कुलांचे भरना और तेज चाल से चलना सभी कुछ सुख पाने के लिए ही किया जाता है |
मानव की सुख की खोज
जब इस संसार का प्रत्येक प्राणी सुख पाने का प्रयास करता है , तो मानव ही पीछे क्यों रहे , वह भी अपने सुख की प्राप्ति के लिए तरह तरह के प्रयास करता है | क्योंकि मानव खुद को संसार के सभी जीवो मे अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमान तथा जगतनियंता परमपिता परमेश्वर का प्रतिनिधि समझता है | यही कारण है कि वह समझता है कि , सुख पर उसका शाश्वत अधिकार तथा उसे पाने का प्रबल पुरुषार्थ भी है | अतः सुख की प्राप्ति के लिए वह जीवन में धन , ऐश्वर्य तथा विविध प्रकार के उपयोगी पदार्थोँ का अर्जन तथा उपार्जन करता रहता है | क्योंकि ऐसा करना वह भौतिक जीवन व भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए तो आवश्यक समझता है , और आवश्यक है भी | पर क्या उसके इन प्रयासों से उसे वास्तविक सुख की प्राप्ति हो पाती है , शायद नहीं | वास्तव में भोग पदार्थों से प्राप्त भौतिक सुखों की सीमा , भौतिक शरीर तथा भौतिक जीवन के आस-पास ही समाप्त हो जाती है | इसका सीधा परिणाम यह होता है कि , भौतिक सुखों को प्राप्त कर लेने के बाद भी , वह व्यक्ति अतृप्त , अशांत और उदिग्न ही बना रहता है | अंत में वह जीवन भर भौतिक सुख-साधनों , विभिन्न प्रकार के भोगों के पीछे भागते-भागते रहने के बाद , भी उस मानव के हाथ कुछ नहीं लगता है | उसका सारा जीवन इसी सुख की मृग मरीचिका के पीछे दौड़ते दौड़ते समाप्त हो जाता है | इस प्रकार से उसका अनमोल और बहुमूल्य जीवन यूं ही बीत कर , शून्य हो जाता है |
मानव जीवन की अपूरणीय क्षति
अवास्तविक सुखों की प्राप्ति मे मानव का संपूर्ण जीवन शून्य हो जाना उसकी सबसे बड़ी क्षति है | क्या मानव जीवन को इससे भी बड़ी कोई अन्य क्षति हो सकती है | शायद नहीं , हरगिज़ नहीं | अतः उसे अब यह जान लेना चाहिए और मान लेना चाहिए कि अब तक उसने जो गंवा दिया है | उसको भूलकर वह वास्तविक सुखों की प्राप्ति के लिए अब देर न करे | क्योंकि विविध भोग पदार्थों से प्राप्त सुख शाश्वत नहीं है , बल्कि नश्वर है | संसार के अवास्तविक सुख , इंद्रियजन्य तथा क्षणिक हैं | इनकी प्राप्ति कर लेने अथवा भोग लेने के बावजूद भी , अंत तक हमारी इच्छाएं अतृप्त ही रहती हैं , क्योंकि उनको पाने की इच्छा हमारे मन में सदैव बनी रहती है | जिस प्रकार अग्नि में कुछ भी डाल देने से अग्नि बुझती नही बल्कि और तेजी से प्रज्वलित हो जाती है | ठीक इसी प्रकार प्रत्येक मानव के मन मे सुखो दर सुखों की प्राप्ति के उपरांत भी , इनके पाने की लालसा बढ़ती ही रहती है | मानव मन की यह अभिलाषा रूपी अग्नि कभी भी कदापि बुझती या समाप्त नहीं होती है | अंत में यह भी कहा जा सकता है , कि भोग पदार्थों तथा भौतिक सुख साधनों से सुख पाने की अंतहीन लालसा से ठोस रूप में कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है |
जीवन व्यर्थ ना जाने दे
इस संसार के सभी मानवों को अपने से बड़े बड़ों की जीवनी पर एक निगाह अवश्य डालनी चाहिए | ऐसा करने से आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे , जिन्होंने अपनी सारी उम्र बचपन से लेकर बुढ़ापे तक , भौतिक सुखों के पीछे भागते हुए गुजारा होगा | धन वैभव और विभिन्न प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति मे उन्होंने अपना पूरा जीवन समाप्त किया होगा | परंतु वृद्धावस्था या उम्र के अंतिम पड़ाव पर उन्हें यह कहते हुए पाया होगा कि , उनका तो सारा जीवन ही व्यर्थ गया | संपूर्ण जीवन बीत जाने के बाद भी , उन्हें कुछ प्राप्त नहीं हुआ | यानी नतीजा शून्य हीं रहा | ऐसे लोगों ने अपने जीवन में भौतिक सुख-साधनों को पा लेने के बाद भी अपने जीवन को अधूरा , अपूर्ण और एकांगी ही पाया होगा | दूसरों के संपूर्ण जीवन को देखकर , प्रत्येक मानव को इस पर विचार करना चाहिए | \\\\
🔺आनंद प्राप्ति का सच्चा मार्ग
उपरोक्त सभी सुखों का विवेचन करने के उपरांत , मानव को एक सच्चे गुरु की खोज करनी चाहिए , जो उसे सुख प्राप्ति का सच्चा मार्ग दिखा सके | सच्चा गुरु ही आपका सही मार्गदर्शन कर सकता है | जिससे आपका जीवन सच्चे सुखों से ओतप्रोत हो सकता है | एक सच्चा गुरु ही बता सकता है कि , जीवन में शाश्वत सुख व आनंद की प्राप्ति का सही मार्ग सद्गुरुओं , संतो और शास्त्रों से ही मिल सकता है | सच्चा मार्ग बताते हुए वह आप को यह भी जानकारी प्राप्त करा देगा कि , वास्तव में इंद्रियजन्य सुख, भौतिक साधनों, भोग- पदार्थों से पाया गया सुख, सच्चा सुख है ही नही , बल्कि यह सुख तो केवल सुख की मृग मरीचिका मात्र है | सच्चे सुखों को पाने की लालसा में इस संसार के बहुत से लोगों ने अपने अनमोल जीवन नष्ट कर दिए है | उनके अनेकों प्रयासों से भी उन्हें सच्चा सुख प्राप्त नही हुआ है | सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए मानव को संतो सद्गुरुओं ऋषियों तथा मुनियों का सानिध्य प्राप्त करके ही पाया जा सकता है |
आत्मा ईश्वर का प्रकाश रूप है
निस्संदेह , ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है | इस रचना की सुंदरता के लिए उसने पेड़ , पौधे , वनस्पतियां , सागर , पहाड़ , नदियां , सूर्य और चंद्रमा आदि का निर्माण किया है | प्रत्येक जीवआत्मा में उसी का सनातन अंश विद्यमान है | इस देह के भीतर स्थित यह आत्मा , अविनाशी और नित्य है | हमारी आत्मा भी ईश्वर का ही प्रकाश प्राप्त कर उससे जुड़ने की कोशिश करे | यह जड़ नहीं , बल्कि चेतन है | इसतरह से यह सिद्ध होता है कि सुख व आनंद की प्राप्ति भोग पदार्थों से न होकर , आनंद की आदि अनादि अनंत स्रोत ईश्वर से जुड़कर ही हो सकती है | जब हम अपनी अंतस मे जन्म-जन्मांतरों से सुप्त , आत्मा को योगाग्नि व ब्रम्हाग्नि से तथा बारंबार के अभ्यास से जागृत कर नही लेते हैं तबतक हमें सच्चा सुख प्राप्त नहीं हो सकता है | यदि हमने आत्मा को जागृत कर लिया फिर तो विराट ब्रह्म से प्रदीप्त उस अग्नि के आलोक से जीवन प्रदीप्त हो उठेगा | और तब ही मानव को अपने जीवन में सच्चे सुख की अनुभूति हो सकेगी |
इति श्री
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