सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

[ 1 ] उपचार; दृष्टि को ताउम्र सुरक्षित रखने के लिए माचड़ का उपयोग करें

कोड-01

वेब- gsirg.com

उपचार; दृष्टि को ताउम्र सुरक्षित  रखने के लिए माचड़  का उपयोग करें

अगर भगवान ने हमारे शरीर में कोई हीरा अंग बना दिया है, तो यह केवल आँखें ही है। अगर किसी कारण से व्यक्ति की दृष्टि कमजोर हो जाती है, या आँखों से दिखाई पड़ना बन्द  हो जाता है तो उसके पूरे जीवन में अंधेरा हो जाता है | ऐसे मे यह भी कहा जा  सकता है कि अंधापन , जीवन के लिए एक अभिशाप की तरह है। व्यक्ति की अंधापन के बाद , उसके शेष जीवन में विभिन्न प्रकार के दुखों से भरा हो जाता है। यही कारण है कि हर व्यक्ति को उसकी आंखों का ख्याल रखना चाहिए, इसीलिए हर आदमी को इनकी सुरक्षा बेहतर ढंग से करनी चाहिए |


इसके लिए, यहां हम आपको एक आयुर्वेदिक नुस्खा बता रहे हैं। इस नुस्खे का उपयोग करके, आप अपनी आंखों को ताउम्र सुरक्षित रख पाएंगे| इसका प्रयोग करने से आपकी आँखों की नजर कबूतर की आँखों की जैसी हो जायेंगी |  कम से कम आपको इस जीवन में अपनी आंखों की कोई कमजोरी महसूस नहीं होगी । इस औषधि में प्रयुक्त बूटी  का नाम है माचड़ ।

औषधि की प्राप्ति के संबंध में

यह औषधि  मिट्टी के उच्चकोटि की मिटटी के  उपजाऊ  क्षेत्रों मे  पैदा होती है, जिसे गांव के भाषा  में भीटा  कहा जाता है। बरसात के मौसम के शुरुआती दिनों में, यह दवा इन्ही टीलों पर पैदा होती है | इस ऋतु मे जवान होने के बाद, यह गर्मी के  दिनों में लुप्त हो जाती है , अर्थात मृत हो जाती है , और पुनः बरसात मे एक बार फिर से इसे फिर से पैदा करना शुरू हो जाती  है। इस पौधे की जड़ गृन्थिल  होती  है | इन जड़ों को ही औषधि  के लिए उपयोग किया जाता है | गांव में रहने  बनमानुष जाति के लोग इसकी जड़ों को खोदते हैं , और काफी मात्रा में इकट्ठा करते हैं। बाद मे वे इसे छाया में सुखाने, मे सुखाने के बाद  पंसारियो के यहॉं शहरों में उच्च कीमतों पर बेचा देते  है। जिससे  उन्हें काफी लाभदायक भी मिलता है |

औषधि  बनाने की विधि 

इस पौधे की  सिर्फ जड़ को ही औषधि  के लिए प्रयोग किया जाता है। तो सबसे पहले इस पौधे की  बहुत सारी जड़ें  इकट्ठा कर लें | चिकित्सा हेतु इसकी जड़ें  घर ले आइये ,  और इसे छाया मे सुखा लीजिये । छाया में सुखाने से पहले, इस पौधे की जड़ें को छोटे छोटे टुकड़ों  मे विभाजित कर लिया जाता हैं। दवा के सूखने पर, इसे हमामदस्ते  या खरल में डालकर कूटपीसकर इसका महीन महीन अच्छा सा पाउडर बना लें । इसके बाद, इस पाउडर को कांच की बोतल मे सुरक्षित करके  रख लें , ताकि इसमें कोई नमी न लग पाए , इसका कारण यह है कि जब इसमें नमी लग जाती है, यह दवा अपेक्षाकृत कम प्रभावी होती है , और कभी-कभी  बेकार भी हो जाती है। इसलिए दवा को एक सुरक्षित जगह पर रखें |

औषधि  के उपयोग की मात्रा

इस दवा के तीन ग्राम की मात्रा को  , दैनिक गतिविधियों से निवृत होकर सेवन कर लेना चाहिए |  इसे शहद के साथ ले सकें तो ज्यादा अच्छा  होगा। दवा का सेवन करने से 40 मिनट पहले, और 40 मिनट के बाद , कुछ भी खाना  तथा पीना  पूर्णतयाः वर्जित  है | दवा सेवन अवधि में, गुड़  , तेल, खट्टा, नमक, मिर्च, बासी और भारी भोजन खाने से मना किया जाता है। बासी और गरिष्ठ  भोजन बिल्कुल नहीं खा सकते हैं | शेष खाद्य पदार्थों का  बहुत छोटी मात्रा में इस्तेमाल किया जा सकता है |

दिनचर्या

जब आप इस दवा का प्रयोग कर  रहे हों , तो आपको अपनी  दिनचर्या में कुछ चीजें शामिल करनी होंगी। जब आप सुबह उठते ही कुल्ला दातून करने के बाद  , आपको नेति  क्रिया अवश्य करना चाहिए। नेतिक्रिया  क्रिया के बाद, आपको अपनी नाक के दोनों नथनों से 50-50 ग्राम गुनगुने पानी पीना  चाहिए, और जब भी आप स्नान करने जाएँ , तो स्नान करने से पहले दोनों पैरों के दोनों अँगूठों में शुद्ध सरसों की मालिश 15-15 सेकेंड तक जरूर करें।


एक समस्या

इस दवा को प्राप्त करना, अब लगभग सबसे कठिन काम हो  रहा है। इसका कारण यह है कि अब किसानों ने जहां यह दवा आसानी से उपलब्ध थी ऐसे स्थानों पर खेत बनाना शुरू कर दिया है।  इसके अलावा, बनमानुष  जाति के लोग, जहां भी वे इस दवा को पाते हैं, उन्हें तुरंत खोद कर बेचने के लिए अपने पास रख लेते हैं , जिसके कारण यह दवा मिलना एक मुश्किल काम बनता जा  रहा  है। हालांकि, जहां वन और बगीचे सुरक्षित हैं, यह दवा को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। और इसका उपयोग भी किया जा सकता है हमारे क्षेत्र में, यह दवा बिल्कुल उपलब्ध नहीं है। हमने इस स्पष्टीकरण को इसलिए बता दिया  कि, अगर कोई इसे  जानता है, तो वह ऐसा कर सकता है और फायदा उठा सकता है |

जय आयुर्वेद

web - gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में