धर्म
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धर्म ; जीवन का सदुपयोग ही आध्यात्मिक जीवन है
आज हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि जीवन का महामंत्र क्या है | जीवन का महामंत्र है ,जीवन का सदुपयोग | इस दुनिया में आया हर प्राणी अपना जीवन व्यर्थ में बिताता है , परंतु कुछ लोग जीवन के प्रति सजग सतर्क और सचेष्ट होते हैं | इस संसार के अधिकतर प्राणी जीवन के इस रहस्य से परिचित नहीं होते | दूसरे शब्दों में वे लोग अपना पूरा जीवन सांसारिक सुखों को पाने में ही बिता देते हैं | जीवन के इस रहस्य को न जाने वाले लोग इन समस्याओं से घबराकर , इन समस्याओं से बचने का प्रयास करते हैं , या फिर इन समस्याओं से दूर भागने लगते हैं | परंतु जो लोग जीवन के प्रबंधन की इस विधा से परिचित हो जाते हैं | उनका ही जीवन श्रेष्ठतम बन पाता है | `12
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धर्म ; जीवन का सदुपयोग ही आध्यात्मिक जीवन है
प्रखर पुरुषार्थ की आवश्यकता
मानव अपने जीवन का सदुपयोग उसी समय कर सकता है ,जब वह जीवन के प्रति सकारात्मक और विधेयात्मक दृष्टिकोण रख सकेगा | सकारात्मक और विधेयात्मक दृष्टिकोण के क्रियान्वयन के लिए प्रखर पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है | यह तो सर्वविदित है कि कोई सिद्धांत तभी सार्थक हो पाता है जब उसकी व्याख्या होती है ,तथा सिद्धांत की स्पष्टता प्रकट होती है | सिद्धांत की सार्थकता उसकी व्याख्या विवेचना में भी नहीं है| वह तो उसके व्यावहारिक अनुभूति में है | जब तक उस सिद्धांत का होना सिद्ध न कर दिया जाए और उसे जीवन में उतारा न जाए तब तक उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं हो पाती है | स्पष्ट है कि सिद्धांत के साथ उसकी अनुभूति होना भी अनिवार्य है | वैसे तो आदर्श चिंतन की श्रेष्ठता सर्वविदित है , परंतु आदर्श कर्म उस से भी श्रेष्ठ बना देते हैं |
आदर्शोन्मुख आध्यात्मिक अति आवश्यक
कर्म से ही मानव के आदर्श जीवन का पथ प्रशस्त होता है | यह तो सच ही है कि आध्यात्मिक तत्वचिंतन और धारणा से ही कोई कार्य श्रेष्ठ होता है | कोई भी अपने अर्जित ज्ञान से श्रेष्ठविद्वान तो हो सकता है , और इससे उसे समाज में मान , सम्मान और प्रतिष्ठा मिल सकती है | लेकिन जब तक वह उसको अपने कर्मों में उसे शामिल नहीं करता है , तब तक जीवन सार्थक नहीं हो सकता है | इसके लिए आध्यात्मिक सत्य की अनुभूत होना भी आवश्यक है | संक्षेप में आध्यात्मिक सत्य की अनुभूति की अपेक्षा तत्वचिंतन और धारणा ही अधिक महत्वपूर्ण है |
पुरुषार्थ की आवश्यकता
मानव के जीवन में साधनात्मक पुरुषार्थ अति आवश्यक है | यह पुरुषार्थ बहुत अधिक ही हो यह आवश्यक भी नहीं है , हो सकता है थोड़ा ही हो | परंतु यह थोड़ा सा पुरुषार्थ हजार बड़ी बड़ी बातों से बढ़कर होता है | सच तो यही है कि इस दुनिया में तर्क या वितर्क , श्रेष्ठ बातों के समक्ष फीके ही रहते हैं | क्योंकि श्रेष्ठ बातों से ही भावनाओं को जगाया जा सकता है | हम सभी जानते हैं कि किसी सिद्धांत की अनुभूति के लिए यदि पुरुषार्थ न किया जाए तो , सिद्धांत निर्जीव हो जाता है | इस लिए आवश्यक है कि पुरुषार्थ करने पर ही विशुद्ध भावनाओं प्रतिपादन किया जा सकता है | पुरुषार्थ के अभाव में समय तो बेकार होता ही है तथा भावना भी अस्त व्यस्त हो जाती है | इसलिए जीवन के सदुपयोग के लिए पुरुषार्थ करना अति आवश्यक तत्व है |
भावना को कर्म में परिवर्तित करने के लिए उपाय
जब बातों से पवित्र भावनाओं का जागरण हो जाय और उनका क्रियान्वन भी हो तब ही उसका सार्थक उपयोग हो सकता है | अगर इसमें एक गलती नहीं होती है तब ही ऐसी भावना जागृत हो पाती है | कठोर तपश्चर्या के माध्यम से भावना को श्रेष्ठ ज्ञानपुंज में बदला जा सकता है | इस प्रकार से आध्यात्मिक क्रम में ही जीवन का सच्चा सदुपयोग ही सच्चा जीवन संगीत बन पाता है | इसके लिए आवश्यक है कि मन से छल , कपट ,ईर्ष्या और द्वेष का परित्याग किया जाए | इसके साथ ही लालसाओं और कुत्सित भावनाओं पर भी काबू पाया जाए | क्योंकि इन दुष्ट वृत्तियों के कारण ही जीवन सार्थक नहीं हो पाता है | भावनाओं और लालसाओं से तात्कालिक लाभ तो मिल सकता है , तथा लोगों का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है | परंतु दीर्घकालिक लाभ मिलना संभव नहीं है | अतः मन को पवित्र , निश्छल और दुष्ट व्यक्तियों से दूर करें | इसलिए भावनाओं को कर्म में बदलना अति आवश्यक है ,इसके लिए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए |
एक सटीक विवेचन
कोई भी पुरुष सांसारिक उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए जितना साहस , कर्म और संघर्ष करता है , इससे ज्यादा संघर्ष और साहस की आवश्यकता आध्यात्मिक जीवन के लिए होती है | सांसारिक उपलब्धियां पाने के लिए प्राणी को कितनी ही चुनौतियों का सामना करना करता है | यह सभी चुनौतियां बाहरी होती हैं | जबकि आध्यात्मिक जीवन के लिए उससे भी अधिक साहस और संघर्ष की आवश्यकता होती है | आध्यात्मिक जीवन की यह चुनौतियां आंतरिक और अदृश्य होती हैं | आध्यात्मिक चुनौतियों के दिखाई ना पडने से संघर्ष अधिक भारी और जटिल हो जाता है | सांसारिक पुरुष धन संग्रह करने के लिए व्यवसाय करता है , उसके लिए सब प्रकार का दिखावा करता है | आध्यात्मिक दर्जा पाने के लिए जीवन की समस्त दुर्बल दुर्बलताओं को जीतना पड़ता है | इसके लिए आध्यात्मिक ज्ञान और साधना की आवश्यकता होती है |
अंत में
विद्वानों के अनुसार आध्यात्मिक अभ्युदय के पीछे आध्यात्म का ज्ञान और साधक का रहस्य ज्ञान अदम्य और तथा उसका अदम्य साहस ही होता है ,जिसके कारण ही वह समझदारी के साथ किसी चुनौती को स्वीकार कर लेता है , और भीषण संघर्ष के बाद उस पर विजय पाता है | आध्यात्मिक जीवन की विकराल समस्याओं से मानव को कभी घबराना नहीं चाहिए , बल्कि इसके लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देना चाहिए | इस सत्य को पहचानने पर ही जीवन सच्चा और सार्थक हो पाता है , तथा जीवन सच्चा उपयोग संभव है | इसके लिए मन में उदात्त प्रेरणा जागृत करनी पड़ती है | इस प्रकार जीवन के सदुपयोग करने हेतु ही जीवन के महामंत्र की साधना करके जीवन के रहस्य को जाना जा सकता है ,और सभी प्रकार की कमियों त्रुटियों और सभी प्रकार की दुर्बलताओं पर विजय पाई जा सकती है | इसके बाद ही जीवन का सदुपयोग सम्भव है | इसके लिए कठिन आध्यात्मिक परीक्षाओं से जीवन को गुजारना पड़ता है |
इति श्री
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