सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

धर्म ; सफलता देने तथा धनवर्षिणी साधनाएं [ भाग - एक ]

web - gsirg.com

धर्म ; सफलता देने तथा धनवर्षिणी साधनाएं [ भाग - एक ]

मेरे सम्मानित पाठकगणों आज हम सफलता प्रदान करने वाली कुछ साधनाओं के विषय पर चर्चा करेंगे , कि सफलता किसे कहते हैं ? हर व्यक्ति अपने जीवन में सफल होना चाहता है | परंतु सफलता का असली मार्ग क्या है ?वह या तो उसे जानता नहीं है या फिर जानने के बाद भी , उस पर चलना नहीं चाहता है , या चल नही पाता है | इस संबंध में संस्कृत के यह श्लोक उन्हें प्रेरणा दे सकता है |
'' कर्मेण्य हि सिध्यंति कार्याणि न मनोरथै;
सुप्तस्य एव सिंहस्य प्रविशंति मुखे न मृगाः ''

अर्थ - मन में उत्पन्न होने वाली सभी आकांक्षाओं की पूर्ति , कर्म करने से ही होती है | जिस प्रकार एक सोता हुआ सिंह यदि कल्पना करे कि उसके मुंह में कोई मृग प्रवेश कर जाए , तो ऐसा संभव नहीं है | ठीक इसी प्रकार कर्म करने से ही मन में उत्पन्न होने वाली आकांक्षाओं की पूर्ति की जा सकती है , मात्र कल्पना करने से इच्छाओं की पूर्ति नही हो सकती है |

यहाँ प्रत्येक मानव को यह जान लेना चाहिए कि , उसके मन में उत्पन्न होने वाली किसी सफलता को प्राप्त करने के लिए , उसका कर्म करना अति आवश्यक है | सच तो यह है दोस्तों , इस आधुनिक संसार मे कर्म करने पर भी कभी-कभी सफल परिणाम तो मिलता नहीं है , फिर कर्म न करने पर सफलता की आशा कैसे की जा सकती है ? दुकान , नौकरी , व्यापार रोजगार आदि प्रत्यक्ष कर्म , प्रत्यक्ष सफलता के लिए आवश्यक ही हैं परंतु आज हम आपको कुछ ऐसी साधनाओं के संबंध में बताने जा रहे हैं , जिनका लगन धैर्य और परिश्रम पूर्वक मनलगाकर प्रयास किया जाए तो सफलता मिलना कोई बड़ी बात नहीं है |


साधनाओं का सही समय


किसी भी प्रकार की सफल साधना के लिए सही वक्त का चुनाव मायने रखता है |किसी भी साधना को सिद्ध करने के लिए होली का त्योहार साधकों के लिए स्वर्णिम वरदान स्वरुप दिवस है | यदि कोई साधक पवित्र भाव और पवित्र मन से इस दिन का चयन कर कई-कई साधनाएं संपन्न करे तब भी उसे अपने पूरे वर्ष को सफल और आनंद युक्त बनाने म पूरी सफलता प्राप्त होती है |


प्राचीन धार्मिक मनीषियों के अनुसार इस दिवस पर की गई साधनाएं अपना पूर्ण प्रभाव निश्चित रूप से छोड़ती हैं , जो साधक होली की इस रात्रि को अपने गुरु के आदेशों का पालन करते हुए इन साधनाओं को सिद्ध करने में अनुरक्त होते हैं , उन्हे निश्चित रूप से सफलता मिलती है | यदि कोई साधक इस विषय में तर्क-कुतर्क करते हैं तो वह अपनी अधिकांश ऊर्जा आलोचना और संदेह मे ही गवा देते हैं | इस विषय मे यह सदैव याद रखें कि अपने समस्त विरोधाभाषों के बावजूद भी तंत्र की सर्वोच्चता निर्विवाद रूप मे सत्य ही रही है |

साधना और सफलता का संबंध

वास्तव में तांत्रोक्त साधनाएं ही सफलता से अधिक संबंध रखती हैं | इसका कारण है कि , इसके पीछे व्यक्ति की जूझने की प्रवृति होती है | परिणाम स्वरुप उसे निश्चित रूप से सफलता मिलने की प्रबल संभावना होती है | एक साथ ही एक सत्य यह भी है कि , अपने समस्त विरोधाभासों के बाद भी तंत्र की सर्वोच्चता निर्विवाद रुप से सत्य होना है | होली के दिन प्रकृति भी सहायक रूप मे साधक के चारों ओर ऐसा वातावरण तैयार कर देती है कि शुद्ध चेतना भी अणुओं का संचरित होने लग जाती है , जिसके कारण साधक को उसके परिश्रम का कई हजार गुना लाभ और प्रभाव प्राप्त हो जाता है |

संपूर्ण धनहीनता की समाप्ति की साधना

साधना द्वारा मानव की पहली और उत्कट आकांक्षा होती है कि उसकी धनहीनता समाप्त हो जाए , और उसके जीवन में सौभाग्य के मौके आने लगे | इसका कारण है कि , बिना धन के जीवन मे किसी उद्देश्य किसी साधना या किसी कार्य का कोई महत्व लगभग न के बराबर हो जाता है | इस अभिशाप से जीवन जीर्ण-शीर्ण युक्त हो जाता है | ऐसे व्यक्ति के जीवन में अनेक विसंगतियों का भार बढ़ता ही जाता है | जिस दिन होली दहन की रात हो उसके पूर्व ही साधक को '' छोटे मोती शंख '' को केसर से पूरी तरह रंगकर पीले चावलों के ढेर में स्थापित कर देना चाहिए | उसके बाद रात्रि के 8 से 10 के मध्य '' मूंगे की माला '' से केवल एक माला मंत्र जप ही करना होता है |

मंत्र - '' ॐ श्रीं ह्रीं क्रों यें ''

उपरोक्त मंत्र का एक माला जप करने के बाद साधक को चाहिए कि , वह चावलों सहित '' मोती शंख '' और '' माला '' को जलती हुई होलिका में विसर्जित कर दे | उसके पश्चात घर लौट कर स्नान कर पवित्र भावना से 12 से 15 मिनट तक अपने गुरुदेव का स्मरण / ध्यान करे | यह साधना इतनी तीव्र प्रभावी और तीक्ष्ण है कि वह साधक की धनहीनता तथा जीवन में होने वाली कमियों को समाप्त कर देती है | इस साधना को सिद्ध करने वाले साधक का जीवन संपन्न तथा वैभवयुक्त हो जाता है | यह साधना अत्यधिक वैभव वृद्धि कारक , धन वृद्धि कारक तथा ख़ुशियों और सम्पन्नता प्रदायक है |

सम्मोहन और वशीकरण साधना

होलिका दहन की रात तो वशीकरण , सम्मोहन और सौंदर्य की अनोखी एवं विशेष रात्रि है | यह दिन इन साधनों को संपन्न करने की विशेष सिद्धि की रात मानी जाती है | यदि कोई साधक ऐसे मनोरथों को सात्विक भाव से साधना कर संपन्न करता है , तो उसे निश्चित सफलता का लाभ मिलता है | क्योंकि वास्तव में होली एक प्रेमसंचार का त्यौहार है , इसलिए प्रेम संबंधी , विवाह संबंधी अथवा दांपत्य जीवन मे मधुरता , सरसता तथा स्थिरता बनाए रखने के लिए उपयुक्त साधना की रात मानी जाती है | इस रात को सफलता प्राप्त करने वाला साधक ही वशीकरण की चेतना को आत्मसात कर पाता है , तथा उसके व्यक्तित्व मे सम्मोहन , आकर्षण मधुरता और ऐसे ही विशिष्ट गुणों का समावेश हो जाता है | जिससे उसका सामाजिक और पारिवारिक जीवन सफल हो जाता है |

इस साधना को करने से पूर्व साधक को सबसे पहले '' शक्तिचक्र '' प्राप्त करना आवश्यक होता है | यह शक्ति चक्र को सम्मोहन मंत्रों से सिद्ध करके तथा स्फटिक माला से 2 माला मंत्र जप करना होता है | यहां यह तथ्य विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि अगर साधक को किसी को विशेष रूप से सम्मोहित करना हो तो , उसके नाम का संकल्प लेकर ही इस तंत्र का जप प्रारम्भ करें |

मंत्र - '' ॐ कामाय क्लीं क्लीं सम्मोहनं वश्यमानय कामिन्यै क्लीं ''

इस मंत्र को यदि पति और पत्नी दोनों ही सिद्ध करना चाहें तो उनके जीवन में मधुरता और सरसता आती है , परंतु इसके लिए दो अलग-अलग '' शक्तिचक्र '' प्राप्त करने होंगे | साधना के दूसरे दिन '' चक्र '' और '' माला '' को किसी आम की जड़ में दबा दें |

आज यहां हम इन साधनों को बताने के बाद लोगों को वचन देते हैं कि , कुछ समय बाद हम इसका दूसरा भाग भी प्रकाशित करेंगे | तब तक आप साधनाओं को पूर्णतयः कंठस्थ और मन मस्तिष्क मे बिठाले , ताकि आपको किसी प्रकार की अड़चन न हो | तब तक के लिए धन्यवाद , प्रणाम , नमस्कार |

इति श्री

web - gsirg.com



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में