आजकल हमारे आसपास ऐसेबहुत से जैसे रोगी मिल जाते हैं जिनको अपस्मार यानी मिर्गी रोग होता है| इस रोग के रोगी अचानक बेहोश हो जाते हैं| इस प्रकार की बेहोशी में उनकी मानसिक स्थिति संज्ञाशून्य हो जाती है| वह जहां भी होते हैं वहां भी वहां पर ही अचानक गिर जाते हैं और कांपने लगते हैं| उनके मुंह से झाग निकलने लगती है| ऐसा कहा जाता है कि ऐसे रोगी अक्सर आग या पानी के नजदीक ही गिरते हैं और लगभग इस रोग की चरम स्थित में उनकी मृत्यु ही हो जाती है| यह एक नामुराद रोग है जो किसी भी समय उनकी जान ले सकता है इसीलिए इसे जानलेवा रोग भी कहते हैं क्योंकि इसमें हर पल रोगी को जान का खतरा बना रहता है| क्योंकि रोगी को अचानक ही मिर्गी का दौरा पड़ता है| इस रोग का कोई समय नहीं होता है|
मिर्गी रोग का कारण
मिर्गी एक मानसिक रोग है अतः मानसिक कारक है इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं जैसे चिंता शोक आदि| यह कारण शरीर में दोष पैदा करते हैं और प्रकुपित होकर हृदय के स्रोतों में रुक जाते हैं| जिसका परिणाम यह होता है कि रक्त वाहिनी नाड़ियों में रुकावट पैदा होती है| परिणाम स्वरुप मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है और स्मृति वाहिनियों का नाश हो जाता है जो रोगी को संज्ञाशून्य कर देते है| यही अवस्था मिर्गी की भयानक अवस्था कही जाती ह
रोगी के पीड़ित होने के स्थान
ऐसा माना जाता है कि मिर्गी के दौरे किसी भी समय और किसी भी जगह पर पड सकते हैं लेकिन एक विचार यह भी है कि रोगी को यह लोग अक्सर पानी, भीड़ वाली जगहों, आग या गड्ढे आदि के पास होता है| जिसका उसे ध्यान नहीं रहता है, संज्ञान नहीं रहता है|
रोग के लक्षण
इस रोग में रोगियों को कई प्रकार का अनुभव होता है जैसे किसी किसी रोगी को फलों या फूलों की सुगंध महसूस होती हैं या फिर अचानक अंधकार का अनुभव होता है|रोगी की आँखे टेढ़ी टेढ़ी हो जाती है और पीछे की ओर छिप सी जाती है| इसके बाद रोगी बेहोश होने लगता है और अचानक गिर जाता है| इसके बाद अपने हाथ पैर पटकने लगता है| इसी बीच में रोगी के शरीर में अकडन शुरू हो जाती है| यह अकडन हाथ पैर से शुरू होकर सभी अंगों में फैलती जाती है| जब यह सिथति बढ़ जाती है तो रोगी के अपने कपड़ों में मल मूत्र का विसर्जन भी कर लेता है| उसकी जीभ अकड जाती है तथा आँखें निश्तेज होकर फटी फटी सी हो जाती है| उस समय यदि उसकी आँखों पर प्रकाश डाला जाये तो उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
रोगी की स्थिति
इस रोग के रोगी का शरीर एकदम से ही अचानक कंपकपाने लगता है वह अपने दांत जकड़ जाते हैं| साथ ही उसके मुंह से झाग निकलने लगती है| कभी कभी उसके जबड़े भी कस जाते हैं रोगी की सांस् की गति भी बढ़ जाती है| और उसे सब कुछ काला काला सा दिखाई देने लगता है| मुंह से पीला झाग भी गिरना शुरू हो जाता है| रोगी का शरीर चेहरा और आंखें पीली पड़ जाना तथा रोगी को प्रत्येक वस्तु लाल या पीले रंग की दिखाई देने भी लगता है| रोग के दौरे के बाद यदि रोगी से पूछा जाए तो उसे प्यास अधिक लगती है, और शरीर में जकडन और शिथिलता भी होती है| उसे अपने चारों ओर आग लगी हुई अनुभव होती है|
मिर्गी रोग के उपचार
इसके उपचार के लिए परिजनों को थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा और इसके लिए आप किसी स्मसान में जाना पड़ेगा और यदि आपका रोगी पुरुष है तो वहां से किसी पुरुष की सिर की हड्डी ले आए| शमशान में वहां के रहने वाले आदमी से जानकारी करें यदि कोई मृतक पुरुष वहां पर जलाने के लिए लाया गया होगा तो वह आपको पुरुष के सिर की हड्डी दे देगा|
यदि आप का मरीज महिला है तो स्मसान मृतक और दाह संस्कार की गयी महिला की सिर की हड्डी लाएं| इसको प्राप्त करने के लिए आपको केवल स्मसान तक जाना होगा| लेकिन कोई अन्य परेशानी नहीं होगी| इसके लिए आप किसी भी समय जा सकते हैं और हड्डी एकत्र कर सकते हैं|
बनाने की विधि
श्मशान से लायी हड्डी को घर में किसी सिलबट्टे इमामदस्ते से दरदरा कूट लें फिर उसके बाद उसे किसी खरल में डालकर महीन पाउडर बना लें| यह पाउडर ही चिकित्सा में काम आएगा| इस चूर्ण को किसी कांच या चीनी के ऐसे बर्तन में ऐसी जगह रखे जहां पर नमी न जा सके| इसप्रकार आप का चूर्ण की सुरक्षित रहेगा और सुचारू रूप से सही ढंग से रोग को समाप्त करने कीक्षमता वाला बना रहेगा क्योंकि सीलन लगा चूर्ण आधा अधुरा ही काम करेगा| इसके साथ ही यह भी ध्यान रखें इसे जमीन पर न गिरने दे|
प्रयोग विधि
इस चूर्ण की लगभग 7 से 8 ग्राम मात्रा रोगी को प्रातः काल निराहार खिला दे| उसके बाद उसे किसी धार्मिक स्थल पर ले जाएं, और रोगी से कहें कि वह अपने ईश्वर की प्रार्थना करें कि वह उसे इस रोग से निजात दिला दे| तत्पश्चात रोगी को घर में लाकर शांत एकांत और हवादार कमरे में सुला दे| जब भी रोगी जाग जाए तो उससे मनोरंजन की बातें करें|
एक बार यह दवा प्रयोग करने के बाद इसे पुनः 3 माह बाद फिर से दे सकते हैं| इसके प्रयोग से आप का मरीज ठीक हो जाएगा| रोगी को कभी भी अपने रोग का एहसास ना होने दें| उसे मानसिक रूप से इस तरह तैयार करें कि वह समझने लगे कि उसका रोग खत्म हो गया है|
पूरक इलाज
उपरोक्त इलाज करने के साथ ही घर वालों को चाहिए कि दवा देने के एक सप्ताह बाद से यह इलाज भी साथ में करें| उसे 10 ग्राम लहसुन और तिल का तेल 200 ग्राम दोनों को आपस में मिलाकर रखें | प्रातः और शाम को इसे रोगी को 10 ग्राम की मात्रा में रोज सेवन कराएं यह इसका पूरक इलाज है|
साथ ही इलाज के दूसरे दिन से किसी पंसारी के यहां से जायफल खरीद कर ले आए इन जायफलों के बीच में छेद करके 21 जाए जायफलों की एक माला बना लें| इस माला को रोगी के गले में पहना दे| इससे भी रोग को ठीक करने में मदद मिलती है अगर आप पूरे ध्यान और विधान के साथ सभी बातों का ध्यान रखते हुए यह इलाज करेंगे तो मेरा विश्वास है कि आप का मरीज कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएगा|
अन्य सावधानियां
रोगी के साथ ऐसी बातें करें जिससे उसे लगे कि उसका रोग बिल्कुल समाप्त हो गया है| इससे रोग के खतम होने का उसे मानसिक बल मिलेगा और उसे अहसास होने लगेगा की उसका रोग ठीक हो गया है या
उसे यह बीमारी नहीं रह गयी है| साथ ही रोगी को दवा के दौरान हल्का भोजन दें| उसे किसी साफ हवादार कमरे में रखे या फिर उसके लिए एक कमरा ही निर्धारित कर दें, जिसमें वह अकेला रहे| उसके साथ जो भी व्यक्ति साथ में रात को रहे वह जाग जाग कर उसकी निगरानी करता रहे| ऐसा लगभग 6 महीनों तक करना होगा| यह इस रोग की ऐसी दवा है जो रोग को निर्मल, निर्बल निर्मूल कर देती है, जिसके कारण रोग की तीव्रता घटती जाती है और रोग धीरे धीरे खतम हो जाता है| चिकित्सा के आदि से अंत तक धैर्य रखना अति आवश्यक है| क्योंकि इस रोग से रोग से कब पीड़ित हो जाए कहा नहीं जा सकता है| इसलिए इंतजार करें अगर एक या दो साल में यह रोग दुबारा नहीं होता है तो आप मान लें कि रोगी ठीक हो गया है| ऐसा भी हो सकता है कि यह रोग पुनः हो जाए तो आप इस दवा को 3 माह बाद पुनः शुरू कर सकते हैं| इसमें ज्यादा समय भी नहीं लगता है और ना ही ज्यादा खर्च आता है| केवल इंतजाम करना पड़ता है| 3 महीने बाद पुनः इसी प्रकार इसी इलाज को दोहरा दें| हां अगर एक या दो साल तक रोगी इस रोग से पीड़ित नहीं होता है तो जान लें कि अब रोगी इस रोग से पूर्णत ठीक हो चुका है|
विशेष और आवश्यक
अगर आपका रोगी ठीक हो जाए तो चिकित्सा की शुरुआत में आप जिस स्थान पर रोगी को ले जाकर ईश्वर से प्रार्थना की करवाई थी उस जगह पर अपनी सामर्थ्य के अनुसार 51 या 101 रुपए का प्रसाद उसी जगह पर जरूर बाँटे| क्योंकि आपका रोगी ठीक हो चुका है इसलिए यह कोई बड़ी रकम नहीं है| यह तो श्रद्धा भाव से ईश्वर को या अल्लाह को अथवा अपने ईष्ट या जीसस को जिसे भी आप सर्वोपरि मानते हैं यह उसके प्रति श्र्ध्हा प्रदर्शित करने के लिए दिया जाता है| इस तथ्य को बेकार न समझें इसे जरूर करें और ठीक हो जाने पर ईश्वर का गुणगान करें|
जय आयुर्वेद
|web - gsirg.com
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