सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

इलाज ; गुर्दे की पथरी

Web - gsirg.com
इलाज ; गुर्दे की पथरी
हमारे शरीर का पिछला भाग पीठ कहलाता है | इसके निचले भाग में शरीर के भीतर दोनों ओर सेम के आकार की दो संरचनाएं पाई जाती है , जिन्हें गुर्दा कहा जाता है | गुर्दे शरीर के फिल्टर हैं | यह दोनों ही फिल्टर मूत्र मार्ग में आए हुए दूषित पदार्थों को छानकर अलग करते हैं | लोगों के गुर्दे में जब दूषित पदार्थों काफी मात्रा इकट्ठा होकर एक पिंड बना लेते है | इस प्रकार की बनी हुई संरचनाओं को पथरी कहते हैं | पथरी का स्थान गुर्दे में होता है | इसलिए इन्हें गुर्दे की पथरी कहते हैं | यह बीमारी मूत्र संस्थान से संबंध रखने वाली होती है , और पीड़ित को बहुत ही कष्ट देती जाती है | इस रोग से पीड़ित व्यक्ति रोग से तिलमिलाकर बेहोश भी हो जाता है |
गुर्दे में पथरी होने के कारण
वास्तव में गुर्दे मूत्र से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं | यदि किसी कारणवश इनकी प्रक्रिया बाधित होती है , उसी समय व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हो जाता है | इस रोग में मूत्र के साथ निकलने वाले चूने आदि के रूप में विभिन्न छारीय तत्व , जब किसी कारणों से मूत्र नलिका या मूत्राशय में रुकने लगते हैं | उस समय यह आवांछित पदार्थ वहाँ पर प्रकुपित वायु के प्रभाव में आ जाते हैं | उसके बाद गुर्दे में एकत्र होकर रेत या कंकड़ का रुप होने लगते हैं | प्रारंभ में इनका आकार बहुत ही छोटा होता है | समय के साथ-साथ यह कंकड़ बढते रहते हैं और बड़ा आकार ले लेते हैं | कभी-कभी कई कंकड़ भी बन जाते हैं |
केले द्वारा इलाज
इनकी औषधीय चिकित्सा करने के कई तरीके हैं | इस परेशानी में केले की जड़ का प्रयोग होता है | रोगी को प्रातः काल जड़ की एक तोला मात्रा सेवन कराई जाती है | उसके बाद पूरे दिन उसे भोजन में गेहूं की रोटी और कुलथी का साग दिया जाता है | इसके अलावा रोगी को अन्य कुछ खाने को नहीं दिया जाता है | पूरा दिन बीत जाने के बाद रोगी को सारी रात जागरण करना पड़ता है | रोगी की रात्रि जागरण में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए | यदि रोगी जरा सी भी झपकी ले लेता है , तब उसे इस रोग से छुटकारा नहीं मिल पाता है | अगले दिन प्रातः से रोगी अपनी नियमित दिनचर्या शुरू कर सकता है | फिर भी उसे 1 सप्ताह तक खाने में रोटी के साथ कुलथी का साग ही दिया जाना चाहिए | इसके अलावा अब उसे खाने में दाल और चावल भी दिया जा सकता है |
पूरक चिकित्सा
गुर्दे की पथरी के रोगी को जिस दिन से दवा सेवन कराई जानी होती है |उसके 1 दिन पूर्व से ही उसे यव का पानी या नारियल का पानी या गन्ने का रस अथवा कुल्थी का पानी में से किसी एक का सेवन करना आवश्यक होता है | इस पानी को रोगी के दवा के सेवन से 1 दिन पूर्व और दवा सेवन की पश्चात तक दिन तक आवश्यक रूप में दिया जाना चाहिए | इसके बाद अगर उपलब्ध हो तो यह पानी पिलाना 7 दिन तक जारी रखें फिर भी 3 दिन तक अवश्य पिलाएं |
जवाखार से इलाज

गुर्दे की पथरी के लिए प्रयुक्त होने वाली औषधियों में जवाखार का महत्वपूर्ण स्थान है | जवाखार को आसानी से पंसारी के यहां से खरीदा जा सकता है | जवाखार की 1 ग्राम की मात्रा प्रातः पानी के साथ लेनी होती है | इसी प्रकार एक ग्राम की मात्रा पानी के साथ ही शाम को भी लेनी होती है | यदि इसी के साथ के साथ गोखरू का चूर्ण 2 ग्राम और पत्थरचट का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर दिन में पीड़ित को दो बार कुनकुने पानी से पिलाते हैं , तो रोगी को अपेक्षित लाभ मिलता है | इस दवा को रोगी को लगभग 3 महीने तक करना पड़ता है |
अंत में
इन दोनों प्रकार की चिकित्साओं में किसी एक का प्रयोग करने से मूत्राशय अर्थात गुर्दे की पथरी टुकड़े टुकड़े होकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है | क्योंकि यह पथरी मूत्रनलिका के रास्ते से ही बाहर निकलती हैं , इसलिए पेशाब करते समय जलन या पीड़ा भी हो सकती है | कभी-कभी तो खून भी आ जाता है या खून मिला हुआ पेशाब होता है | परंतु इससे घबराना नहीं चाहिए | क्योंकि यह भी चिकित्सा का ही एक हिस्सा है || इस बात को सदैव याद रखें कि मूत्रनलिका से पथरी परेशानी के साथ ही नीचे उतरती है | पथरी उतरने की यह क्रिया कष्टदाई होती है | इससे घबराने से काम नहीं चलेगा | किसी-किसी रोगी में यह पथरी तो सामान्य रेत बनकर बाहर निकलती है , तब रोगी को कोई कष्ट भी नहीं होता है | कभी-कभी तो रोगी की पथरी इतनी सख्त हो जाती है किं वह इन आयुर्वेदिक औषधियों से से भी बाहर नहीं निकल पाती है | ऐसी अवस्था में रोगी को चिकित्सक को दिखाना अति आवश्यक हो जाता है , क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति है , जिसमें ऑपरेशन द्वारा ही पथरी को बाहर निकाल कर रोगी को आराम मिलाया जा सकता है | इसीलिए ऐसी स्थिति में रोगी को कुशल चिकित्स्क के पास ले जाना ही उचित होता है |

जय आयुर्वेद



Web - gsirg.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक छिपकली की कहानी

एक प्रेरणादायक कहानी यह सच्ची कहानी हम सभी को आशावान् परोपकारी और कर्मशील बने रहने की शिक्षा एवम् प्रेरणा देती है। जब एक छिपकली कर सकती है, तो हम क्यों नहीं?       [यह जापान म...

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वा...

11 इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण

web -  helpsir.blogspot.in  इलाज ; दमा और एलर्जी का समसामयिक कारण मेरे सुविज्ञ पाठकगणों कुछ ऐसी बीमारियाँ  होती है , जो विशेष समय पर ही होती हैं , इन्हे हम बोलचाल की भाषा मे '' समसामयिक बीमारियां  '' कहते हैं जैसे सर्दी जुकाम | ें यह बीमारियों का एक निश्चित समय पर तथा निश्चित वातावरण मे अनायास ही व्यक्ति को अपनी गिरफ्त मे लेकर अपना भयावह स्वरुप  दिखाने लग जाती है | जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह गर्मी के दिन है | इस समय सभी किसान भाई अपनी गेहूँ कि फसल तैयार करके अपना गेहूँ घर लाने मे लगे हुए हैं | किसान इस फसल को घर लाने से पहले उसकी कटाई व मड़ाई करते है | मड़ाई के बाद ही किसान को गेहूँ के साथ जानवरों को खिलाने के लिए '' भूसा '' भी मिल जाता है |      यह समय रवी की फसल गेहूँ की कटाई, मड़ाई का हैं | सभी किसान का यह काम जोरों पर है।मड़ाई के कारण चारों ओर '' भूसे '' के छोटे छोटे कण वायुमंडल में प्रचुरता से विद्यमान रहते हैं। इसीतरह धनिया और तिलहन आदि फसलो  के छोटे छोटे कण भी वातावरण मे बहुतायत से फैले हुए होते है...