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हमारा ब्रह्मांड बहुत ही विशाल तथा विस्तृत है | एक अनुमान के अनुसार इसका फैलाव लगभग 93 अरब प्रकाशवर्ष हैं | इसमें अनेकों पिंड और ग्रह स्थित हैं | इन पिण्डो और ग्रहों का समय समय पर निश्चित ही बहुत बड़ा असर मानव जीवन पर पड़ता रहता है | तदनुसार ग्रहण का भी कालखंड अनेक प्रभावों और चेतन रश्मियों से परिपूर्ण होता है | इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है कि वह पृथ्वी के किस भाग मे और किस देश में दृष्टिगोचर होता है | अथवा दिखाई नहीं पड़ता है | परंतु उसका प्रभाव प्रत्येक प्राणी पर पड़ता ही है | प्रत्येक जानकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि इस ब्रह्म शक्ति के हम एक छोटे अणु का लघुरूप ही हैं | इस प्रकार उसकी प्रत्येक क्रिया और प्रतिक्रिया में हमारी भागीदारी होती है | इसलिए हमें अपने हिस्से के भाग को ग्रहण करने के प्रति गंभीर और जागृत रहना चाहिए , क्योंकि ऐसा कर पाने के पश्चात ही हमारे जीवन में अनुकूल परिस्थितियां और जीवन निर्माण की चेतना पर्याप्त मात्रा मे हमे उपलब्ध हो सकेगी | प्रत्येक प्राणी को यह जानना चाहिए कि , प्रत्येक वस्तु में जीवंतता है , उसे ऊर्जा और चेतना की आवश्यकता होती है | यह ऊर्जाशक्ति हमें इसी ब्रह्म चेतना के माध्यम से प्राप्त होती है |
आज के इस व्यस्त भौतिकवादी युग मे मानव ने सभी प्रकार के साधनों का निर्माण कर लिया है | इसके पश्चात भी उसकी व्यस्तताओं में कोई कमी नहीं आई है | यदि कोई व्यक्ति '' मंत्र साधना '' कर सके तो व्यर्थ के तनाव से मुक्त हो सकता है , तथा ईश्वरीय सम्मान , सुरक्षा निश्चिंतता और किसी भी आशंका से मुक्ति पा सकता है |
रिद्धि सिद्धि और धन लाभ की साधनाएं
कोई भी व्यक्ति मजबूरी बस सूखी रोटी स्वीकार कर सकता है , परंतु वह जीवन में सहजता की स्थिति खोजता रहता है | प्रत्येक व्यक्ति की एक धारणा होती है कि वह धन की प्राप्ति कर अपने जीवन को सहज और सरल बना सकता है | धन प्राप्ति के लिए अनुचित कार्यों को करना किसी भी प्रकार उचित नहीमाना जा सकता है | अपनी उत्कट आकांक्षा की पूर्ति के लिए यदि वह शाबर सिद्ध मंत्र की कुछ साधनाओं का सिद्धिकरण कर ले , तब उसकी इस आकांक्षा की पूर्ति हो सकती है , और उसके जीवन में रिद्धि सिद्धि , तथा धन लाभ की पूर्णरूपेण स्थितियां लगातार निर्मित होती रहती हैं | इन सिद्धियों की प्राप्ति साधक के जीवन में ऐसे ऐसे मार्ग प्रशस्त होते है , कि वह थोडा सा प्रयास करके सरलता से धन संग्रहित करने में सहज रुप से सफल हो जाता है |
साधना विधि
साधक को चाहिए कि सूर्यग्रहण के प्रभावी क्षणों मे स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे और अपने इष्ट गुरु का चित्र सामने स्थापित कर , धूप दीप व नैवेद्य से उसका पूजन करे | इन क्रियाओं को संपन्न करने के बाद एक थाली में कुमकुम से स्वास्तिक बनाकर उस पर मन्त्रोद्धार विधि से '' रिद्धि सिद्धि अष्टक '' स्थापित करे | इसके बाद उस पर केवल सिंदूर से बिंदी लगाए और '' पीली हकीक माला '' से नीचे दिए गए मंत्र का 108 बार जप करे |
मंत्र -
छिन्नमस्तिका ने महल बनाया , धन के कारण करम कराया , तारा आयी बैठ कर बोली ,यह रही रिद्धि सिद्धि धन लाभ ,
गोरखनाथ कहत सुन छिन्नी , मैं मछेंद्रनाथ की भाषा बोला ।
उपरोक्त सभी क्रियाएं संपन्न करने के बाद अष्टक को पूजा स्थापन मे ही स्थापित रहने दें , और माला को किसी नदी या सरोवर अथवा बहते हुए जल में विसर्जित कर दे | इससे आपकी धन लाभ की सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति हो जाएगी |
शत्रु दमन बाधा से छुटकारा
शत्रु का सीधा सा अर्थ यही है कि आपके जीवन में जो कुछ भी अघटित घटित हो रहा है , अथवा जिसके कारण आपका अहित हो रहा है , वह सभी कारण आपके शत्रु हैं | शत्रुओं से मुक्ति पाना , विभिन्न प्रकार की पीड़ाएं , बाधाएं जिनके स्वरूप जिनके भिन्न भिन्न रूप हो सकते हैं , तथा जिनसे हानि होती है | उन पर विजय पाने हेतु '' शत्रु दमन साधना '' करनी पड़ती है | दुष्ट शक्तियों से निकलने के लिए दैवीय शक्ति की आवश्यकता होती है | देवता और असुर भी जब घोर संकट में फंसते थे तो फिर दैवीय शक्तियों से प्रार्थना स्तुति कर अपनी रक्षा किया करते थे | जिसके परिणामस्वरूप उनकी स्वर्ग लोक प्राप्ति की इच्छा पूर्ण हुआ करती थी |
साधना विधि
सूर्यग्रहण के समय में स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें | इसके बाद पहले से प्रबंध किए गए एक नींबू को लेकर उस पर कुमकुम की तीन बिंदिया लगाएं | अपनी तथा अपने बायें ओर तेल का दीपक जलाएं | यह दीपक साधना काल के अंत तक जलता रखना होगा | अब नींबू को बायीं मुट्ठी में दबाकर , फिर '' मूंगा माला '' से 108 बार इस मंत्र का जप करें | प्रत्येक मंत्र जप के बाद नींबू बंद मुट्ठी को अपने सिर पर घड़ी की दिशा में घुमाएं ऐसा 108 बार करना है |
मंत्र -
अश्वगंध का जोता, गोरखनाथ का चेला,
गुरु गोरखनाथ ने दांव है खेला
अछ्टर बछता तीर कम्ंदर,
तीन मछिदर तीन काम्पर
असुर तंत्र शत्रुहाता,
एक गोरखनाथ का यह सब खेला,
शबद सांचा पिंड कांचा,
फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा
इस मंत्र के पूरे 108 बार जप करने के पश्चात , आम की लकड़ी की अग्नि पैदा करे | इसके बाद नींबू उस अग्नि मे दहन कर दे | यह ध्यान रखना है कि माला को 11 दिन धारण करना है , उसके पश्चात उसे किसी नदी में विसर्जित कर देना है | इतना करने के पश्चात आपको शत्रु बाधा से पूर्ण मुक्ति मिल जाएगी , और आपको दैवीय शक्तियों की प्राप्ति हो जाएगी |
प्रत्येक साधक को चाहिए कि वह इन साधनाओं को करने के लिए अपने गुरु का सहारा जरूर ले , और उसके निर्देशों का पालन भी करे | ऐसा करने से उसे किसी प्रकार की परेशानी नही होगी | इन सिध्दियों को पाने वाले साधक का जीवन से सुखों से परिपूर्ण हो जाता है , तथा उसके जीवन में धन प्राप्त किए जाने के नए नए रास्ते खुलते जाते हैं , तथा शत्रुओं का दमन हो जाने के कारण उसे जीवन में अनेकों सफलताएं प्राप्त हो जाती है |
इति श्री
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