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करुणा प्रेम और वात्सल्य का भंडार
माताजी अपने भक्तों से कभी भी किसी प्रकार की साधना , जप अथवा विधि या विधान की अपेक्षा नहीं करती हैं | आदिशक्ति माता की मूल प्रकृति और स्वभाव मै ही केवल करुणा , प्रेम और वात्सल्य का सागर समाया हुआ है | इसलिए वह हर एक प्राणी को पुत्रवत मानती हैं | इसीलिए उसकी हर त्रुटियों का निवारण कर , अथवा उन को भूलकर उसके जीवन के कष्टों और संकटों को दूर कर देती हैं |
पूर्व जन्म के जटिल कर्मों का शमन
यदि किसी प्राणी का जन्म संपन्न और कुलीन घराने में हुआ हो तथा उसे सुखी होने की सभी साधन मौजूद होते हुए भी , उसका जीवन पूर्वजन्म के जटिल तथा कठिन कर्मों से घिरा हुआ हो , तब भी माता उस पर अपनी कृपा दृष्टि बनाकर उसके पूर्व जन्म के दोषों का निवारण कर देती हैं | परंतु उस व्यक्ति को अपने पूर्व जन्मों का पश्चाताप तो करना ही पड़ता है | माता की कृपा दृष्टि प्राप्त होते ही उसका जीवन सुखी हो जाता है | तथा उसे अपने पूर्व जन्मों का शमन करने हेतु ज्योतिषियों , तांत्रिकों , अथवा चमत्कार करने वालों के पास नहीं जाना पड़ता है | इसका प्रमुख कारण यही है की मां ममतामयी हैं | वह अपने भक्तों और साधकों के लिए स्वयं ही चिन्तित रहती हैं |
कृपा दृष्टि कारक है मां
मां अपने भक्तों साधकगणों का कष्ट दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं | यदि उसके जीवन में कुछ भी भटकन बची है या जीवन में अंधियारा हो चुका है | या उसे अपने जीवन में कर्मों की जटिलता , भाग्य विषमता , परिस्थितियों की विपरीत दशा की स्थितियों से जूझना पड़ रहा तो भी उस भक्त को मां की कृपा से इन कष्टों से मुक्ति मिल जाती है | माँ तो अपने भक्तों के यदाकदा स्मरण से ही प्रसन्न हो जाती हैं | यदि संपूर्ण नवरात्रि के सभी 9 दिनों मां की आराधना की जाए और इसके बाद कभी कभी समय पाकर यदि मां का स्मरण कर लिया जाए तो उस प्रानी की विपरीत परिस्थितियां भी अनुकूल हो जाती हैं | नवरात्र में मां के नौ रूपों द्वारा समस्त धरती के प्राणियों पर उनकी कृपा दृष्टि के दिन आ आते हैं |
मां को विस्मृत न करें
प्रत्येक जनसामान्य , भक्त और साधक को आदिशक्ति माता को कभी भुलाना नहीं चाहिए | मां को भूलने वाले का कल्याण स्वयं शंकर भगवान भी नहीं कर सकते हैं | मां का कभी-कभी स्मरण भी उसे कष्टों से मुक्ति दिला सकता है | क्योंकि मां तो मां होती है और ममतामयी होती हैं इसलिए वह अपने पुत्र को कभी रुलाती नहीं है | पुत्र को भी चाहिए की वह भी कभी कभी माँ का भी स्मरण कर लिया करे | माता अपने भक्तों शिष्य या साधक की इस भावना को , कर्म विधान के विपरीत जानकर , उसे माफ कर पुनः अपने आंचल में जगह दे देती हैं |
ज्योति स्वरूप है मां
जो भी भक्तगण जा साधकगण अपनी मां का विस्मरण नहीं करते हैं | तब यही जगतमाता ज्योतिस्वरूप होकर उसके चित्त के गहन अंधेरों में उतर कर उसकी कष्टकारक कठिन कालिमा के अंधेरों को प्रकाशित कर देती है | इस तरह से वह प्राणी कुसंस्कारों और कठिन राशियों के चक्र से स्वतः ही मुक्त हो जाता है | इसप्रकार से वहां परम दुर्लभ मुक्ति का अधिकारी भी बन जाता है | उस समय उसकी जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो जाती है | कहते हैं कि एक बार श्री शंकर भगवान ने भी इस संबंध में माता जी को कहा था कि आपके वात्सल्य की कोई सीमा नहीं है | इस असीमित वात्शलय को कोई रोक भी नहीं सकता है | देवी आप जिसे चाहे उसे अपनी मर्जी से वरदान प्रदान कर सकती हैं | क्योंकि माता तो हर प्राणी के जीवन की अनिवार्य आवश्यकतााओं की जानकार हैं | इसलिए वह उसकी पूर्ति करती रहती हैं माताजी के गायत्री महामंत्र के साथ यदि दुर्गासप्तशती के मंत्र को भी शामिल कर लिया जाए तो उसका प्रभाव व्यापक , तीव्र और त्वरित होता है | कोई इस माँ की साधना निरंतर करें तो फिर सांसारिक कष्टों से छुट्टी पाकर उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है | सचमुच ही यह साधना सभी तरह से कल्याणकारी है | यदि इसमें निरंतरता बनी रहे तो साधक को चकित कर देने वाले चमत्कारिक परिणाम भी मिलते हैं |
इति श्री
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