सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

धर्म ; मंत्रों में है अद्भुत शक्तियां

धर्म ; मंत्रों में है अद्भुत शक्तियां
----------------------------------------------
web - gsirg.com
helpsir.bligspot.in
10 - 04 - 2018
------------------------------------------------------------------------
हमारे प्राचीन ऋषि मुनि अनेक मंत्रों की जानकार थे , वह मंत्रों की सहायता से आश्चर्यजनक परोपकारी और जनहित के कार्य किया करते थे | आज इसी संबंध में हम कुछ जानकारी प्राप्त करेंगे | मंत्रों की शक्ति भौतिक शक्तियों से बढ़कर सूक्ष्म और सामर्थ्यवान होती है | यही कारण रहा है कि प्राचीन काल के ऋषियों मनीषियों और योगियों आदि ने मंत्रों की शक्तियों से पृथ्वी लोक , देवलोक और ब्रह्मांड की अनंत शक्तियों पर विजय पाई थी |

मंत्रों का व्यापक प्रभाव और सामर्थ्य

मंत्रों में अनेकों प्रभावी तथा सामर्थ्यवान शक्तियां निहित है | यही कारण है कि , प्राचीन काल के ऋषि मुनि मंत्रों के उपयोग से ही अपनी इच्छा के अनुसार किसी पदार्थ का स्थानांतरण कर सकते थे | मंत्रों की शक्ति आज भी विद्यमान है | अगर आज भी कोई व्यक्ति मंत्रों की स्थिति को अपने अंदर समाहित कर लेता है , तब उसको अनेक सामर्थ्यवान शक्तियां मिल जाती हैं , जिससे वह अपनी इच्छा अनुसार जनहित के अनेकों कार्य कर सकता है | उसके अंदर पदार्थों को ऊर्जा में और ऊर्जा को पदार्थों में बदलने की अदभुत शक्ति प्राप्त हो जाती है | हम प्राचीन काल से ही श्राप और वरदान 2 शब्द सुनते आए हैं | यह दोनों ही शब्द मंत्र के ही अनुदान हैं | आज भी लोग मंत्र की शक्ति से बिच्छू ,सांप आदि आज के काटने और अनेको बीमारियों का इलाज मंत्रों से करके पीड़ित रोगी का इलाज किया कर उसे ठीक किया करते हैं | इसके अलावा भी कई अन्य रोगों के इलाज मंत्र शक्ति के द्वारा आज भी किए जा रहे हैं |

मंत्रों के आश्चर्यजनक प्रभाव

मंत्रशक्ति का ज्ञाता कोई भी व्यक्ति रोगियों को ठीक तो कर ही देता है , इसके अलावा वह दूर , बहुत दूर हो रहे क्रियाकलापों को भी मंत्र शक्ति से जान लेता है | अंतरिक्ष में स्थित समस्त ग्रह नक्षत्रों की जानकारी मंत्रों के द्वारा प्राप्त की जा सकती है | इसके अलावा मानवीय काया में समाहित शक्तियों का ज्ञान व नियमन मंत्र शास्त्र से ही संभव है | इसी का परिणाम है कि भारतीय तत्व दर्शन में मंत्र शक्ति पर जितने प्रयोग किए गए हैं या आज भी अल्प रूप में किए जा रहे हैं , उतने शोध किसी अन्य विषय पर नहीं हुए है |

किस प्रकार कार्य करती हैं मंत्र शक्तियां

हमारे देश तथा अन्य देशों में भी मंत्रों के विषय में अनुसंधान हो रहे हैं | अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार मंत्र शक्तियों से भारी पत्थरों पर ध्वनि तरंगों को केंद्रीभूत करके उनके आसपास कम दबाव वाला क्षेत्र [ लो प्रेशर जोन ] का निर्माण किया जाता है | इस '' लो प्रेशर जोन '' के कारण पत्थर के नीचे का वायुमंडलीय दबाव उसे ऊपर उठा देता है , इसके उदाहरण तिब्बत के अनेकों मठों के निर्माण में वह किया गया है , ऐसा माना जाता है | ऐसा माना जाता है कि '' पेरू '' नामक देश में स्थित '' माचू पिचू '' जो एक प्राचीन शहर है , इसका निर्माण भी इसी प्रक्रिया के अनुसार किया गया है | इससे इस धारणा को बल मिलता है कि मंत्रों की शक्ति के प्रभाव से न केवल सूक्ष्म बल्कि अनेकों बड़े-बड़े परिवर्तन आसानी से किए जा सकते हैं |

मंत्र ज्ञानियों का विचार

मंत्र मंत्र ज्ञानियों का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति एक ही मंत्र की बार-बार पुनरावृति करता रहे , ऐसा करते रहने पर , उच्चारण करने वाले व्यक्ति के बाहरी और भीतरी वातावरण में एक प्रकार का शून्य गुरुत्वाकर्षण पैदा हो जाता है | जिसके कारण मन में स्थित बाहरी और भीतरी कलुषित कलिमाओं का एक प्रकार का जो दबाव , समूची काया को दबाए हुए था , उससे उसे मुक्ति मिल जाती है | इन त्रुटिपूर्ण कलिमाओं का अवांछित दबाव जब मन से हट जाता है , तब उस व्यक्ति के शरीर में स्थित सूक्ष्म चेतन शक्तियां ऊर्ध्वमुखी हो जाती हैं | यह शक्तियां धीरे-धीरे विकसित होकर परम उच्चता तक पहुंच जाती हैं | जिसके कारण सामान्य दिखने वाला व्यक्ति भी महामानव या सिद्धपुरुष प्रकार प्राणी बन जाता है |
इंफ्रासोनिक स्तर की सूक्ष्म ध्वनियों से सम्भव है

शोधकर्ताओं ने तिब्बत के मठ वासियों का उदाहरण देते हुए बताया कि ध्वनियों के माध्यम से वह लोग किस तरह से जमीन पर स्थित बड़ी-बड़ी पत्थर की शिलाओं को हवा में ऊपर उठा कर मठों का निर्माण किया करते थे | ऐसा करते समय वे मठ से काफी दूर , डेढ़ मीटर आयत के भारी पत्थरों को वहां के भारवाहक पशु '' याक '' द्वारा ढ़ोकर पठारी क्षेत्र में इकट्ठा कर लिया करते थे | बाद में उन पत्थरों को एक कटोरे के आकार में बना लेते थे | यह पूरा आकार भवन से दूर बनाया जाता था , तथा इसके कुछ पीछे इसी आकार में बहुत से मठवासी विभिन्न वाद्य यंत्रों को लेकर पुरोहितों और संगीतज्ञों के साथ इन पत्थरों को घेर लेते थे | इसके बाद प्रधान पुरोहित का आदेश मिलते ही संगीत प्रारंभ किया जाता था , तदुपरांत काफी वजनी ध्वनिविस्तारक ड्रमों को पीटा जाता था | इससे कुछ ऐसी ध्वनियाँ निकलती थी कि , पर्वत शिलाओं का गुरुत्वाकर्षण बल और वायुमंडलीय दबाव कम होने लगता था | जिसके प्रभाव से पत्थर हवा में उठने लगते थे , बाद में इन शिलाओं को उठाकर दूरी पर स्थित भवन के ऊपर स्थापित कर दिया जाता था | प्राचीन काल में लोगों को मंत्रों का ज्ञान बहुत अधिक था , लेकिन धीरे-धीरे लोगों की रुचि इस ऒर कम होती गई , या जो भी कारण बने हों मंत्र शक्तियों को कुछ ही लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता रहा | आज स्थिति यह है कि कुछ ही मंत्र शेष बचे हैं फिर भी इन मंत्रों में आश्चर्यजनक शक्तियां अभी भी विद्यमान हैं जिनसे असम्भव लगने वाले कार्यों को आज भी आसानी से किया जा सकता है | उपरोक्त जानकारी के उपरान्त मंत्रों मे अनेकों छिपी आश्चर्यजनक शक्तियां निहित हैं , इसको मानना ही पड़ता है |

इति श्री

web - gsirg.com
helpsir.bligspot.in

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में