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इलाज ; कुष्ठ रोग जानकारी और बचाव
यह एक घृणित रोग है | इस रोग में आदमी के शरीर के अंगों का गलना शुरू हो जाता है | इस रोग से प्रभावित अंगों से दुर्गंधयुक्त मवाद निकलने लगती है , धीरे-धीरे रोगी के यह अंग गल गल कर बहने लगते हैं | रोग की चरमावस्था पर धीरे-धीरे के अंग शरीर से गायब या समाप्त हो जाते हैं | जिसके कारण कोई अन्य व्यक्ति उसके पास उठता बैठता या खाता पीता नहीं है | इसके अलावा वह रोगी से किसी प्रकार का संबंध भी नहीं रखना चाहता है | दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो लोग ऐसे रोगी को घृणा की दृष्टि से देखते हैं | इस रोग का रोगी स्वयं भी अपने आप से घृणा करने लगता है , कभी-कभी तो रोगी रोग से परेशान होकर आत्महत्या करने का विचार भी करने लगता है |
कुष्ठ हर चूर्ण बनाना
कुष्ट के रोगी को चाहिए कि वह अपने रोग से निजात पाने के लिए यह चूर्ण बना ले | इसके लिए रोगी को बकायन नामक वृक्ष के बीज इकट्ठा करना होता है | इन बीजों की मात्रा जब 2 किलो ग्राम के लगभग हो जाए , तब इनकी साफ-सफाई कर ले , ताकि उन पर लगी धूल मिट्टी आदि निकल जाए | अब इन बीजों की आधी मात्रा यानी 1 किलो बीज , लगभग 12 से 13 किलोग्राम पानी में भिगो दे | इन बीजों को 7 दिन तक लगातार पानी मे भिगोने के बाद उस पानी मे ही खूब मल छान कर बीजों को फेंक दे , और पानी को सुरक्षित कर ले | शेष बचे 1 किलोग्राम बीजों को कूट-पीसकर कपड़छन चूर्ण बना ले |
सेवन विधि
इस चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा प्रातः काल नित्य क्रियाओं से निबटने के बाद बिना कुछ खाये पिए , अपने मुँह मे भर ले | इसके बाद ऊपर से बीजों का बनाया हुआ पानी 50 ग्राम की मात्रा में भी पीते हुए चूर्ण को उदरस्थ कर ले | इस चूर्ण का 20 से 22 दिन लगातार प्रयोग करने के बाद रोगी के अंगो का गलना बंद हो जाएगा , तथा रोग भी समूल नष्ट होता जायेगा | देखने में तो यह एक सरल उपाय दिखाई पड़ता है , परंतु अपने प्रभाव से यह रोग को समूल नष्ट करने की ताकत रखता है |
रोगी का भोजन
औषधि के सेवनकाल में रोगी को चाहिए कि बहुत ही सादा भोजन ही करे | भोजन में चने के बेसन से बनी रोटियां , तथा देसी गाय का घी ही प्रयोग करे | बाजारों में बिकने वाले वेजिटेबल घी का प्रयोग सर्वथा वर्जित है | रोगी को नमक का सेवन बिल्कुल ही बंद कर देना चाहिए | उसे लगभग 25 दिनों तक केवल बेसन की रोटी और घी ही खाना चाहिए |
पूरक इलाज
इस रोग का मुख्य इलाज ही रोग को समाप्त करने के लिए काफी है , पन्तु यदि साथ में यह पूरक इलाज भी कर लिया जाए तो रोग को निर्मूल करने मे औषधि आसानी से आसानी से अपना काम कर पाती है |
रोगी को चाहिए कि बाजार से लगभग 50 ग्राम मूली के बीज ले आए , और उन्हें गन्ना के शुद्ध सिरका में पीसकर उसमें थोड़ा सा संख्या मिलकर लेप तैयार कर ले | लेप बनाने का यह काम शाम को करना चाहिए | लेप बनने के 2 घंटे बाद इसमें खमीर उठ जाएगा | अब दागों को किसी कपड़े से मल कर खमीर को दागों पर लगा लिया करें | इसके तुरंत बाद ही सोने का उपक्रम करते हुए सो जाए | इसके निरंतर प्रयोग से रोगी का रोग आराम से समाप्त हो जाता है |
कुष्ठ एक प्रकार का घृणित रोग तो है ही , तथा बुरा रोग भी है , जिससे रोगी का सौंदर्य नष्ट हो जाता है | इसके दाग दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जाते हैं | इसलिए इस रोग का इलाज अगर प्रारंभिक अवस्था मे ही उपचार कर लिया जाए तो रोग को आसानी से ठीक किया जा सकता है | अपनी चरमावस्था को पहुंचा हुआ रोग बड़ी ही मुश्किल से ठीक हो पाता है , अर्थात भयंकरता की स्थिति मे औषधियों का असर नहीं हो पाता है , या फिर बड़ी देर से होता है | इसलिए रोगी तथा उसके हितैषियों को चाहिए कि वह इस रोग की चिकित्सा , रोग का पता लगते ही तुरंत शुरू कर दे |
जय आयुर्वेद
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