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हमारे देश में अनेको महापुरुष , महर्षि और विद्वान और ऋषि आदि हुऐ है , जिन्होंने अपने ज्ञान द्वारा जनसाधारण को धर्म और अध्यात्म के विषय में बहुत कुछ बताया है। ऐसे ही महान योगऋषियों में पतंजलि का नाम भी आता है। योग ऋषि पतंजलि ने हमें सिद्धियों के बारे में जिन महत्वपूर्ण तथ्यों को लोगों को बताया था ,उन्होंने उसका वर्णन अपनी पुस्तक में भी किया है | उनकी पुस्तक के विभूतिपाद में विभूतियों की विलक्षण शक्तियों का भी वर्णन किया गया है | महर्षि कैवल्यपाद ने पतंजलि के सूत्रों में वर्णित सिद्धियों को स्पष्ट कर उसका सरल भाषा में वर्णन किया है | उन्होंने बताया है कि सिधियां पांच प्रकार की होती हैं। सिद्धियों के सभी प्रकारों को वर्णित करते हुए बताया है की किन किन कारणों से शरीर में , इंद्रियों में और चित्त में जो परिवर्तन होते हैं , उनमें इन शक्तियों का प्रकटीकरण होता है | इसका कारण होता है मानव के जन्म जन्मांतर मैं की गई साधना , और उसके द्वारा किए गए शुभ कर्म | प्रस्तुत लेख में हमारा उद्देश्य सिद्धियों के प्रकारों की जानकारी करना है , इसलिए उन्हें से परिचित कराया जा रहा है |
साधक के जीवन में इन सिद्धियों का महत्वपूर्ण स्थान है | इन्हें प्राप्त करने के लिए उसमें धैर्यता , पवित्रता और शुद्धता की बनाये रखने की आवश्यकता होती है | सिद्धि प्राप्त करना कठिन कार्य है , परंतु असंभव नहीं | इसे प्राप्त करके साधक अपने पूर्व जन्म और वर्तमान जन्म को सफल बना लेता है | इसके साथ ही वह जनकल्याण के अलौकिक कार्य भी करता रहता है |
सिद्धियां तथा उनके प्रकार
हमारे देश में अनेको महापुरुष , महर्षि और विद्वान और ऋषि आदि हुऐ है , जिन्होंने अपने ज्ञान द्वारा जनसाधारण को धर्म और अध्यात्म के विषय में बहुत कुछ बताया है। ऐसे ही महान योगऋषियों में पतंजलि का नाम भी आता है। योग ऋषि पतंजलि ने हमें सिद्धियों के बारे में जिन महत्वपूर्ण तथ्यों को लोगों को बताया था ,उन्होंने उसका वर्णन अपनी पुस्तक में भी किया है | उनकी पुस्तक के विभूतिपाद में विभूतियों की विलक्षण शक्तियों का भी वर्णन किया गया है | महर्षि कैवल्यपाद ने पतंजलि के सूत्रों में वर्णित सिद्धियों को स्पष्ट कर उसका सरल भाषा में वर्णन किया है | उन्होंने बताया है कि सिधियां पांच प्रकार की होती हैं। सिद्धियों के सभी प्रकारों को वर्णित करते हुए बताया है की किन किन कारणों से शरीर में , इंद्रियों में और चित्त में जो परिवर्तन होते हैं , उनमें इन शक्तियों का प्रकटीकरण होता है | इसका कारण होता है मानव के जन्म जन्मांतर मैं की गई साधना , और उसके द्वारा किए गए शुभ कर्म | प्रस्तुत लेख में हमारा उद्देश्य सिद्धियों के प्रकारों की जानकारी करना है , इसलिए उन्हें से परिचित कराया जा रहा है |
जन्म से प्राप्त होने वाली सिद्धि
यदि साधक निरंतर साधना करता रहे तो , उसका शरीर सिद्धि में बाधा नहीं बनता है | अर्थात एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रविष्ट होकर दूसरा जन्म पाने के बाद भी उसके पूर्व जन्म में की गई सिद्धियां , उसे इस जन्म में पुनः प्राप्त हो जाती हैं | अगर साधक ने पूर्व जन्म में अधूरे रूप में भी कोई अद्भुत साधना की है , तो भी इसतरह की अपूर्ण साधना वसाधक की चर्चा , योगभ्रष्ट के रूप में की है | | उसमें अधूरापन होने के बाद भी शुभ संयोगो और अलौकिक शक्तियों का प्रादुर्भाव हो जाता है। विदेह और प्रकृतिलय योगियों का ऐसा योग भवप्रत्यय कहलाता है। उनमें भी जन्म से ही अनेकों अलौकिक शक्तियां देखी जा सकती हैं
औषधि से प्राप्त होने वाली सिद्धि
इन सिद्धियों का उद्घटन साधक के पूर्वकृत शुभकर्मों के संयोग से होता है | विभिन्न प्रकार के तंत्रग्रंथों में अनेकों वनस्पतियों और उनके रसो का उल्लेख किया गया है। इन्हीं के द्वारा इंद्रियों में अनेकों अलौकिक शक्तियां प्रकट होती रहती हैं। ऐसा कहा गया है कि परम अवधूत भगवान दत्तात्रेय ने इसकी संपूर्ण प्रक्रिया और विधि विधान का वर्णन किया है। जिसका प्रयोग करके शरीर को वज्र के समान मजबूत तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है | हमारे पुराणों में भी ऐसी कथाएं मिलती है जिनमें इनके प्रयोग करने के तथा लेपन के विधि विधान से प्राप्त होने वाली विभिन्न प्रकार की शक्तियों का प्राप्त होना बताया गया है |
मंत्र से प्राप्त होने वाली सिद्धि
हमारे देश की साधना विधान में मंत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है | जिनमें मंत्रों से प्रयोग का वर्णन किया गया है | इसके साथ इनसे जुड़ी हुई विभिन्न प्रकार की तांत्रिक विधियों और प्रक्रियाओं का भी वर्णन किया गया है | मंत्रविज्ञान का प्रयोग स्वतंत्र रूप से भी किया जा सकता है , इसे योगविधि और तांत्रिकविधि से भी जोड़ा गया है | इसका वर्णन करते हुए पतंजलि ने अपनी पुस्तक के दूसरे अध्याय इसकी ओर संकेत किया है | और बताया है कि स्वाध्याय , जिसमें मंत्र साधना भी सम्मिलित है , से अभीष्ट ईष्ट देवता की अनुभूति होने लगती है | इसके आगे वर्णन करते हुए इसमें आगे बताया गया है , कि तंत्रशास्त्रों में मंत्रों का प्रयोग - यंत्रों वनस्पतियों तथा कर्मकांड के अनेक विधानों के साथ करके कोई भी साधक चमत्कारी शक्तियां प्राप्त कर सकता है |
तप से होने वाली सिद्धि
साधक की साधना में तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान है , क्योंकि तप अपने आप में स्वयं ही का संपूर्ण विधान एवं विज्ञान है | इसका बखान धर्म शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में किया गया है | अनेक ऋषियों और मुनियों ने तप के प्रसंगों का उल्लेख अपने ढंग से कहा , और किया है | जिसमे उन्होंने बताया है कि तप के प्रभाव से अंतरात्मा की अशुद्धियों का नाश हो जाता है। अशुद्धियों के बाद उसी समय ही शरीर और इंद्रियों की भी शुद्धि भी हो जाती है | अशुद्धियों के नाश तथा इन्द्रियों की शुद्धि के ही साधक को इन्द्रियों की भी सिद्धि भी प्राप्त हो जाती है |
समाधि से होने वाली सिद्धि
इस सिद्धि को सभी प्रकार की सिद्धियों का स्रोत कहा जाता है |धर्म के जानकारों के अनुसार धारणा , ध्यान और समाधि के अभ्यास से साधक के शरीर में इंद्रियों में तथा चित्त में अभूतपूर्व शक्तियों का संचार हो जाता है | इन शक्तियों को ही साधक की सिद्धियां कहा जाता है , जो उसे व्यक्ति को समस्त और समाज से जोड़ती है | इस शक्ति के माध्यम से साधक के शरीर में व्याप्त अंतरिक्ष के प्रवाह, प्रवाहित होने लगते हैं | समस्त ब्रह्मांड की अनेक शक्तियां और शक्तिप्रवाह साधक में आकर घनीभूत हो जाते हैं | यही कारण है कि समाधि के माध्यम से उसके असंभव कार्य भी संभव होने लगते हैं इसके अलावा इन शक्तियों से उस साधक द्वारा व्यष्टि और समष्टि शक्ति से जनजीवन में भी आश्चर्यजनक परिवर्तन करना संभव हो जाता है | इसीलिए धर्म के मर्मज्ञ सिद्धि की शक्ति को ही अपरिमित मानते हैं | यही कारण है कि महान ऋषि और मुनियों ने अपने जीवन में अनेकों अलौकिक कार्य संपन्न किए हैं | साधक के जीवन में इन सिद्धियों का महत्वपूर्ण स्थान है | इन्हें प्राप्त करने के लिए उसमें धैर्यता , पवित्रता और शुद्धता की बनाये रखने की आवश्यकता होती है | सिद्धि प्राप्त करना कठिन कार्य है , परंतु असंभव नहीं | इसे प्राप्त करके साधक अपने पूर्व जन्म और वर्तमान जन्म को सफल बना लेता है | इसके साथ ही वह जनकल्याण के अलौकिक कार्य भी करता रहता है |
इति श्री
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