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\\ प्रमेह की चिकित्सा \\
यह एक भयानक गुप्त रोग है जो किसी भी मनुष्य को 14 से 15 वर्ष की उम्र से लेकर वृद्धावस्था के पुरुषों को भी हो जाया करता है। खानपान की अनियमितता , आहार विहार में व्यतिक्रम तथा वातावरणीय प्रदूषण के कारण लोगों के मनोमस्तिष्क प्रदूषित हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरुप यह गुप्त रोग किसी को भी अपनी गिरफ्त में ले लेता है। इससे ग्रसित पुरुष का शरीर कमजोर , निस्तेज और निष्क्रिय बना रहता है , जिसका असर उसकी संतान पर भी पड़ता है। पिता के अनुरूप ही पुत्र भी इस रोग से ग्रसित हो सकता है। यही कारण है कि आज के राष्ट्रीय जीवन मे भी सामूहिक रुप से अधिकांश व्यक्ति अशक्त , निरुत्साहित , शिथिल और रोगग्रस्त दिखाई देते हैं।
\\ प्रमेह रोग के कारण \\
यह तो सभी जानते हैं कि शरीर से किसी भी पदार्थ का निश्चित राशि से अधिक मात्रा में मूत्र मार्ग से निकल जाना ही प्रमेह कहलाता है। इसके प्रमुख कारणों में व्यक्ति का सदा आराम से बैठे रहना , सोए रहना या किसी भी प्रकार का परिश्रम न करना शामिल है। जिन जिन लोगों को यह रोग हो जाता है , उनके खानपान में भी निम्नलिखित अनियमितता पाई जाती है। ऐसे लोग दही जैसे खट्टे पदार्थों को खाते हैं या फिर पालतू जानवरों जैसे भेड़ ,बकरी सुवर आदि का मांस खाना , नया अन्न खाना और बरसात का पानी पीना आदि शामिल है। ऐसे लोगों को मिठाई बहुत पसंद होती है , जिसे ऐसे लोग बड़े चाव से खाते हैं। इसी प्रकार खट्टे अचार , भारी भोजन तथा गर्म और मीठे पदार्थों का सेवन भी प्रमेह रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है।
\\ प्रमेह का पूर्वरूप \\
जिन किशोरों या वृद्ध पुरुषों को यह रोग हो जाता है , उनके हाथों और पैरों के तलवों में जलन बनी रहती है। शरीर के अंगों में चिकनापन होना , चिपचिपाहट बने रहना और भारीपन महसूस होना भी इस रोग के होने के पूर्व होता रहता है। इस रोग में अंगों का टूटना एक आम बात है। इसके अलावा रोगी के तालू , गला और दांत हमेशा मलावृत से रहते हैं। बालों का जकड़ना तथा नाखूनों में बहुत ज्यादा वृद्धि होना भी इसके पूर्व रूपों में शुमार है। इन सब कारणों से ही उसका शरीर कमजोर और निस्तेज तथा निष्क्रिय बना रहता है।
\\ रोग के लक्षण \\
यह एक भयानक गुप्त रोग है , जिससे प्रभावित व्यक्ति के शरीर मे मांस , मांस , मज्जा और शुक्र आदि धातुओं का क्षरण शुरू हो जाता है। इसके कारण शारीरिक ओज मे भी कमी होने लगती है। फलतः शरीर क्षीण तथा कमजोर होने लगता है। इस रोग से प्रभावित व्यक्ति की पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेंद्रियां अपने कर्म करने मैं निष्क्रिय हो जाती हैं। इन कारणों से उस व्यक्ति की काम इच्छा शक्ति कमजोर हो जाती है। शरीर में गर्मी बने रहने से कभी-कभी पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है , जिसके कारण उसे बार बार दस्त भी जाना पड़ता है। पीड़ित व्यक्ति को कभी कभी चक्कर आते हैं , मन दुखी रहता है और हृदय में पीड़ा होने लगती है। यदि उपरोक्त सभी लक्षण शरीर में दृष्टिगोचर होने लगते हैं , तो उस समय शरीर का मांस भी सूखने लगता है।
\\ रोगी के मूत्र का रंग \\
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के मूत्र का रंग गन्ने के रस के समान , शराब के रंग का , चावल की धोवन के समान या बासी पानी के समान होता है। रोगी के पेशाब के साथ वीर्य भी निकलता है , जो साफ और सफेद रंग का होता है। लाल रंग का पेशाब का होना , दुर्गन्ध युक्त मूत्र का आना भी इसके लक्षण हैं। कभी-कभी लाल रंग या हल्दी के रंग जैसा दुर्गंधयुक्त गाढ़ा या कृष्ण वर्ण का मूत्र होता है। कभी कभी पेशाब में चर्बी और मज्जा आना भी प्रारंभ हो जाता है। अगर मूत्र का परीक्षण किया जाए तो उसमें खारापन दिखाई पड़ता है।
\\ चिकित्सा \\
इस रोग के रोगी को ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है। उसे अपने कुटेवों को छोड़कर अपना मनोमस्तिष्क गंदे यौनिक विचारों के विकार से मुक्त करना आवश्यक हो जाता है। ऐसे रोगी की चिकित्सा के लिए शीशम का बुरादा इकट्ठा करना पड़ता है , जिसकी 6 ग्राम मात्रा को 125 ग्राम पानी में खूब गर्म करें। जब पानी की मात्रा 30 ग्राम शेष रहे , तब उसे चूल्हे से उतार कर छान लें और गुनगुना ही रोगी को पिला दे। इस आयुर्वेदिक चिकित्सा से 20 प्रकार के प्रमेह दूर हो जाते हैं। इसके के साथ ही रोगी के हाथों की हथेलियों और पैरों की जलन शांत करने के लिए निम्न उपाय भी करते रहें। रोगी को प्रतिदिन शीशम के वृक्ष के पत्ते लेकर 400 ग्राम पानी में शाम को भिगो दें , और सुबह बिना कुछ खाए पिए इन पत्तों को मल छानकर 30 ग्राम मिश्री मिलाकर पिला दिया करें। इससे 10 -12 दिन मे ही प्रमेह रोग दूर हो जाएगा। इस चिकित्सा से रोगी के हाथों और पैरों से आग से निकलती प्रतीत होगी , परंतु इससे घबराएं नहीं। जितना ही ज्यादा गर्मी निकलेगी रोग को ठीक होने में उतना ही मदद मिलेगी आशा भी बनती जाती है। इस प्रकार से अगर रोगी का इलाज किया जाए तो रोगी एक से डेढ़ महीने के अंदर इस रोग से सफलतापूर्वक रोग से निजात पा लेगा।
\\ जय आयुर्वेद \\
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\\ प्रमेह की चिकित्सा \\
यह एक भयानक गुप्त रोग है जो किसी भी मनुष्य को 14 से 15 वर्ष की उम्र से लेकर वृद्धावस्था के पुरुषों को भी हो जाया करता है। खानपान की अनियमितता , आहार विहार में व्यतिक्रम तथा वातावरणीय प्रदूषण के कारण लोगों के मनोमस्तिष्क प्रदूषित हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरुप यह गुप्त रोग किसी को भी अपनी गिरफ्त में ले लेता है। इससे ग्रसित पुरुष का शरीर कमजोर , निस्तेज और निष्क्रिय बना रहता है , जिसका असर उसकी संतान पर भी पड़ता है। पिता के अनुरूप ही पुत्र भी इस रोग से ग्रसित हो सकता है। यही कारण है कि आज के राष्ट्रीय जीवन मे भी सामूहिक रुप से अधिकांश व्यक्ति अशक्त , निरुत्साहित , शिथिल और रोगग्रस्त दिखाई देते हैं।
\\ प्रमेह रोग के कारण \\
यह तो सभी जानते हैं कि शरीर से किसी भी पदार्थ का निश्चित राशि से अधिक मात्रा में मूत्र मार्ग से निकल जाना ही प्रमेह कहलाता है। इसके प्रमुख कारणों में व्यक्ति का सदा आराम से बैठे रहना , सोए रहना या किसी भी प्रकार का परिश्रम न करना शामिल है। जिन जिन लोगों को यह रोग हो जाता है , उनके खानपान में भी निम्नलिखित अनियमितता पाई जाती है। ऐसे लोग दही जैसे खट्टे पदार्थों को खाते हैं या फिर पालतू जानवरों जैसे भेड़ ,बकरी सुवर आदि का मांस खाना , नया अन्न खाना और बरसात का पानी पीना आदि शामिल है। ऐसे लोगों को मिठाई बहुत पसंद होती है , जिसे ऐसे लोग बड़े चाव से खाते हैं। इसी प्रकार खट्टे अचार , भारी भोजन तथा गर्म और मीठे पदार्थों का सेवन भी प्रमेह रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है।
\\ प्रमेह का पूर्वरूप \\
जिन किशोरों या वृद्ध पुरुषों को यह रोग हो जाता है , उनके हाथों और पैरों के तलवों में जलन बनी रहती है। शरीर के अंगों में चिकनापन होना , चिपचिपाहट बने रहना और भारीपन महसूस होना भी इस रोग के होने के पूर्व होता रहता है। इस रोग में अंगों का टूटना एक आम बात है। इसके अलावा रोगी के तालू , गला और दांत हमेशा मलावृत से रहते हैं। बालों का जकड़ना तथा नाखूनों में बहुत ज्यादा वृद्धि होना भी इसके पूर्व रूपों में शुमार है। इन सब कारणों से ही उसका शरीर कमजोर और निस्तेज तथा निष्क्रिय बना रहता है।
\\ रोग के लक्षण \\
यह एक भयानक गुप्त रोग है , जिससे प्रभावित व्यक्ति के शरीर मे मांस , मांस , मज्जा और शुक्र आदि धातुओं का क्षरण शुरू हो जाता है। इसके कारण शारीरिक ओज मे भी कमी होने लगती है। फलतः शरीर क्षीण तथा कमजोर होने लगता है। इस रोग से प्रभावित व्यक्ति की पांचों ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेंद्रियां अपने कर्म करने मैं निष्क्रिय हो जाती हैं। इन कारणों से उस व्यक्ति की काम इच्छा शक्ति कमजोर हो जाती है। शरीर में गर्मी बने रहने से कभी-कभी पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है , जिसके कारण उसे बार बार दस्त भी जाना पड़ता है। पीड़ित व्यक्ति को कभी कभी चक्कर आते हैं , मन दुखी रहता है और हृदय में पीड़ा होने लगती है। यदि उपरोक्त सभी लक्षण शरीर में दृष्टिगोचर होने लगते हैं , तो उस समय शरीर का मांस भी सूखने लगता है।
\\ रोगी के मूत्र का रंग \\
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति के मूत्र का रंग गन्ने के रस के समान , शराब के रंग का , चावल की धोवन के समान या बासी पानी के समान होता है। रोगी के पेशाब के साथ वीर्य भी निकलता है , जो साफ और सफेद रंग का होता है। लाल रंग का पेशाब का होना , दुर्गन्ध युक्त मूत्र का आना भी इसके लक्षण हैं। कभी-कभी लाल रंग या हल्दी के रंग जैसा दुर्गंधयुक्त गाढ़ा या कृष्ण वर्ण का मूत्र होता है। कभी कभी पेशाब में चर्बी और मज्जा आना भी प्रारंभ हो जाता है। अगर मूत्र का परीक्षण किया जाए तो उसमें खारापन दिखाई पड़ता है।
\\ चिकित्सा \\
इस रोग के रोगी को ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है। उसे अपने कुटेवों को छोड़कर अपना मनोमस्तिष्क गंदे यौनिक विचारों के विकार से मुक्त करना आवश्यक हो जाता है। ऐसे रोगी की चिकित्सा के लिए शीशम का बुरादा इकट्ठा करना पड़ता है , जिसकी 6 ग्राम मात्रा को 125 ग्राम पानी में खूब गर्म करें। जब पानी की मात्रा 30 ग्राम शेष रहे , तब उसे चूल्हे से उतार कर छान लें और गुनगुना ही रोगी को पिला दे। इस आयुर्वेदिक चिकित्सा से 20 प्रकार के प्रमेह दूर हो जाते हैं। इसके के साथ ही रोगी के हाथों की हथेलियों और पैरों की जलन शांत करने के लिए निम्न उपाय भी करते रहें। रोगी को प्रतिदिन शीशम के वृक्ष के पत्ते लेकर 400 ग्राम पानी में शाम को भिगो दें , और सुबह बिना कुछ खाए पिए इन पत्तों को मल छानकर 30 ग्राम मिश्री मिलाकर पिला दिया करें। इससे 10 -12 दिन मे ही प्रमेह रोग दूर हो जाएगा। इस चिकित्सा से रोगी के हाथों और पैरों से आग से निकलती प्रतीत होगी , परंतु इससे घबराएं नहीं। जितना ही ज्यादा गर्मी निकलेगी रोग को ठीक होने में उतना ही मदद मिलेगी आशा भी बनती जाती है। इस प्रकार से अगर रोगी का इलाज किया जाए तो रोगी एक से डेढ़ महीने के अंदर इस रोग से सफलतापूर्वक रोग से निजात पा लेगा।
\\ जय आयुर्वेद \\
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