सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

धर्म ; आध्यात्मिक व्यक्तित्व [23 ]

Web - 1najar.in
आध्यात्मिक व्यक्तित्व
पिछले कई लेखोँ में हम बता चुके हैं कि , संसार में दो प्रकार के पुरुष पाए जाते हैं | इनमें से पहले को सांसारिक और दूसरे को आध्यात्मिक पुरुष कहते हैं | इनके व्यक्तित्व भी अलग-अलग तरह के होते हैं | वर्तमान लेख में हम आध्यात्मिक पुरुषों की व्यक्तित्व का ज्ञान प्राप्त करेंगे |
ट्रांसपर्सनल व्यक्तित्व
आध्यात्मिक पुरूषों का व्यक्तित्व व्यापक एवं विस्तृत होता है | ऐसे लोगों के व्यक्तित्व की सर्वोपरि विशेषता होती है , कि ऐसे पुरुषों का '' मानसिक दायरा '' सामान्य पुरुषों की तुलना में संकीर्ण संकरा या सीमित नहीं होता है | इसका कारण होता है उनका गंभीर अनुभव | उनके अनुभव की गहराई एवं व्यापकता से ही उनका व्यक्तित्व परिभाषित होता है | विकास की अनंतता छिपाए ऐसे पुरुष सामान्य सदेह में होकर भी आकाश पुरुष बन जाते हैं | एक प्रकार से ऐसे पुरुष साक्षात परमात्मा का रूप होते हैं | उनके अंदर सभी कुछ सामान्य पुरुषों से परिवर्तित रहता है |
भिन्न मानसिक सोँच
आध्यात्मिक पुरुष की मानसिक दुनिया सामान्य पुरुषों की दुनिया से भिन्न होती है | दुनिया की संकीर्ण और संकरी मानसिकता से ऊपर उठे हुए यह लोग , रिश्ते की सोच , आग्रह एवं मान्यताओं के दायरे में रहते हैं | यह लोग इसी में ही रमे रहते हैं | ऐसे लोग सांसारिक रिश्ते जैसे माता-पिता , भाई-बहन , पति-पत्नी , संतान और मित्रगणों के दायरे से बाहर निकलकर किसी अन्य रिश्ते की कल्पना ही नहीं कर पाते हैं |
देहातीत पुरुष
आध्यात्मिक पुरुष देखने में तो सामान्य पुरुषों जैसे लगते हैं , परंतु उनसे बिलकुल ही भिन्न होते हैं , क्योंकि उनका आंतरिक जीवन परिवर्तित , परिष्कृत और परिवर्धित होता है | यह पुरुष सदेह होकर भी देहातीत होते हैं | यह महापुरुष मानवदेह को धारण कर इस दुनिया में किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए आते हैं , और अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद इस सांसारिक दुनिया से , अपनी दुनिया अर्थात परमात्मा की दुनिया में चले जाते हैं | अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु तथा उद्देश्यों को मूर्तरुप देने हेतु इन्हें इस संसार में कुछ समय के लिए ही आना पड़ता है | इन महापुरुषों का अपना लोक इनके इंतजार में पलक पांवड़े बिछाए बैठा रहता है |
अहम और स्वार्थ से दूर रहने वाले पुरुष
आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले पुरुष के मन में कभी भी '' मैं ''और '' मेरा '' का विचार नहीं आता है | वह स्वार्थ और अहं से हरदम दूर रहता है | वह जानता है कि संसार के सारे दुखों की जड़ मानव के यही दुष्वृत्तियाँ हैं | सांसारिक पुरुष सदैव इसी की खोज में लगे रहते हैं | जबकि आध्यात्मिक पुरुष सदा ही इन कुवृत्तियों से दूर रहते हैं | उनके लिए संसार के सभी सुख और दुख एक ही श्रेणी के होते हैं | इनका अनुभव व्यापक और विस्तृत होता है | अध्यात्त्मिक पुरुषों को अपने अनुभव से जो उचित प्रतीत होता है , वह उसी के अनुरूप ही कार्य संचालन करते हैं | यही कारण है कि सामान्य लोग आध्यात्मिक पुरुषों की सोच के विषय में अनजान और अनभिज्ञ रहते हैं , जबकि आध्यात्मिक पुरुष न तो अनजान होते हैं और न ही अनभिज्ञ |
व्यापक मानसिक सोच
आध्यात्मिक पुरुषों की सोच व्यापक और विस्तृत होती है , क्योंकि समग्र मानव जाति ही उनके अपने रिश्तो में समाहित होती है | वह न तो किसी के प्रति आग्रह की भावना रखते हैं , और ना दुराग्रह की | आध्यात्मिक पुरुषों की सोच भी विश्वव्यापी होती है , और उनका आत्मविश्वास अधिक और अविचल होता है | वे जीवन रूपी युद्धभूमि में एक निर्भीक योद्धा की तरह अपने कदम बढ़ाए रखते हैं , और जीवन के युद्ध में विजय भी प्राप्त करते हैं |
ग्रहणशील और संवेदनशील व्यक्तित्व
आधात्मिक पुरुषों की आंतरिक दुनिया सामान्य लोगों की दुनिया से उच्च कोटि की होती है | इसीलिए उनकी सोच तथा समझ भी सामान्य मानव की तुलना मैं श्रेष्ठ होती है | ऐसे महापुरुषों का न तो अपना कोई सुख होता है , और न दुख | यह दूसरों के सुख मैं ही सुख का अनुभव और दुख में दुख का अनुभव करते हैं | इसका कारण ही यह है कि इनका जीवन मानवीयता के लिए समर्पित होता है | इनकी इस व्यापकता का आधार ही उनकी ग्रहणशीलता है | व्यापक ग्रहणशीलता के कारण ही उनका चरित्र विस्तृत , विराट और श्रेष्ठ प्रकृति का होता है | ऐसे लोग दूसरों के कष्ट और पीड़ा को अपना कष्ट और अपनी पीड़ा समझते हैं , तथा उसे दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं | क्योंकि इनकी संवेदनशीलता ही सामान्य पुरुषों की तुलना मे अधिक व्यापक होती है | सामान्य पुरुषों के कष्टों को दूर करने के लिए ऐसे महान विचारक प्रकृति के यह लोग अपने ईश्वर से उनका दुःख और पीड़ा दूर करने की प्रार्थना किया करते हैं |
जैसा कि पूर्व में हम बता चुके हैं कि इनका अनुभव बहुत गहरा होता है | अनुभव की व्यापकता के अनुरूप इनका चेतनात्मक विकास भी होता है | इसी व्यापकता के कारण ही उनके व्यक्तित्व का विकास भी होता ही रहता है | ऐसे पुरुषों का भावनात्मक संवेदन की व्यापकता , मानसिकता , रूपांतरण उच्च कोटि का होती है | इसलिए इनकी जागृत चित्तावस्था और समझ भी विराट होते हैं | किसी भी समस्या को हल करने के लिए यह लोग उसके मूल में जाकर उसका अध्ययन कर उसे निर्मूल करना , ही उनका उद्देश्य होता है | अंत में यह कहा जा सकता है कि उनका व्यक्तित्व अद्भुत और अतुलनीय होता है | इस श्रेणी के लोग व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए ही आध्यात्मिक पद का चयन और अनुसरण करते हैं |

The End
Web - 1najar.in

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में