सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

इलाज ; चेचक [ 22 ]

Web - 1najar.in
चेचक
एक संक्रामक बीमारी है , जो छोटे और बड़े सभी उम्र के लोगों को हो जाया करती है | लोगों की धारणा है कि यह दशा माता जी की कृपा से होता है | हमारे देश में इसके फैलने को धार्मिक दृष्टिकोण से भी बड़ा महत्व दिया जाता है | जबकि ऐसा है नहीं , इस परेशानी को धार्मिक दृषिकोण सके नजरिये से देखना पूरी तौर से एकदम सही नहीं कहा जा सकता है | बहुत से लोगों में यह भ्रांति है कि पीड़ित को यह परेशानी उसके दुष्कर्मों का फल है | मनुष्य के दुष्कर्म के परिणामस्वरुप माता का प्रकोप होता है | माता के प्रकोप के कारण ही दुष्कर्म उसके शरीर में दाने बन कर उभर रहे हैं | इस रोग को देवीमाता का प्रकोप मानकर लोग विशिष्ट प्रकार का व्यवहार भी करते हैं | यहां तक कि लोग उसकी चिकित्सा भी नहीं करते |
दुष्ट संक्रामक रोग है यह
आधुनिक समय में आयुर्वेदिक विद्वानो के अनुसार इस रोग की उत्पत्ति का कारण , वायु , जल और पृथ्वी का दूषित होना है | पाश्चात्य चिकित्सा में इसे इसे जंतुजन्य संक्रामक व्याधि कहा गया है | दोनों ही चिकित्सा पद्धतियों में इस रोग के निवारण की अपनी-अपनी विधियां हैं | जिनके अनुसरणकर रोगी की चिकित्सा की जाती है | इस रोग की पाश्चात्य चिकित्सा बहुत ही कष्टकारक है | प्रायः इसी कारण से लोग इस उपयोग कम करते है | आयुर्वेदिक चिकित्सापद्धति में सरलता से इस रोग के निवारण का विधान बताया गया है |
भयंकरतम व्याधि
इसके विषय में इतना ही लिखना पर्याप्त है यह दुनिया की भयंकर व्याधियों में से एक है | इसके एक बार के हो जाने पर रोगी के सारे शरीर में दाने निकल आते हैं | यह दाने रोग के निवारण हो जाने के उपरांत भी बने रहते हैं | इस रोग के होने के परिणामस्वरुप रोगी के स्वास्थ्य और सौंदर्य को बहुत हानि पहुंचती है | उसका चेहरा बीमारी के उपरांत कुरूप हो जाता है | इस बीमारी का शिकार बना व्यक्ति बहुत ही कठिनाई से ठीक हो पाता है | इलाज के बाद ठीक हो जाने पर भी वह अपने कुरूप चेहरे के कारण हीन भावना का शिकार हो जाता है | जिसके कारण वह समाज में बैठने से कतराता भी है | अपने बदसूरत चेहरे को लेकर बेचैन भी बना रहता है | इससे उसके मनोमष्तिष्क़ में बनी एक प्रकार की मानसिक अशांति और हीन भावना उसके शेष जीवन में बनी ही रहती है |
रोग की प्रारंभिक अवस्था
सर्वप्रथम जब चेचक की विषाक्त जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं | उस समय रोगी में कोई विशेष लक्षण नहीं दिखाई देते हैं | कुछ समय बीत जाने के बाद कभी-कभी शरीर में सुस्ती बना रहना , सिर में भारीपन , बदन मे थोड़ा थोड़ा दर्द बना रहना , बदन दर्द , बदहजमी और कभी-कभी गले में भारीपन भी महसूस होता है | इसके अलावा रोगी को अचानक छींक आना , बुखार चढ़ जाना , शरीर में खुजली होना , चक्कर आना , भोजन के प्रति अरुचि , बेचैनी , शरीर टूटना और त्वचा का रंग बदल जाना आदि लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं | धीरे धीरे रोगी की त्वचा का रंग बदल जाना और आंखों में लाली होना इस रोग का प्रारंभिक और प्राथमिक लक्षण है |
गंभीर लक्षण
प्रारंभिक लक्षणों के होने के कुछ पश्चात रोगी में धीरे-धीरे रोगी में गंभीरतम लक्षण प्रकट होने लगते हैं | गंभीर लक्षणों के प्रकट होने पर ही लोगों को इसकी जानकारी हो पाती है | ऐसी अवस्था में सारे शरीर में हल्की सी जलन होती है | इसके बाद शरीर में दाने पड़ने लगते हैं | पहले यह दाने कहीं-कहीं होते हैं , बाद में पूरे शरीर में फैल जाते हैं | ऐसी अवस्था में रोगी अपने शरीर में बहुत ज्यादा गर्मी और मन में बेचैनी महसूस करने लगता है | रोगी के शरीर के दाने कभी कम और कभी बहुत ज्यादा कष्ट देने लगते हैं | यहां यह जान लेना भी आवश्यक है कि इस रोग की विभिन्न अवस्थाओं के विभिन्न नाम दिए गए हैं , जैसे [ एक ] खसरा या मीजल्स [ दो ] छोटी माता या चिकन पॉक्स [ तीन ] गौ माता या काऊ पॉक्स और [ चार ] बड़ी माता या स्माल पॉक्स |
चिकित्सा
रोग की चिकित्सा करने के लिए चिकित्सक को सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक हो जाता है , कि रोगी को किस प्रकार की चेचक हुई है | उसी के अनुसार चिकित्सा भी की जाती है | यहां पर चेचक के प्रकार की जानकारी के अनुसार चिकित्सा से संबंधित जानकारी आप को दी जा रही है , इसे आप भी जाने और लाभ उठाएं |
खसरा
यह प्रायःछोटे बच्चों को हो जाया करता है | इसकी प्रारंभिक अवस्था में बच्चे को छींकें आना , तेज बुखार होना , आंखों में लाली होना आदि लक्षण पाए जाते हैं | जिस समय बच्चे को 104 डिग्री बुखार हो जाता है , प्रायः उसके तीसरे या चौथे दिन चेहरे पर लाल लाल निशान दिखाई पड़ने लगते हैं | यह निशान ही बाद में फुंसियों का रुप ले लेते हैं | इसके बाद में यह फुंसियां एक दूसरे से मिलकर सारे चेहरे और शरीर को लाल बना देते हैं | यह रोग होने के सातवें दिन से अपनेआप शांत भी होने लगता है | बुखार उतर जाता है | कभी-कभी गले की खराबी की शिकायत कुछ और दिनों तक हो सकती है | धीरे-धीरे चेचक के धब्बे अपने आप ही विलुप्त होते जाते हैं | और रोली स्वयं भी ठीक हो जाता है | इसलिए इसके इलाज की आवश्यकता ही नहीं होती है |
गो मसूरिका
यह बीमारी प्रमुख रूप से घर में पाली जाने वाली गायों को होता है | परंतु कभी-कभी इसका प्रकोप मनुष्यों में भी हो जाया करता है | चिकित्सा विज्ञानियों के अनुसार प्रायः यह रोग बहुत ही कम देखने को मिलता है , या फिर देखने को मिलता ही नहीं है | रउनके अनुसार इसका इलाज जानने की आवश्यकता भी नहीं है | विशेष परिस्थितियों में रोग की जानकारी हो जाने पर किसी योग्य चिकित्सक की सेवाएं ली जा सकती हैं | छोटी माता
इस प्रकार की चेचक का रोग 14 से लगातार 23 दिनों तक अपना प्रभाव दिखाता है | इस रोग की फुँसियाँ पहले कम मात्रा में होती हैं | कुछ समय के बाद यह शरीर के सभी अंगों में हो जाती हैं | जिससे छाती और पेट पर जलन उत्पन्न होती है | सबसे पहले चेचक की फुंसियां छाती और पेट पर होती हैं | बाद में शरीर के अन्य भागों पर हो जाती है | परंतु इस रोग का रूप भयानक नहीं होता है | इसलिए इसकी भी चिकित्सा कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती है | इस प्रकार की चेचक से रोगी का चेहरा भी कुरूप नहीं हो पाता है | इस प्रकोप में कुछ उपद्रव ऐसे होते हैं जो थोड़ा बहुत कष्ट देने के बाद स्वयं ही शांत हो जाते हैं | इसलिए इस रोग की चिकित्सा भी आवश्यक नहीं होती है | इस रोग के साधारण उपद्रव इस प्रकार हैं , जैसे खांसी , गले में सूजन , आंख और खाल में सूजन , चक्कर आना और आंखों से कम दिखाई देना |
बड़ी माता
बुखार और कमर दर्द से प्रारंभ होने वाला यह रोग दूसरे या तीसरे दिन अपने आप बुखार को कम कर देता है , लेकिन लाल रंग की फुंसियां चेहरे पर दिखाई देने लगती हैं | इसके बाद शरीर का धड़ वाला भाग भी इस रोग से प्रभावित हो जाता है | चौथे और पांचवें दिन इन में मवाद आने लगती है | रोग के 9वे दिन के पश्चात फुँसियों पर पपडी पड़ जाती हैं | बाद में इन पपड़ियों का खुरंड उतरने लगता है | इस भयानक रोग की यह स्वाभाविक अवस्था है | इसके बाद रोगी अपने आप को स्वस्थ महसूस करने लगता है | कभी-कभी रोगी मे कुछ उपद्रव विकराल रूप धारण कर लेते हैं | जिससे उसकी मृत्यु भी हो जाया करती है |
चेचक निरोधक उपचार
प्रायः लोग इस रोग का उपचार नहीं करते हैं | इस रोग का रोगी भी धीरे धीरे अपने आप ही ठीक होता जाता है | अगर रोगी के चेहरे पर चेचक के दाग शेष रह गए हो , तो रोगी की फुँसियों का खुरंड लेकर उसे किसी चिकने पत्थर पर पानी के साथ घिसे | इसतरह जो लेप तैयार हो उसे चेचक के दागों पर लगा लिया करें | इससे दाग हल्के पड़ जाएंगे | इसके अलावा जिस बच्चे को चेचक होने के लक्षण प्रकट हो रहें हो तो दाने निकलने से पूर्व ही अपामार्ग की जड़ और हल्दी को पानी के साथ चंदन की तरह घिसकर रोगी के बीसों नाखूनों पर लगा दे | इसके अतिरिक्त एक तिलक मस्तक के बीचो-बीच , और एक जीभ पर भी लगा दे | इससे उस बच्चे को चेचक नहीं होगी | यह एक शर्तिया इलाज है |
बिगड़ी हुई चेचक का उपचार
इसके बावजूद भी यदि चेचक बिगड़ जाए तो लटजीरा की जड़ को शुद्ध पानी या गंगाजल के साथ किसी पत्थर पर घिसे | इस प्रकार से एक लेप सा बन जायेगा | इस लेप को किसी बर्तन में रखते जाएं | इस लेप को चेचक के दानों पर लगा देना है | यह लेप इतना प्रभावशाली है कि 2 घंटे के अंदर ही बिगड़ी या बैठी हुई चेचक उभर जाएगी , अर्थात चेचक के दाने बताशे की तरह ऊपर को फूल जाएंगे | हो सकता है कि इसके बाद रोगी का ज्वर बढ़ जाये | लेकिन इससे घबराएं नहीं, क्योंकि यह भी चिकित्सा का ही एक अंग है | इससे कोई हानि नहीं होने वाली है | इस दवा की 8 से 10 बूंदे रोगी को पिला देनी चाहिए | यह दवा केवल दिन में एक बार करनी चाहिए | इसके बाद किसी भी दिन दवा नहीं देना है | रोगी कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाएगा
इसके अलावा चेचक रोकने के लिए अन्य उपाय भी हैं | क्योंकि विषय बड़ा हो चुका है। इसलिए अधिक वर्णन करना ठीक नहीं है | जब कभी मौका मिलेगा , तो इस विषय पर हम फिर आप को चेचक के बारे में बताएंगे |
जय आयुर्वेद
Web - 1najar.in

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

इलाज ; एसिड अटैक [1/15 ] D

web - gsirg.com इलाज ; एसिड अटैक के क्या कारण आजकल अखबारों में तेजाब से हमले की खबरें पढ़ने को मिल ही जाती हैं। तेजाब से हमला करने वाले व्यक्ति प्रायः मानसिक बीमार या किसी हीनभावना से ग्रस्त होते हैं। ऐसे लोग अपनी हीनभावना को छिपाने तथा उसे बल प्रदान करने के लिए अपने सामने वाले दुश्मन व्यक्ति पर तेजाब से हमला कर देते हैं। कभी-कभी इसका कारण दुश्मनी भी होता है , इसके अलावा कभी-कभी लोग अपनी आत्मरक्षा के लिए भी एसिड अटैक का अवलंबन कर लेते हैं। कारण कुछ भी हो किंतु इसमें पीड़ित को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है। ऐसे हमलों का होना या ऐसी घटनाएं होना हर देश में आम बात हो गई है। इस्लामी देशों में लड़कियों को उनकी किसी त्रुटि के कारण तो ऐसी धमकियां खुलेआम देखने को मिल जाती हैं। \\ शरीर का बचाव \\ यदि के शरीर किसी पर तेजाब से हमला होता है , उस समय शरीर के जिस भाग पर तेजाब पड़ता है , वहां पर एक विशेष प्रकार की जलन होने लगती है | इस हमले में शरीर का प्रभावित भाग बेडौल , खुरदरा और भयानक हो सकता है | इस हमले से पीड़ित व्यक्ति शरीर की त...

काम शक्ति से भरपूर बनाने वाली औषधि | Kamshakti se bharpoor bananewali aoshdhi

                                  web - helpsir.blogspot.com काम शक्ति से भरपूर बनाने वाली औषधि यह तो सभी जानते हैं कि जीवन का आखिरी चरण अर्थात होना एक शारीरिक है | शरीर के बुड्ढे हो जाने पर व्यक्ति की सभी इंद्रियां और अंग प्रत्यंग कमजोर हो जाते हैं | प्रत्येक व्यक्ति को अपने पूरे जीवन का एक लंबा अनुभव होता है | बुढ़ापे मे आदमी का शरीर अवश्य कमजोर हो जाता है , परन्तु उसका मन कभी कमजोर नहीं हो पाता है | क्योंकि व्यक्ति के मन की कोई उम् सीमा नहीं होती है | इसलिए मन सदैव ही युवा बना रहता है | दूसरे शब्दों में इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि मन पर काल का प्रभाव कभी नहीं पड़ता है | Mircle Drug मन की अनंत इच्छाएं Young medicine प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में अनेकों इच्छाएं करता रहता है , तथा उनकी पूर्ति के लिए आजीवन उसमें संलग्न भी रहता है | पर उसकी यह इच्छाएं केवल और केवल उसकी मृत्यु के बाद ही उसका पीछा छोड़ती है | ऐसी ही अनेकों इच्छाओं में कामेच्छा भी शामिल है | हर व्यक्ति अपने ज...

1 इलाज ; मोटापा

web - gsirg.com helpsir.blogspot.in इलाज ; मोटापा इस दुनिया में हर एक प्राणी सुगठित , सुंदर और सुडोल तथा मनमोहक शरीर वाला होना चाहता है | इसके लिए वह तरह तरह के व्यायाम करता है | सुडौल शरीर पाने के लिए वह हर व्यक्ति जो मोटापे से परेशान है , प्राणायाम और योग का भी सहारा लेता है | लेकिन उसका वातावरणीय प्रदूषण , अनियमित आहार-विहार उसके शरीर को कहीं ना कहीं से थोड़ा या बहुत बेडौल कुरूप या भद्दा बना ही देते हैं | आदमियों के शरीर में होने वाली इन कमियों मैं एक मोटापा भी है | जिसके कारण व्यक्ति का शरीर बेबी डॉल जैसा दिखाई पड़ने लगता है | बहुत से यत्न और प्रयत्न करने के बाद भी उसे इसमें सफलता नहीं मिल पाती है | वस्तुतः शरीर का मोटा होना उस व्यक्ति के लिए लगभग अभिशाप सा होता है | वसा की आवश्यकता हमारे शरीर के अंगों और प्रत्यंगों को ढकने का कार्य बसा या चर्बी का होता है | जिसकी एक मोटी परत त्वचा के नीचे विद्यमान रहती है | इस चर्बी का काम शरीर को उष्णता प्रदान करना है ...