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[ c14 ] गंदे और प्रदूषित रक्त को शुद्ध करने वाली प्रभावी औषधियां [ भाग एक ]


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गंदे और प्रदूषित रक्त को शुद्ध करने वाली प्रभावी औषधियां 
[ भाग एक ] 
            अजवाइन से रक्त का शोधन
                      आजकल वातावरण के बदलाव और आपने खानपान आहार-विहार आज के कारणों से लोगों का रक्त दूषित हो रहा है| जिसके कारण उन्हें कई प्रकार की बीमारियों से जूझना पड़ता है जैसे रक्तातिसार खुजली चलना खाए हुए अन्य से जलन होना | यह बीमारियां रक्त के प्रदूषण के कारण होती हैं|| इनके प्रभावी इलाज के लिए हम आज एक प्राचीन नुस्खे के विषय में अध्ययन करेंगे जो दूषित रक्त को अतिशीघ्र शुद्ध करता है|
        नुस्खा बनाने की विधि और सेवन विधि
        रक्त को शुद्ध करने वाले इस नुस्खे को बनाने के लिए बाजार से अजवाइन लानी पड़ती है| अजवाइन एक सर्वत्र प्राप्त औषधीय है| यह हमारे रसोईघर और आसपास के लोगों के पास तथा व्यापारियों के पास आसानी से उपलब्ध हो जाती है| इसकी सौ ग्राम मात्रा लाकर उसे छाया में सुखाकर साफ कर लेते हैं|| जितनी मात्रा में अजवाइन लेते हैं उतनी ही मात्रा में मिश्री भी ले लेते हैं | दोनों सामग्रियों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लेते हैं| यह चूर्ण बहुत ही महीन हो इसके लिए इसका कपड़छन चूर्ण बनाते हैं यानी इस के चूर्ण को कपड़े से 3 बार छाना जाता है जिससे शुद्ध चूर्ण बन जाता है और आपस में मिल भी जाता है |
सेवन विधि
 इसकी एक चम्मच मात्रा रोगी को दिन में  तीन बार तीन बार सुबह दोपहर और शाम देना पड़ता है| यह अपने औषधीय अपने गुणों के कारण मरीज के रक्त को अविलंब निश्चित समय पर ठीक कर देती है| औषध सेवन काल में खटाई और नमक पूर्णतया वर्जित है| अगर कोई मरीज अपने सेवन काल में नमक के स्वाद से वंचित नहीं रहना चाहता है तो उसे अल्प मात्रा में सेंधा नमक दिया जा सकता है इसके सेवन से जब रक्त शुद्ध हो जाता है तब रोगी को कई पर कई प्रकार कीअन्य बीमारियों सेभी छुटकारा मिल जाता है जैसे फोड़े फुंसियां मुंह और नाक के छाले विग्रह प्रदर अति दुर्बलता और रक्तपित्त आदि|
अन्य प्रयोग
 ऐसा अनुमान है कि मिस्र देश के लोग वनस्पतियों से संबंधित औषधियों के प्रति ज्यादा जागरूक | एक वर्णन मिलता है की प्राचीन मिस्र की सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाली महारानी ह्त्सेप्सुत ने अपने कार्यकाल में आयुर्वेदिक औषधियों का बहुत ही प्रचार प्रसार किया था| इसके लिए उन्होंने अपने यहां के विशेष लोगों को बाहर भी भेजा था और उन लोगों ने मिस्र के बाहर जाकर और भी अन्य औषधियों की खोज भी की थी | मिस्रवासियों ने पुंत नामक स्थान से खास प्रकार का अंजन लाकर कई लेप बनाये औरकई रोगों का इलाज करने वाली दवाएं बनाई थी | ऐसे ही खोजी स्वभाव के लोगों ने एल्डर बेल की छाल लाकरउनका उपयोग कई रोगों की दवाएं बनाई तथा नूबिया से रस गंध की गोंद और लाल चंदन लाये थे जिससे वे मुंह के छालों और अतिसार की चिकित्सा किया करते थे इसी प्रकार दूधियोपिया से केशु के फूल लाकर पेट के कीड़ों की अचूक दवा बनाया करते थे 🔺🔻 

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