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[ 14 ] आदिशक्ति मां भगवती की रूप निद्रा

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आदिशक्ति मां भगवती की रूप निद्रा
जिस प्रकाAर से हमारे धर्म ग्रंथों में पूजनीय देवी देवताओं के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है | ठीक उसी प्रकार आदिशक्ति मां भगवती के भी अनेक रूपों का वर्णन किया गया है | मां भगवती की लीला कथाओं में उनके रूपों और प्रभाव का विस्तृत उल्लेख किया गया है | इन लीलाकथाओं में माता के अनगिनत रूपों का वर्णन किया गया है | इन्हीं में माता के एक रूप का नाम रूपनिद्रा का भी है | इसी रूपनिद्रा का वर्णन और विवरण इस लेख के माध्यम से किया जा रहा है | पाठकगण माता के इस रूप का ज्ञान प्राप्त कर उनकी कृपा प्राप्त करने की अभिलाषा पूर्ण कर सकते हैं |
\\ माता की रूपनिद्रा \\
जगतमाता मां भगवती के इस रूप को सभी नमन करते हैं | बताया जाता है , कि आदिशक्ति माता अपने इस रूप में संसार के सभी प्राणियों को शांति , विश्रांति तथा जीवन ऊर्जा का वरदान देती हैं | जो भक्त माता की भक्ति करते हैं , केवल वही माता की कृपा पाते हैं | इसके अलावा जो व्यक्ति माता से कोई लगाव नहीं रखते वह प्राणी अपने जीवन में माता की कृपा से वंचित रह जाते हैं | भक्त की भक्ति का प्रभाव जितना अधिक होता है माता की कृपा भी उसी के अनुरूप कम या अधिक हो सकती है | न्यूनतम कृपा पाने वाले प्राणियों को न विश्रांति मिलती है , और न ही उन्हें जीवन में शांति मिल पाती है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि माँ की कृपा न पाने से उसके शरीर में जीवन ऊर्जा की कमी हो जाती है | जीवन ऊर्जा की कमी के कारण ऐसे प्राणी सदा थकान और अवसाद से घिरे रहते हैं |
\\ जीवन ऊर्जा का प्रभाव \\
माता की कृपा के परिणामस्वरूप जिन भक्तों को माता की समुचित कृपा मिल जाती है | जिसके परिणामस्वरुप उनके शरीर में जीवन ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है | यही कारण है कि वह अपने जीवन में सदा सुखी रहते हैं | इसके अलावा उन्हें आरोग्य का सौभाग्य भी प्राप्त होता है | मां की कृपा के इस सत्य को विज्ञान और अध्यात्म दोनों ही स्वीकार करते हैं | इसके विपरीत जिन लोगों पर मां की कृपा न्यून होती है , उनके जीवन में कठिनाइयां आती ही रहती हैं | क्योंकि उनके अंदर जीवनऊर्जा का प्रवाह भी न्यून ही होता है , जिसके कारण उनका जीवन , जीवन की कठिनाइयों में बीतता ही रहता है | न्यून जीवनऊर्जा प्राप्त प्राणी को शारीरिक बीमारियों , मानसिक क्लेशों तथा दुखों को भी उन्हें झेलना पड़ता है |
\\ साधना के विभिन्न मत एवं विभिन्न पथ\\
मां की स्तुति की इस सूक्त की महिमा का बखान कई स्थानों पर किया है | बताया जाता है कि इस रात्रिसूक्त से ही, इस सृष्टि का सृजन करने वाले ब्रह्मा जी ने तमोगुण की अधिष्ठात्री योगनिद्रा की स्तुति की थी | ब्रह्मा जी के रात्रिसूक्त नामक इस सूक्त की महिमा भी अपार है | आत्मज्ञानियों योगसाधकों और विद्वानों का मत है कि बालकों के निमित्त इस रात्रिसूक्त का पाठ करने से उन बालकों को निद्रा संबंधी दोषों का सामना नहीं करना पड़ता है | ऐसे बालकों को रात में बुरे बुरे सपने आना , नींद में चौकना आदि दोष नहीं होते हैं |
\\ रात्रिसूक्त का लोगों पर प्रभाव \\
ऐसा नहीं है कि रात्रिसूक्त से केवल बच्चों को ही लाभ होता है , बड़ी आयु के लोग भी जब श्रद्धा पूर्वक , पवित्र मन , से योगपूर्वक रात्रिसूक्त का स्तवन कर मां भगवती की भावना पूर्वक स्तुति करते हैं | तब उन्हें भी अनिद्रा जैसे रोग नहीं होते हैं | इसके अलावा उनके जीवन में सदा शांति और विश्रांति बनी रहती है | इसका कारण है कि मां भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें जीवन ऊर्जा का वरदान देती हैं | इस प्रकार ब्रम्हदेव के द्वारा दिए गए इस स्तवन सूत्र से मां भगवती योगनिद्रा प्रसन्न होकर उसका जीवन अपनी कृपा से सफल बना देती है | अध्यात्म ज्ञान के जानकारों का कहना है कि किसी विशेष उद्देश्य से की गई स्तुति से प्रसन्न होकर भगवती योगनिद्रा , भगवान के नेत्र , मुख , नासिका , बाहु और हृदय से बाहर निकलने लगती हैं , तथा साधक के उद्देश्य की पूर्ति करती हैं |
\\ योगनिद्रा का निवास स्थान \\
जब भी कोई प्राणी इस विद्या के अधीन होता है , या हो जाता है , उस समय सर्वप्रथम उसकी आंखें मूंदने लगती हैं | इसके बाद उसकी नाक से वायु का आवागमन धीरे-धीरे मंद पड़ जाता है | इन क्रियाओं के पश्चात साधक के बाहु भी शिथिल हो जाते हैं | इन क्रियाओं के संपूर्ण होने के बाद उसके हृदय के मध्य उसकी समस्त चेतना केंद्रित होने लगती है | भक्तों की ऐसी अवस्था को निद्रावस्था कहा जा सकता है | उसके जागरण के पश्चात उसकी नेतृत्व चेतना इन्हीं स्थलों से प्रबोध पाकर संतृप्त हो जाती है | इसके बाद भक्तों को अनायास ही माता की महिमा का ज्ञान होने लगता है | तत्पश्चात माता की कृपा पाकर उसका जीवन सफल और उच्च कोटि का हो जाता है | इसलिए प्रत्येक प्राणी को चाहिए कि वह मां की योगनिद्रा की भक्ति भी करें , जिससे उसे जीवन ऊर्जा की प्राप्ति हो तथा उसकी समस्त इच्छाओं की पूर्ति को |
इति श्री

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