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[ 14 ] गुर्दे की पथरी


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गुर्दे की पथरी
हमारे शरीर का पिछला भाग पीठ कहलाता है | इसके निचले भाग में शरीर के भीतर दोनों ओर सेम के आकार की दो संरचनाएं पाई जाती है , जिन्हें गुर्दा कहा जाता है | गुर्दे शरीर के फिल्टर हैं | यह दोनों ही फिल्टर मूत्र मार्ग में आए हुए दूषित पदार्थों को छानकर अलग करते हैं | लोगों के गुर्दे में जब दूषित पदार्थों काफी मात्रा इकट्ठा होकर एक पिंड बना लेते है | इस प्रकार की बनी हुई संरचनाओं को पथरी कहते हैं | पथरी का स्थान गुर्दे में होता है | इसलिए इन्हें गुर्दे की पथरी कहते हैं | यह बीमारी मूत्र संस्थान से संबंध रखने वाली होती है , और पीड़ित को बहुत ही कष्ट देती जाती है | इस रोग से पीड़ित व्यक्ति रोग से तिलमिलाकर बेहोश भी हो जाता है |
गुर्दे में पथरी होने के कारण
वास्तव में गुर्दे मूत्र से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं | यदि किसी कारणवश इनकी प्रक्रिया बाधित होती है , उसी समय व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हो जाता है | इस रोग में मूत्र के साथ निकलने वाले चूने आदि के रूप में विभिन्न छारीय तत्व , जब किसी कारणों से मूत्र नलिका या मूत्राशय में रुकने लगते हैं | उस समय यह आवांछित पदार्थ वहाँ पर प्रकुपित वायु के प्रभाव में आ जाते हैं | उसके बाद गुर्दे में एकत्र होकर रेत या कंकड़ का रुप होने लगते हैं | प्रारंभ में इनका आकार बहुत ही छोटा होता है | समय के साथ-साथ यह कंकड़ बढते रहते हैं और बड़ा आकार ले लेते हैं | कभी-कभी कई कंकड़ भी बन जाते हैं |
केले द्वारा इलाज
इनकी औषधीय चिकित्सा करने के कई तरीके हैं | इस परेशानी में केले की जड़ का प्रयोग होता है | रोगी को प्रातः काल जड़ की एक तोला मात्रा सेवन कराई जाती है | उसके बाद पूरे दिन उसे भोजन में गेहूं की रोटी और कुलथी का साग दिया जाता है | इसके अलावा रोगी को अन्य कुछ खाने को नहीं दिया जाता है | पूरा दिन बीत जाने के बाद रोगी को सारी रात जागरण करना पड़ता है | रोगी की रात्रि जागरण में कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए | यदि रोगी जरा सी भी झपकी ले लेता है , तब उसे इस रोग से छुटकारा नहीं मिल पाता है | अगले दिन प्रातः से रोगी अपनी नियमित दिनचर्या शुरू कर सकता है | फिर भी उसे 1 सप्ताह तक खाने में रोटी के साथ कुलथी का साग ही दिया जाना चाहिए | इसके अलावा अब उसे खाने में दाल और चावल भी दिया जा सकता है |
पूरक चिकित्सा
गुर्दे की पथरी के रोगी को जिस दिन से दवा सेवन कराई जानी होती है |उसके 1 दिन पूर्व से ही उसे यव का पानी या नारियल का पानी या गन्ने का रस अथवा कुल्थी का पानी में से किसी एक का सेवन करना आवश्यक होता है | इस पानी को रोगी के दवा के सेवन से 1 दिन पूर्व और दवा सेवन की पश्चात तक दिन तक आवश्यक रूप में दिया जाना चाहिए | इसके बाद अगर उपलब्ध हो तो यह पानी पिलाना 7 दिन तक जारी रखें फिर भी 3 दिन तक अवश्य पिलाएं |
जवाखार से इलाज

गुर्दे की पथरी के लिए प्रयुक्त होने वाली औषधियों में जवाखार का महत्वपूर्ण स्थान है | जवाखार को आसानी से पंसारी के यहां से खरीदा जा सकता है | जवाखार की 1 ग्राम की मात्रा प्रातः पानी के साथ लेनी होती है | इसी प्रकार एक ग्राम की मात्रा पानी के साथ ही शाम को भी लेनी होती है | यदि इसी के साथ के साथ गोखरू का चूर्ण 2 ग्राम और पत्थरचट का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर दिन में पीड़ित को दो बार कुनकुने पानी से पिलाते हैं , तो रोगी को अपेक्षित लाभ मिलता है | इस दवा को रोगी को लगभग 3 महीने तक करना पड़ता है |
अंत में
इन दोनों प्रकार की चिकित्साओं में किसी एक का प्रयोग करने से मूत्राशय अर्थात गुर्दे की पथरी टुकड़े टुकड़े होकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है | क्योंकि यह पथरी मूत्रनलिका के रास्ते से ही बाहर निकलती हैं , इसलिए पेशाब करते समय जलन या पीड़ा भी हो सकती है | कभी-कभी तो खून भी आ जाता है या खून मिला हुआ पेशाब होता है | परंतु इससे घबराना नहीं चाहिए | क्योंकि यह भी चिकित्सा का ही एक हिस्सा है || इस बात को सदैव याद रखें कि मूत्रनलिका से पथरी परेशानी के साथ ही नीचे उतरती है | पथरी उतरने की यह क्रिया कष्टदाई होती है | इससे घबराने से काम नहीं चलेगा | किसी-किसी रोगी में यह पथरी तो सामान्य रेत बनकर बाहर निकलती है , तब रोगी को कोई कष्ट भी नहीं होता है | कभी-कभी तो रोगी की पथरी इतनी सख्त हो जाती है किं वह इन आयुर्वेदिक औषधियों से से भी बाहर नहीं निकल पाती है | ऐसी अवस्था में रोगी को चिकित्सक को दिखाना अति आवश्यक हो जाता है , क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति है , जिसमें ऑपरेशन द्वारा ही पथरी को बाहर निकाल कर रोगी को आराम मिलाया जा सकता है | इसीलिए ऐसी स्थिति में रोगी को कुशल चिकित्स्क के पास ले जाना ही उचित होता है |
जय आयुर्वेद

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