सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

[ M १४ ] हृदय रोग और पागलपन : कारण और उपचार [ भाग दो ]

web - gsirg.com
[ M ] हृदय रोग और पागलपन : कारण और उपचार [ भाग दो  ]

इलाज का तीसरा चरण

पीपल के पेड़ से तो आप परिचित ही होंगे , क्योंकि यह पेंड़ लगभग हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाता है | इस पेड़ के पर्याप्त मात्रा में पत्ते लाकर , शाम को पानी में भिगो दें | सुबह होने पर '' भपके '' के जरिए इन पत्तों का अर्क निकाल लीजिए | इस अर्क को सुरक्षित बोतलों में भरकर रख लीजिए | इसकी भी लगभग 50 ग्राम मात्रा नाश्ते के 1 घंटे बाद सेवन किया करें इस औषधि सेवन के 50 मिनट पश्चात तक कुछ न खाएं | यह अर्क दिन में तीन बार लिया करें | अर्क सेवन के 50 मिनट पहले तथा एक घंटा बाद कुछ भी न खाएं और न ही पिए |

सावधानी

रोगी को चाहिए कि वह अपने पास एलोपैथिक औषधि '' सोर्बिट्रेट 5 mg '' कि गोलियाँ अपने पास अवश्य रखें | कभी-कभी ऐसा होता है कि चिकित्सीय परीक्षण में भी रोग की सही तीव्रता का पता नहीं लग पाता है | इसलिए हो सकता कि आपको अचानक हृदय रोग की पीड़ा होने लगे | ऐसे मे यह गोलियां आपके उपचार मे काम आएंगी | ह्रदय रोग का आभास होने पर इसकी एक गोली जीभ के नीचे रख लेने से , हृदय रोग की पीड़ा से आप का बचाव होता रहेगा | यह गोलियाँ ज्यादा महंगी भी नहीं है , तथा जीवन रक्षक होने के कारण मेडिकल स्टोर्स पर आसानी से मिल जाती हैं |

इस चिकित्सा के दौरान आप यह बात जरूर ध्यान रखें कि हृदय रोग जानलेवा रोगों में है फिर भी यह आसानी से किसी की जान नहीं लेता है | यदि आप धैर्यपूर्वक चिकित्सा करेंगे , तथा विश्वास बनाए रखेंगे तो आपको निश्चित रूप से लाभ मिलेगा यह मेरा दावा है कि विधिविधान से नियमित चिकित्सा करेंगे तो आप हृदय रोग से तो स्वर्गवासी नही होंगे | इस चिकित्सा से आप पागलपन के रोगियों का इलाज करके उनके पागलपन को भी दूर कर सकेंगे |

जय आयुर्वेद

web - gsirg.com


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में