सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कारण और जवाब (लूट सेहगौ लूट )



'' क्यों '' का जवाब

आप ने लूट लो लूट योजना के अंतर्गत लोगों से वादा किया कि तुम उनका ₹1000 का कैशबैक मार्च-अप्रैल मई और जून के महीने में वापस करोगे |

बाद में यह पोस्ट डाली गई थी कि ''मैं इस समय 60 लाख sehgo hart + .......+......+....;; आदि आदि '' चीजों में उलझा हुआ हूं | इसलिए लोग मुझे जुलाई तक का समय दें |

आप चाहे जिन कामों में व्यस्त रहें , आपको कोई भी दिक्कत हो , कैशबैक चाहने वालों को इससे कोई मतलब नहीं होगा | उन्हें तो केवल सही समय पर अपना कैशबैक चाहिये | ऐसी आम सोंच होती है | मैंने सोंचा कि इससे आपकी योजना को नुकसान हो सकता है | इसीलिए मैंने लिखा था '' असफलता की ओर पहला कदम ''मैंने सोंचा था कि तुम मेरी बात को समझोगे |

परं शुरू हो गई तुम्हारी ललतरानी और हवाहवाई डींगे मारने वाली पोस्टें | Facebook पर आप की पोस्ट आई '' असफलता की ओर तो मैंने बहुत पहले कदम उठाया था | काश कि लोग मुझे समझ नहीं पाए |

'' मेरी नेक सलाह पर ऐसी पोस्ट '' मुझे अत्यंत निराशा हुई और मैं पूरी रात सोचता रहा कि किसी ने सच ही कहा है कि '' नादान का संग यानी जी का जंजाल '' तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि मुझे यह तो अहसास था कि तुम और भूपेंद्र कुछ खिचड़ी पका रहे थे |

रात भर सोचने के बाद मैंने तुम्हारी सब पोस्टों को गौर करके यह निष्कर्ष निकाला कि आपको पैसा घर से तो मिल नहीं रहा है | आपके पास पैसा भी नहीं है , फिर आप किस आधार पर किस बलबूते पर60 लाख काsehgo mart खड़ा करोगे | अब तुम्हारी पकी हुई खिचड़ी मेरे दिमाग मे पुरी तरह आ गई है |

उसके बाद तुम्हारी हवा हवाई पोस्ट आने लगी अब मुझे तुम्हारे sehgo mart पर शंका होने लगी | इसीलिए किसी और को पता ना चले इसलिए मैंने रजिस्ट्रेशन आदि के बारे में Gmail भेजा | जिसका तुमने लड़कपन में बड़ा ही गलत अर्थ लगा लिया और फोन कॉल करके मेरे पास डॉक्यूमेंट भेजने को कहा था |

उसके बाद अपनी बात से मुकर गए , और फिर '' कॉन्फिडेंशल '' और '' ट्रेकिंग '' का बहाना कर अगस्त में पत्र जारी भेजने की बात करें जाने कि अपनी ही बात पर डाइवर्ट हो गए | इसके बाद भी तुम्हारी सभी पोस्ट लड़कपन की आने लगी |

तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि मुझे तो नेटवर्क की एबीसीडी भले ही न नहीं आती हो , परन्तु बाकी अपने सामान्य जीवन में सामने वाले के मनोभावों को पढ़ने लेने का मेरे पास थोड़ा बहुत ज्ञान जरूर है | मेरी सोंच गलत भी नही होती है |

अब तुम्हारी सोच का पूरा फिगर मेरे दिमाग में सेट हो गया है | आज भी तुम्हारी पोस्ट आई है की अगर किसी को जानकारी दे दो , तो वही अपनी मारने पर तुल जाता है | तुम्हारी जानकारी के लिए मैं बता दूं मैं ऐसी अच्छी बातें सुनने का आदी नहीं हूं | सुनूंगा भी नहीं , तथा बर्दाश्त भी नहीं करूंगा | तुमने मुझे अपनी तरह का बच्चा समझ रखा है | अगर तुम्हारे दिमाग में ऐसी चीज घुसी है तो तुम उसे फौरन अपने दिमाग से निकाल दो अगर ऐसी ही सोंच बनी रही तो तुम करोडपती तो बन ही नही सकते | इसीलिए मैंने लिख दिया के अंतिम बार तुम्हारी बारी है जितना चाहो उतना लिख लो |

इसके बाद तुम्हें मौका नहीं मिलेगा और ईर्ष्या की बात कहां से आ गई | मैं तो तुम्हें अपने बच्चे की तरह मानता था , लेकिन अब वह प्रेम खत्म हो गया | अगर हमारा तुम्हारा कोई संबंध सिर्फ शेष रहा है तो वह पिछले रिश्तो वाला , यानी तुम्हारे माता-पिता से जुड़ने वाला रिश्ता अब नहीं रहेगा | अब मै तुमसे केबल एक अलग ही व्यक्ति के रूप में तुमसे व्यवहार करूंगा | पिछला वाला सब भूल जाओ , अब अगला संबन्ध नया शुरू होगा |

क्या इस पर gsirg.com भी लिख दूँ ?

वेबसाइट आप की है भले ही मैंने सब कुछ सिखाया है मैने खुद ही उस पेड़ को सींचा है जिसमे काटे है ,खैर गलती इंसान से ही होती है , अगली बार ऐसे लोगो से बच कर रहूंगा इससे ये सबसे बड़ी सीख मिली है , खैर आप वेबसाइट पर कुछ भी लिख सकते है सबसे बड़ाई की उम्मीद भी नही की जा सकती है और हर कोई सपोर्ट करे ये भी संभव नही !

 अब आते है लूट सहगो लूट ऑफर के तथ्योँ पर तो मैने कैश बैक करने का कोई टाइम कभी नही दिया आप हमारी नियम व शर्तों को पुनः पढ़ सकते है ।

कैश बैक कंपनी अपने आधार पर करेगी । 

अब रही बात मेरे और सिर के बीच की खिचड़ी की तो बड़ी रण नीतियां कुछ खास लोगो के साथ ही बनती है ,और वैसे भी भूपेंद्र सर,सुमेर सर ने इस कंपनी में अपना रुपया,टाइम और भरोषा लगाया है तो जाहिर सी बात है खिचड़ी तो पगेगी ही ।

और आप भी समझते है कि मार्ट 1-2 लाख में नही बनेगा तो जाहिर ही बात है कि कोई मेरा भी सुबह चिंतक होगा जो यह रुपया इन्वेस्ट कर रहा होगा ।

हा मए हवाइयां छोड़ता हु पर क्यों ??क्योकि मए उन्हें सच कर दिखाने की छमता रखता हूं , फ़िल्म मेकिंग ,यूट्यूब , कैश बैक , जीएसएस , सहगो मार्ट कभी हवाई ही थे पर अब नही और उसी प्रकार दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति बनना आज हवाई ही लगता है पर ज्यादा दिन तक नही रहेगा । 

कभी एडिसन ने भी बल्ब बना लेने की हवाई ही मेरी थी या न्यूटन ने ग्रेविटी की और आइंस्टीन ने समय की खैर में उन से अपनी तुलना नही करता पर यह एक फैक्ट है इस लिए कह दिया ।

और रही बात की मैने आप के "असफल" वाली बात  कहने के बाद बचकानी हरकते स्टार्ट की तो आप को मेरी पूरे पोस्ट भी देखनी चाहिए । अभी मए बच्चा ही हु तो बच्चों जैसी हरकत करूँगा ही । 

हा ये बात सत्य है कि मए लोगो को समझ नही पाता यदि समझता तो इतने नुकसान नही उठता पर मुझे इस बात का दुख नही है धीरे धीरे सब सिख जाऊंगा ,

मुझे बहुतो ने धोखा दिया है पर मुझे उन से फर्क नही पड़ता मुझे फर्क उन से पड़ता है जो मुझे मेरे मुसीबतों में काम आए । है इस सफर में मेरे कई सुभचिंतक भी मिले उन में से सुमेर सर एक नायाब उदाहरण है । 

रही बात प्रेम की तो और संबंध की तो लोग इन विषय मे मए कुछ नही कह सकता क्योंकि यह व्यक्तिगत विचार होना चाहिए  ।

जैसे कि आप ने ही कहा की कॉमेंट की सुरुआत आप ने ही कि पर आप ने अछे विचारो के साथ कहा था पर  मए समझ न सका इसके लिए मए छमा पहले ही मांग चुका हूं । 

और आप ने सही कहा कि ;-

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय ,

जब टूटे तब जुड़े नही जुड़े गांठ पर जाए ।




Show quoted text

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति

web - GSirg.com माता की प्रसन्नता से मिलती है मुक्ति मां भगवती की लीला कथा के अनुकरण से शिवसाधक को कई प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं , जैसे शक्ति , भक्ति और मुक्ति आदि | माता की लीला कथा का पाठ करने से ही शक्ति के नए नए आयाम खुलते हैं | यह एक अनुभव की बात है | आदिकाल से ही माता के भक्तजन इस अनुभव को प्राप्त करते रहे हैं , और आगे भी प्राप्त करते रहेंगे | भक्तों का ऐसा मानना है , कि शक्ति प्राप्त का इससे सहज उपाय अन्य कोई नहीं है | इसके लिए दुर्गा सप्तशती की पावन कथा का अनुसरण करना होता है , जो लोग धर्म के मर्मज्ञ हैं तथा जिनके पास दृष्टि है केवल वही लोग इस सत्य को सहज रूप में देख सकते हैं | ----------------------------------------------------------------------- ------------------------------------------------------------------------ दुर्गा सप्तशती का पाठ माता की भक्ति करने वालों के जानकारों का विचार है , कि माता की शक्ति प्राप्त का साधन , पवित्र भाव से दुर्गा सप्तशती के पावन पाठ करने पर ही प्राप्त हो सकता है | इस पवित्र और शक्ति दाता पावन कथा

दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता दुख की आवश्यकता

 दुख क्या है ? इस नश्वर संसार के जन्मदाता परमपिता ईश्वर ने अनेकों प्रकार के प्राणियों की रचना की है | इन सभी रचनाओं में मानव को सर्वश्रेष्ठ माना गया है | इस संसार का प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन खुशहाल और सुख में बिताना चाहता है , जिसके लिए वह अनेकों प्रकार की प्रयत्न करता रहता है | इसी सुख की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हुए उसका संपूर्ण जीवन बीत जाता है | यहां यह तथ्य विचारणीय है कि क्या मनुष्य को अपने जीवन में सुख प्राप्त हो पाते हैं | क्या मनुष्य अपने प्रयासों से ही सुखों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर पाता है | यह एक विचारणीय प्रश्न है | सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू वास्तव में देखा जाए तो प्रत्येक मानव के जीवन में सुख और दुख दोनों निरंतर आते-जाते ही रहते हैं | सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख की पुनरावृत्ति होती ही रहती है | यह प्रकृति का एक सार्वभौमिक सिद्धांत है | अगर किसी को जीवन में केवल सुख ही मिलते रहे , तब हो सकता है कि प्रारंभ में उसे सुखों का आभास ज्यादा हो | परंतु धीरे-धीरे मानव को यह सुख नीरस ही लगने लगेंगे | जिसके कारण उसे सुखों से प्राप्त होने वाला आ

[ 1 ] धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण

code - 01 web - gsirg.com धर्म ; मानवप्रकृति के तीन गुण संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी के माता-पिता तो अवश्य होते हैं | परंतु धार्मिक विचारकों के अनुसार उनके माता-पिता , जगत जननी और परमपिता परमेश्वर ही होते हैं | इस संबंध में यह तो सभी जानते हैं कि ,जिस प्रकार इंसान का पुत्र इंसान ही बनता है , राक्षस नहीं | इसी प्रकार शेर का बच्चा शेर ही होता है , बकरी नहीं | क्योंकि उनमें उन्हीं का अंश समाया होता है | ठीक इसी प्रकार जब दुनिया के समस्त प्राणी परमपिता परमेश्वर की संतान हैं , तब तो इस संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का अंश विद्यमान होना चाहिए | आत्मा का अंशरूप होने के कारण , सभी में परमात्मा से एकाकार होने की क्षमता व संभावना होती है | क्योंकि मनुष्य की जीवात्मा, आत्मा की उत्तराधिकारी है , इसलिए उससे प्रेम रखने वाला दिव्यता के शिखर पर न पहुंचे , ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है | यह जरूर है कि , संसार के मायाजाल में फँसे रहने के कारण मानव इस शाश्वत सत्य को न समझने की भूल कर जाता है , और स्वयं को मरणधर्मा शरीर मानने लगता है | जीव आत्मा अविनाशी है मानव शरीर में